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गुजरात सरकार को कोरोना का आईना दिखाया तो हाई कोर्ट ने जस्टिस वोरा को बेंच से हटाया

गुजरात सरकार को कोरोना का आईना दिखाया तो हाई कोर्ट ने जस्टिस वोरा को बेंच से हटाया

जस्टिस लोया का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी, हाँ वही जस्टिस लोया जो गुजरात के बहुचर्चित ‘सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ कांड’ की सुनवाई कर रहे थे। 2014 में वह सुनवाई के दौरान रहस्यमय परिस्थितियों में मारे गए थे। क्योंकि मामला एक हाई प्रोफाइल राजनेता से जुडा था। आज 6 साल बाद भी यह पता नहीं चल सका है कि जस्टिस लोया खुद मरे या मारे गए।

जिस हाईकोर्ट गुजरात में जस्टिस लोया अपने फैसले सुनाया करते थे उसी कोर्ट में एक बार फिर जस्टिस लोया प्रकरण दोहराया गया है। लेकिन गनीमत यह रही कि इस बार जस्टिस इलेश जे वोरा जस्टिस लोया बनने से बच गए। मतलब यह कि वह जिंदा है । लेकिन उनको उस बेंच से हटा दिया गया है जिसमें उन्होंने गुजरात की विजय रूपाणी सरकार को कोरोना मामले में आइना दिखाया था।

जस्टिस इलेश वोरा का कसूर सिर्फ यह था कि उन्होंने गुजरात सरकार को कोरोना मामले लापरवाही बरतने पर कडी फटकार लगा दी। यही नहीं बल्कि हाईकोर्ट की जिस बेंच में जस्टिस इलेश वोरा थे उसने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना ‘डूबते हुए टाइटेनिक जहाज’ से कर दी। गुजरात की विजय रूपाणी सरकार को यह नागवार गुजरा। फलस्वरूप जस्टिस इलेश वोरा को उस बेंच से ही निकाल बाहर कर दिया गया है।

आइए पहले आपको वाकिफ कराते हैं गुजरात के उस अतीत से जो 6 साल पूर्व काला अध्याय बनकर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। 2014 मई में मोदी सरकार बनने के बाद गुजरात के चर्चित ‘सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस’ में सीबीआई की अदालत से भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को क्लीनचिट मिली। वह भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष और वर्तमान में देश के गृह मंत्री अमित शाह थे। जैसे ही केंद्र में वर्ष 2014 में मोदी की सरकार बनी वैसे ही एक साल से सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के सख्त और न्यायप्रिय जज जस्टिस जे.टी उत्तपट को इस केस से हटा दिया गया।

जस्टिस उत्तपट इस केस की सुनवाई के दौरान काफी सख्त थे और सत्ता की आहट मिलते ही जो अमित शाह अदालत में उपस्थित नहीं हो रहे थे उस अमित शाह को अदालत में हाजरी लगाने के लिए लगातार समन जारी कर रहे थे। इसी के चलते इस केस की कमान जस्टिस बृजगोपाल हरकिशन लोया को इस मामले की सुनवाई के लिए सौंप दी गई।

शुरुआत में जस्टिस लोया ने अमित शाह को आरोप तय होने तक निजी तौर पर अदालत में हाजिर होने से छूट दे दी थी। लेकिन उन्होंने भी इस बात पर अपनी नाराजगी का इजहार किया था कि अमित शाह मुंबई में मौजूद होने के बावजूद अदालत में हाजिर नहीं हुए। जस्टिस लोया ने 15 दिसंबर 2014 को सुनवाई की तारीख तय की थी, लेकिन 1 दिसंबर को उनकी मौत हो गई, उनकी मौत के तीन साल बाद से ही यह राज खुलने लगा था कि कथित तौर पर उनकी हत्या की गई।

चौंकाने वाली बात यह है कि जस्टिस लोया की मौत के बाद सोहराबुद्दीन फर्ज़ी इनकाउंटर के केस को जस्टिस एम.बी. गोसावी के सूपुर्द कर दिया गया। जिन्होंने 15 दिनों के अंदर पूरे मामले की सुनवाई करते हुए 75 पन्ने का 30 दिसंबर 2014 को ऑर्डर जारी कर दिया। इस मामले में “अमित शाह” को क्लीनचिट दे कर उनको आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

