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निजता के अधिकार को क्या मजबूती देगा नया कानून

संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकों की निजी जानकारियों के गलत इस्तेमाल को रोकने की नीयत से केंद्र सरकार एक विधेयक लेकर आ सकती है। 2019 के शीतकालीन सत्र में तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पहली बार ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक’ को संसद में रखा था। तब इसका भारी विरोध विपक्षी दलों द्वारा किया गया। इन दलों का आरोप था कि डेटा संरक्षण के नाम पर केंद्र सरकार नागरिकों की निजता के अधिकार को कमतर करने का प्रयास कर रही है। सांसदों की मांग पर इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के हवाले कर दिया गया था। दो वर्ष के चिंतन-मंथन बाद इस समिति ने कई संशोधनों के सुझाव सरकार को दिए हैं। अब यह देखना बाकी है कि इस विधेयक को संसद में सर्वसहमति से मंजूरी मिलती है या फिर विपक्षी दल अब भी इसकी कमियों को सामने रखकर इसका विरोध करते हैं।

वर्तमान में दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों पर लगातार अपनी डेटा स्टोरेज सुविधा को लेकर सवाल खड़े होते आए हैं। वर्तमान में ही नहीं, अतीत में भी इन दिग्गज कंपनियों से डेटा स्टोरेज सुविधा को सार्वजनिक करने के मुद्दे पर बात होती आई है। इस मुद्दे को गंभीरता समझते हुए 2019 में संसद ने एक समिति गठित की थी। इस संयुक्त संसदीय समिति द्वारा अब डेटा संरक्षण बिल को अंतिम रूप दे दिया गया है। इस निजी डेटा संरक्षण बिल 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत बुधवार, 17 नवंबर को मंजूरी दे दी। इस संसदीय समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद पी पी चौधरी हैं। अब उम्मीद जताई जा रही है कि यह निजी डेटा संरक्षण विधेयक 2019, संसद के शीतकालीन सत्र 2021, जो कि 29 नवंबर से शुरू होने जा रहा है, में पेश किया जाएगा।

गौरतलब है कि कई दौर की बैठकों और रिपोर्ट्स तैयार के बाद विचार-विमर्श करके बिल को मंजूरी दी गई है। इस बिल को अंतिम रूप देने में जेपीसी (Joint Parliamentary Committee) को 2 साल लग गए। 5 बार बिल का विस्तार किया गया है। ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि आखिर इस बिल से देश पर क्या असर होने वाला है? बिल में है क्या? ऐसे तमाम सवाल हैं जो लोगों के जेहन में हैं। दरअसल, ये बिल भारतीय नागरिकों के डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा से संबंधित है। इस बिल में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है। डेटा संरक्षण विधेयक को पहली बार 2019 में संसद में लाया गया था और उस समय इसे जेपीसी के पास विचार के लिए भेजा गया था।

‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019’ ऐतिहासिक कानून है जिसका उद्देश्य अपने व्यक्तिगत डेटा से संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करना है। इसके अलावा इस बिल का मकसद यह देखना है कि विभिन्न कंपनियां और संगठन भारत के अंदर व्यक्तियों के डेटा का उपयोग कैसे करते हैं। विधेयक के 2019 के मसौदे में एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) के गठन का प्रस्ताव है, जो देश के भीतर सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य संगठनों द्वारा उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत डेटा के उपयोग को नियंत्रित करेगा।

‘इस्लामोफोबिक’ बोल सोशल मीडिया पर कर रही हैं ट्रेंड
इस बिल में सोशल मीडिया के जरिए निजी जानकारी जुटाने वाली कंपनियों के लिए डेटा स्थानीयकरण मानदंड निर्धारित करने की भी उम्मीद है। 2019 में प्रस्तावित मसौदा विधेयक का सोशल मीडिया फर्मों, विशेषज्ञों और यहां तक कि मंत्रियों ने भी विरोध किया था। तब इस कानून को लेकर बहुत सारा संशय था। यह आशंका जताई गई थी कि इस कानून की आड़ में केंद्र सरकार निजता के अधिकार को मजबूत बनाने के बजाए कम करने का प्रयास कर रही है। डेटा संरक्षण विधेयक में 200 से अधिक संशोधन का सुझाव दिया। इस विधेयक को पहले ‘पर्सनल डेटा सुरक्षा बिल’ नाम दिया गया था लेकिन अब इसे ‘डेटा सुरक्षा बिल’ कहा जा रहा है। ऐसा करने के पीछे यह कारण दिया कि डेटा व्यक्तिगत के साथ-साथ गैर व्यक्तिगत भी है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और देश की अखंडता जैसे अहम मुद्दे भी शामिल हैं।

150 देशों का था इंतजार!

