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कब मिलेगा बिलकिस बानो को न्याय?

वर्ष 2002 से बिलकिस बानो अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार और परिवार के सदस्यों की हत्या के विरोध में न्याय की गुहार लगा रही है। लेकिन अब तक उन्हें पूर्ण रूप से न्याय नहीं  मिल पाया है। बीते दिन यानी 2 मई को सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई से जुड़ी याचिका पर अंतिम सुनवाई होनी थी जो एक बार फिर स्थगित हो गई है।

 

पिछले साल गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के इन गुनहगारों  की सजा अवधि पूरी होने से पहले ही उन्हें रिहा कर दिया था। जिसके विरोध में  बिलकिस बानो सहित कई लोगों ने  सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की। इन याचिकाओं में अपील कि गयी थी की गैंगरेप के दोषियों को छोड़े जाने का गुजरात सरकार का फैसला रद्द किया जाए। लेकिन इस अपील पर सुनवाई नहीं हो पा रही है। जस्टिस केएम जोसेफ की खंड पीठ ने 2 मई को इस मामले की अंतिम सुनवाई की तारीख तय की थी। जिसकी सुनवाई स्थगित हो गई है। रिपोर्टों के अनुसार सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने आरोपियों को यह तक कह दिया कि ‘वे चाहते ही नहीं, ये बेंच मामले की सुनवाई करे।’

 

सुनवाई स्थगित होने का कारण

 

रिपोर्ट के अनुसार, बिलकिस बानो केस में शामिल आरोपियों की तरफ से पेश हुए कुछ वकीलों ने बिलकिस बानो के हलफनामे पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस मामले में शामिल कुछ आरोपियों को कोर्ट का नोटिस नहीं मिला है और जब तक ये सभी कोर्ट में उपस्थित नहीं होते तब  मामले पर सुनवाई नहीं की जा सकती।
इसपर बिलकिस ने कोर्ट से मांग की थी कि आरोपियों को मिले नोटिस को डीम्ड सर्विस घोषित किया जाए, क्योंकि उन आरोपियों ने कोर्ट में उपस्थिति दाखिल करने का नोटिस लेने से मना कर दिया है। जिसके जवाब में आरोपियों की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि बिलकिस ने हलफनामा में झूठा है कि आरोपियों ने नोटिस लेने से इनकार कर दिया क्योंकि पोस्टल रिकॉर्ड यह कहते हैं कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिल पाया क्योंकि वे शहर में ही नहीं। जिसके कारण 2 मई को होने वाली सुनवाई स्थगित हो गई। यह पहली बार नहीं है की इस मामले की सुनवाई स्थगित हुई हो इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है जिससे  होता है कि आरोपियों को  बचाने का प्रयास किया जा रहा है और बार बार सुनवाई को स्थगित किया जा रहा है ताकि जस्टिस जोसेफ इस   मामले की सुनवाई न करें।

 

क्या है मामला

 

खंड पीठ ने इस मामले की सुनवाई स्थगित तो कर दी है लेकिन इसका मामला कुछ और ही है रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस केएम जोसेफ शुरुआत से ही इस मामले की सुनवाई कर रहें हैं और निरंतर आरोपियों को सजा और बिलकिस को न्याय दिलाने  का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन आने वाली 16 जून को  जस्टिस केएम जोसेफ रिटायर हो रहे हैं। वहीं 20 मई से एक महीने तक सुप्रीम कोर्ट की छुट्टी है ऐसे में छुट्टियों से पहले उनका आखिरी वर्किंग डे 19 मई को है। जस्टिस जोसेफ ने अपनी छुट्टियों को अस्वीकार करते  हुए कोर्ट की छुट्टी के दौरान भी मामले की सुनवाई का आदेश दिया था। जिसपर बिलकिस बानो की वकील आसानी से राजी हो गईं, लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व केंद्र और गुजरात सरकार के वकील सहित  आरोपियों के वकील इस बात के लिए तैयार नहीं हुए।
जिसपर जस्टिस जोसेफ ने अपनी नाराजगी और गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि  कि यह साफ है कि आप नहीं चाहते हैं कि ये बेंच मामले की सुनवाई करे। साथ ही उन्होंने वकीलों को यह तक कह दिया “ये मेरे लिए सही नहीं है।  हमने साफ दिया था कि मामले की सुनवाई निपटारे के लिए होगी। आप कोर्ट के अधिकारी हैं।  आप अपनी जिम्मेदारी न भूलें। आप केस जीत सकते हैं या हार सकते हैं।  लेकिन कोर्ट के प्रति अपनी ड्यूटी ना भूलें। बिलकिस की ओर से वकील शोभा गुप्ता के अलावा, वृंदा ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह ने इस पर आपत्ति जताते हुए इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से 22 मई की तारीख तय करने की अपील की। लेकिन सॉलिसिटर जनरल नहीं माने।  जिसका परिणाम यह हुआ कि मामले की सुनवाई जुलाई तक स्थगित कर दी गई। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मामले की सुनवाई अब जस्टिस जोसेफ नहीं किसी और जज की  खंड पीठ द्वारा किया जायेगा।

 

क्या हुआ था बिलकिस बानो के साथ

 

गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में  59  कारसेवकों की मौत हो गई। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इस हिंसा से बचने के लिए बिलकिस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं। तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकिस के परिवार पर हमला किया था। यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे। बिलकिस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। जिसके बाद साल 2004 में आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था।इस मामले की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद न्यायालय  ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।
सीबीआई की विशेष अदालत ने  21 जनवरी 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा  भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। हालांकि सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था।

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