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कब बुझेगी मणिपुर की आग?

मणिपुर की घटना को लेकर हंगामा सड़क से लेकर संसद तक देखने को मिला रहा है। इस मुद्दे पर एक ओर जहां विपक्ष पीएम मोदी के सदन में बयान और विस्तृत चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ सरकार गृह मंत्री अमित शाह के जवाब के साथ अल्पकालिक चर्चा के लिए राजी है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है। सरकार के पास हालात बहुत जल्द पटरी पर लाने का कूटनीतिक भरोसा देने के अलावा कोई चारा नहीं है

मणिपुर में मैतेई और कुकी आदिवासियों के बीच हिंसा को अब तीन महीने पूरे होने को हैं। लेकिन दोनों समूहों के बीच 3 मई को भड़की जातीय हिंसा की आग बुझने के बजाए अब इसकी लपटें पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी फैलने लगी हैं। इस हिंसा के चलते अब तक लगभग 150 लोगों की जान जा चुकी है। 3 हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं और 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। बीते दिनों कूकी समाज की दो महिलाओं को मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाए जाने के बाद पूरा पूर्वोत्तर हिंसा की आग की चपेट में आने लगा है। मिजोरम में डर की वजह से मैतेई समुदाय के लोग पलायन करने लगे हैं। मिजोरम में एक पूर्व आतंकी संगठन द्वारा राज्य में रह रहे मैतेई समुदाय के लोगों के लिए धमकी जारी करने के बाद समुदाय के 41 लोग सड़क मार्ग से असम पहुंचे गए हैं। वहीं, तीन विमानों से 78 लोग असम पहुंचे। हालांकि ये मैतेई समुदाय के हैं या नहीं, स्पष्ट नहीं हुआ है।

दरअसल, देशभर में मणिपुर वाली घटना की आलोचना तो हो ही रही है लेकिन अब दुनिया के अन्य मुल्कों से भी इस घटना पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अमेरिका ने कहा है कि वह भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने वाले वीडियो की रिपोर्ट पर बेहद चिंतित है। अमेरिका के विदेश विभाग की तरफ से इस घटना को ‘क्रूर’ और ‘भयानक’ बताया गया है। विदेश विभाग ने कहा है कि अमेरिका पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करता है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि मणिपुर की आग कब बुझेगी?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पास हालात बहुत जल्द पटरी पर आने का कूटनीतिक भरोसा देने के अलावा कोई चारा नहीं है। गौरतलब है कि मणिपुर में मई के महीने से ही हिंसा जारी है। कुकी समुदाय को दिए जाने वाले आर्थिक लाभों में बदलावों की आशंका के बाद से ही मैतेई समुदाय के साथ हिंसा जारी है। जो वीडियो सामने आए हैं वो मई महीने के बताए जा रहे हैं। जातीय संघर्ष के दौरान 21 और 19 साल की पीड़ितों को निर्वस्त्र करके घुमाया गया था। जबकि एक महिला के गैंगरेप और फिर हत्या की खबरें हैं। इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। पिछले हफ्ते ही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। पुलिस ने मामले में कुछ गिरफ्तारियां की हैं।

अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से कहा गया है कि अमेरिका, मणिपुर हिंसा का शांतिपूर्ण और समावेशी समाधान चाहता है। साथ ही उसने अधिकारियों से सभी समूहों, घरों और पूजा स्थलों की सुरक्षा की मांग करते हुए मानवीय जरूरतों का जवाब देने का अनुरोध किया है। अमेरिकी अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने इस घटना पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट का शीर्षक दिया गया है, ‘उभरते हुए भारत के, एक सुदूर क्षेत्र में, एक रक्तरंजित युद्ध क्षेत्र भी है।’ ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ लिखता है, ‘भारत, दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था, अब एक युद्ध क्षेत्र का स्थल भी बन गया है क्योंकि दूरदराज के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में महीनों से चली आ रही जातीय हिंसा ने लगभग 150 लोगों की जान ले ली है। हजारों सैनिकों को हिंसा रोकने के लिए भेजा गया है, जो चीन से लगी सीमा समेत भारत के अन्य हिस्सों में तैनात थे।’

‘35 हजार से अधिक लोग शरणार्थी बन गए हैं, जिनमें से कई अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं। इंटरनेट सेवा में कटौती कर दी गई है। भारत सरकार की रणनीति और यात्रा प्रतिबंधों ने बाहरी दुनिया के लिए राज्य की वर्तमान परिस्थितियों को देखना मुश्किल बना दिया है।’

जर्मन मीडिया संस्थान डॉयचे वेले ने मणिपुर हिंसा पर ‘समुदायों को विभाजित करती मणिपुर की जनजातीय हिंसा’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की है। डॉयचे वेले ने लिखा, ‘मणिपुर में हिंसा की घटनाएं तब शुरू हुईं जब इस साल अप्रैल के महीने में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों के समक्ष अधिकार देने पर विचार करने के लिए कहा था।’ रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘मैतेई लोगों को हिंसा के बाद सरकार और सुरक्षा बलों पर विश्वास नहीं है।’ मैतेई महिलाएं असम राइफल्स (सुरक्षा बल) को अपने गांव में आने से रोक रही हैं क्योंकि उनका आरोप है कि सुरक्षा बल कुकी लोगों से मिले हुए हैं। डॉयचे वेले ने रिपोर्ट में हिंसा के बीच एक नए आंदोलन का भी जिक्र किया है।

आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया, ‘चुराचांदपुर की पहाड़ियों में एक नया आंदोलन जोर पकड़ रहा है। पूरे जिले में चुराचांदपुर नाम को साइन बोर्डों से हटाया जा रहा है और इसे बदला जा रहा है।’ स्थानीय लोग, मुख्य रूप से कुकी और अन्य पहाड़ी जनजातियों का कहना है कि वे लोग अब मैतेई राजा चुराचंद सिंह के साथ जुड़े नहीं रहना चाहते हैं, जिनके नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है। उनका कहना है कि वे अब मूल नाम पर लौट रहे हैं। यह कुकी-मैतेई के बीच गहराते विभाजन का संकेत हैं। कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।’

अमेरिकी मीडिया ‘सीएनएन’ ने मणिपुर की हालिया हिंसा में 11 लोगों की मौत की बात कही है। सीएनएन ने लिखा, ‘भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा के मामले में 11 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और 14 लोग घायल हुए।’ सीएनएन का कहना है कि सरकार ने हिंसा रोकने के प्रयास में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और आवागमन को सीमित कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार के इन फैसलों से राज्य के लगभग 30 लाख लोग देश के बाकी हिस्सों से कट गए हैं।’ रिपोर्ट में डॉक्टरों के बयानों को भी शामिल किया गया है जिनका कहना है कि इस भयावह हिंसा के बाद लोगों के शवों की पहचान करना भी मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा सीएनएन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंसा पर कुछ न कहने और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर दौरे का जिक्र भी रिपोर्ट में किया है।

मणिपुर पर गतिरोध बनाम नियम
मणिपुर में जारी हिंसा के मुद्दे पर देश के दोनों सदनों में 20 जुलाई से मानसून सत्र शुरू होने के बाद से हंगामा जारी है। इस बीच सदन की कार्यवाही बाधित करने के आरोप में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। राज्यसभा सभापति ने कहा कि बार-बार मना करने के बाद भी संजय सिंह ने सदन की कार्यवाही में बाधा डाली है। इसलिए उन्हें पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित किया जाता है। राज्यसभा सभापति ने यह कार्रवाई पीयूष गोयल की शिकायत पर की है। सांसद पीयूष गोयल ने कहा था कि सरकार चर्चा के लिए तैयार है, फिर भी कार्रवाई में बाधा डाली जा रही है। इस हंगामे की वजह विपक्ष की संसद में मणिपुर पर विस्तृत चर्चा की मांग है। इस मुद्दे पर विपक्ष पीएम मोदी के सदन में बयान और विस्तृत चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है। जबकि सरकार गृह मंत्री अमित शाह के जवाब के साथ अल्पकालिक चर्चा के लिए राजी है। ऐसे में संसद के दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।

सरकार और विपक्ष के बीच चर्चा पर सहमति न बन पाने के कई कारण हैं जिसमें पहला कारण विपक्ष का केवल मणिपुर पर ही चर्चा करना है जबकि सरकार पश्चिम बंगाल और राजस्थान में महिलाओं की स्थिति पर भी चर्चा करना चाहती है। दूसरा कारण यह है कि विपक्ष चाहता है कि मणिपुर पर पीएम मोदी को बहस करनी चाहिए तो वहीं सरकार का कहना है कि गृह मंत्री अमित शाह बयान देंगे। असहमति की तीसरी वजह समय सीमा है क्योंकि विपक्ष चाहता है कि संसद में बहस के लिए कोई समय सीमा निर्धारित न की जाए लेकिन सरकार सदन में 150 मिनट यानी ढाई घंटे के लिए ही बहस करने को राजी है। चौथा और प्रमुख कारण बहस का नियम है जिसके तहत विपक्ष नियम 267 यानी बहस के बाद वोटिंग कराने की मांग कर रहा है तो वहीं सरकार नियम 176 यानी बहस के बाद वोटिंग को तैयार नहीं है।

एक तरफ जहां मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है वहीं दूसरी ओर गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो सदन में आ रहे हैं और न ही चर्चा में शामिल होने की कोई बात कर रहे हैं। गृह मंत्री और रक्षा मंत्री जरूर सदन में आकर अपनी बात कह चुके हैं, पर वे भी नियम 267 के अंतर्गत लंबी और विस्तृत चर्चा के बारे में कोई भी आश्वासन देने से पीछे हट रहे हैं। इस समय मणिपुर एक राष्ट्रीय महत्व का मसला बन गया है। इस मुद्दे पर केवल भारत की संसद नहीं, बल्कि यूरोपीय यूनियन, ब्रिटिश संसद में भी चर्चा की जा रही है। दुनियाभर के प्रतिष्ठित अखबार, मणिपुर पर खबरें और लेख प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसे में भारत के पीएम की दुनियाभर में इस मुद्दे पर मौन की आलोचना हो रही है।

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