अध्यक्ष पी पी चौधरी द्वारा समिति की तरफ से प्रस्तावित संशोधनों में करीब 170 संशोधन माने गए हैं। प्रस्तावित कानून का इस समिति ने बारीकी से अध्ययन किया है। भविष्य में होने वाले संभावित वैश्विक प्रभावों को भी ध्यान में रखकर बिल बनाया गया है। खबरों में कहा जा रहा है कि लगभग 150 देश भारत द्वारा खुद का अपना डेटा संरक्षण कानून बनाने का इंतजार कर रहे हैं।
पी पी चौधरी का बिल पर कहना है, हम एक ऐसा कानून बनाने की प्रक्रिया में हैं जिसका वैश्विक प्रभाव देखने को मिलेगा। यह कानून अंतरराष्ट्रीय मानकों का होगा। हमने इस पर चर्चा के लिए बहुत समय दिया है और कानून के सभी पहलुओं के बारे में सभी की संतुष्टि के लिए बात की है। एक बार जब रिपोर्ट संसद में पेश की जाती है, तो इसके कानून बनने के लिए चर्चा शुरू करने से पहले कैबिनेट द्वारा इसे मंजूरी देने की संभावना है। पी पी चौधरी से पहले समिति की अध्यक्षता लोकसभा सांसद मीनाक्षी लेखी करती थीं, जिनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद चौधरी को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। लेखी ने इस बिल को लेकर 100 घंटे से अधिक बैठकें की थीं, जबकि चौधरी ने 40 घंटे की 12 बैठकें की तब जाकर अब बिल को मंजूरी मिल पाई है।

बिल पर असहमति

कुछ सांसदों ने इस बिल को लेकर अपनी असहमति भी जताई है। कांग्रेस नेता जयराम नरेश ने अपने असहमति नोट में कहा है कि उन्होंने बिल के सेक्शन 35 में संशोधन का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा कि सेक्शन 35 केंद्र सरकार को किसी भी सरकारी एजेंसी को इस पूरे एक्ट से छूट देती है जिसका मतलब निकलता है सरकारी एजेंसियों को बिना किसी रोक टोक के अधिकार मिलेगा। उन्होंने कहा कि ‘मैंने संशोधन में कहा था कि सरकार को सरकारी एजेंसियों को छूट देने से पहले संसदीय मंजूरी लेनी होगी।’ जयराम नरेश के साथ-साथ मनीष तिवारी और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और डेरेक ओ ब्रायन असहमति नोट लिखे हैं। भाजपा सांसद अमर पटनायक ने भी इस डेटा संरक्षण बिल पर आपत्ति जताई थी, लेकिन विधेयक में बदलाव को देखते हुए उनके असहमति नोट न लिखने की उम्मीद है। पटनायक की आपत्ति थी कि राज्य डेटा संरक्षण प्राधिकरणों के लिए विधेयक में कोई प्रावधान नहीं है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा इस विधेयक को 2019 दिसंबर में लोकसभा में पेश किया गया था। सदन के सदस्यों के आग्रह पर मामला संसदीय समिति के हवाले किया गया। अब इस विधेयक को लेकर समिति ने फाइनल रिपोर्ट तैयार कर ली है। अब देखने वाली बात यह है कि संसद के शीतकालीन सत्र में यदि यह विधेयक रखा जाता है तो विपक्षी दल इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे। चूंकि अब यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति में हुए विचार-विमर्श के बाद संसद में लाया जा रहा है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि इसमें नागरिकों की निजता के अधिकार को सुरक्षित रखने संबंधी सभी जरूरी कदम उठाए गए होंगे।

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