यह तो रही गुजरात की अतीत की बात। आइए अब एक बार फिर आपको ताजा हालातों से वाकिफ कराते हैं। सब जानते हैं कि देश में महाराष्ट्र के बाद गुजरात दुसरे नंबर का राज्य है जहां कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा संक्रमित केस सामने आए हैं। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में कई जनहित याचिका दायर की गई है। अबतक कोरोना और उससे निपटने को लेकर जो जनहित याचिकाएं दाखिल हो रही थीं, उसके सुनवाई का अधिकार गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और इलेश जे वोरा को था। इस बेंच के पास कोरोना से उपजे संकट, प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था और सुविधा के मामलों की सुनवाई का भी अधिकार था।

इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए न्यायाधीश इलेश जे वोरा ने 11 मई को प्रवासी मजदूरों को लेकर गुजरात सरकार की तीखी आ​लोचना की थी। उस आलोचना की देशभर में चर्चा हुई, जिसके कारण गुजरात की भाजपा सरकार के प्रशासनिक अक्षमता की बात भी सामने आई।

मुख्य न्यायाधीश की इस बेंच ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के हालातों को लेकर जहां 11 मई को कहा था कि यहां की व्यवस्थाएं नारकीय हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि ‘यह बहुत ही परेशान करने वाला और दुखद है कि आज की स्थिति में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्थिति बहुत ही दयनीय है, अस्पताल रोग के इलाज के लिए होता है, पर ऐसा लगता है कि आज की तारीख़ में यह काल कोठरी जैसी है, शायद उससे भी बदतर है।’ वहीं कोर्ट ने इसके बाद 22 मई को कहा था कि वेंटीलेटर न होने की वजह से कोरोना के गंभीर रोगियों की संख्या बढ़ी है। इसके कारण मरने वाले मरीजों की संख्या में इजाफा होगा।

अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि वह कृत्रिम तरीके से कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करना चाहती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को यह फटकार तब लगाई है जब अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 377 कोरोना मरीजों की मौत हो चुकी है। यह राज्य में हुई कोरोना मौतों का लगभग 45 प्रतिशत है। उसके कहने का मतलब यह है कि राज्य सरकार जानबूझ कर कोरोना के कम मामले बता रही है, वह जाँच नहीं कर रही है ताकि कोरोना संक्रमण की बड़ी तादाद सामने नहीं आए।

अदालत ने साफ़ शब्दों में कहा, ‘सरकार का यह तर्क ग़लत है कि ज़्यादा जाँच होने से राज्य की 70 प्रतिशत आबादी के इसकी चपेट में आने की बात सामने आएगी, जिससे लोगों में भय फैलेगा। इस आधार पर कोरोना जाँच से इनकार नहीं किया जा सकता है।’

यही नहीं बल्कि हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव पंकज कुमार, सचिव मिलिंद तरवाणे और प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य सेवा व परिवार कल्याण, जयंति रवि को फटकार लगाते हुए उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है। गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य में कोरोना पीड़ितों की हो रही मौतों के लिए वेंटीलेटर की कमी को ज़िम्मेदार ठहराते हुए इसके लिए राज्य सरकार की खिंचाई की है। अदालत के खंडपीठ ने पूछा, ‘क्या राज्य सरकार को इस कड़वे सच की जानकारी है कि पर्याप्त संख्या में वेंटीलेटर नहीं होने की वजह से बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमितों की मौत हो रही है?’

अदालत ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना ‘डूबते हुए टाइटनिक जहाज़’ से करते हुए कहा था, “यह बहुत ही परेशान करने वाला और दुखद है कि आज की स्थिति में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्थिति बहुत ही दयनीय है, अस्पताल रोग के इलाज के लिए होता है, पर ऐसा लगता है कि आज की तारीख़ में यह काल कोठरी जैसी है, शायद उससे भी बदतर है।”

इसके बाद गुरुवार को नई बेंच का गठन कर दिया गया। जिसकी अध्यक्षता चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ कर रहे हैं। इसमें जस्टिस जे. बी. पारडीवाला भी हैं। पर इसमें जस्टिस इलेश वोरा का नाम नहीं है। जिस खंडपीठ ने गुजरात सरकार की आलोचना की थी, उसमें जस्टिस पारडीवाला और जस्टिस वोरा थे। जबकि इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए 29 मई को जो सुनवाई होनी थी, उसके लिए पहले से बेंच बनाई गई थी। उस बेंच में ये दोनों जज थे। फिलहाल अब ऐसे मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ के साथ इलेश जे वोरा की जगह जेपी परदीवाला करेंगे।

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