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कब सीखेगी कलह सुलझाने की कला?

कर्नाटक में आखिरकार कांग्रेस पार्टी विधायक दल का नेता चुनने में सफल रही। पांच दिन तक चली इस कवायद के बाद पार्टी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद पर सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के बीच सहमति बनाने में सफल रही, लेकिन मंत्रिमंडल के गठन की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है। पार्टी के अंदर अब लाल बत्ती को लेकर दावेदारी शुरू हो गई है। कई विधायक सार्वजनिक तौर पर दावा ठोक रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार कांग्रेस पार्टी आंतरिक कलह को सुलझाने की कला कब सीखेगी? दरअसल कांग्रेस में यह कोई नई बात नहीं है। पार्टी के अंदर इस तरह की आवाज उठती रही है। मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के बीच बयानबाजी से हुई फजीहत को लेकर पार्टी को सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं देने की हिदायत देनी पड़ी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पार्टी को अनुशासन में भाजपा से सबक नहीं लेनी चाहिए। दरअसल वर्ष 2017 के यूपी चुनाव और 2021 में असम विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को मुख्यमंत्री का नाम तय करने में सात से आठ दिन लगे थे। पर भाजपा के अंदर कोई आवाज सुनाई नहीं दी। मुख्यमंत्री के साथ मंत्री पद को लेकर भी किसी ने सार्वजनिक तौर पर अपनी दावेदारी नहीं जताई। ऐसे में कांग्रेस को सीखना होगा कि किस तरह मीडिया की सुर्खियों से दूर रहते हुए इस तरह के विवाद को हल किया जाए। इस पूरी कवायद में पार्टी शिवकुमार को मनाने में सफल रही है, पर वरिष्ठ नेता जी परमेश्वर और एमबी पाटिल नाराज हो गए। परमेश्वर दलित समुदाय से आते हैं, जबकि एमबी पाटिल लिंगायत हैं। इस बार पार्टी के 34 लिंगायत विधायक जीते हैं। ऐसे में चर्चा है कि लिंगायत समुदाय का भरोसा बरकरार रखने के लिए पार्टी उन्हें मंत्रिमंडल में ज्यादा हिस्सेदारी दे सकती है। एमबी पाटिल को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।

जी परमेश्वर दलित समुदाय से आते हैं और सिद्धरमैया की पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे हैं। उससे पहले प्रदेश अध्यक्ष भी लंबे समय तक रह चुके हैं। सिर्फ शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से वह नाराज हैं। उनके मुताबिक वह भी सरकार चला सकते हैं। दलित को मुख्यमंत्री नहीं, तो उपमुख्यमंत्री बना सकते थे। ऐसी स्थिति में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पार्टी को अंदरुनी विवाद और मतभेदों को सुलझाने की कला सीखनी होगी। क्योंकि, पार्टी नेताओं की आपसी कलह और नाराजगी की वजह से कांग्रेस को कई राज्यों में अपनी सरकार गंवानी पड़ी है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सहित कई अन्य राज्यों में पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी विवाद सुलझाने में नाकाम रही है। राजस्थान में वरिष्ठ नेता सचिन पायलट सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वहीं, छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव का विवाद किसी से छुपा नहीं है। तेलंगाना में भी पार्टी पूरी तरह दो हिस्सों में बंट गई है। एक धड़ा प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी के साथ है, तो दूसरा धड़ा उनके खिलाफ। पार्टी में यह हाल ऐसे वक्त में है, जब कुछ माह बाद इन राज्यों में चुनाव होने हैं।

 

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