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महिला आरक्षण बिल क्या है और कब होगा लागू

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संसद में शुरू हुए विशेष सत्र के बाद से ही महिला आरक्षण बिल चर्चे में रहा है। केबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण से जुड़े  विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद से ही  यह एक बड़ा राजनितिक मुद्दा बनकर उभरा है। यह बिल लगभग पिछले 27 सालों से संसद में लटका हुआ है, इस विधेयक के तहत संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा जायेगा।

 

इसके समर्थन और विरोध में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के अपने अलग- अलग विचार हैं। हालांकि इस बिल में कमियों के बावजूद यह बिल 20 सितम्बर को लोकसभा में पास हो गया है। बिल के पक्ष में 454 मत पड़े जबकि दो सांसदों ने इसके विरोध में वोट दिया। अब अगर यह विधेयक राजयसभा से भी पास हो जाता है तो यह अधिनियम के रूप में लागू हो जायेगा। तो अगली जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद की जाएगी। जिसे लेकर विवाद खड़ा होता नजर आ रहा है।

 

क्या कह रहा विपक्ष 

 

लगभग सभी विपक्षी पार्टियां भी केंद्र द्वारा जारी किये गए इस विधेयक  में नजर हैं हालांकि इस बिल में कुछ कमियां बताई गई है। लेकिन इसका विरोध नहीं हुआ है। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियों के लिए यह बिल चिंता का विषय है क्योंकि, यह विधेयक पिछले करीब 27 वर्षों से संसद में लटका पड़ा है भाजपा से पहले कांग्रेस व अन्य पार्टियां भी इस बिल को संसद में पेश कर चुकी हैं पर यह दोनों सदनों में पास नहीं हो पाया था। रिपोर्ट्स के अनुसार विपक्षी पार्टियों का मानना है कि यह बिल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण लागू नहीं हो पाएगा। इसके बदले बीजेपी महिला आरक्षण बिल को लाकर वाहवाही बटोरने में लगी है। वह दावा कर रही है कि जो काम दशकों से नहीं हो पाया उसने हिम्मत दिखाकर एक झटके में कर दिया।

केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया यह बिल अगर राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो एक अधिनियम के  रूप में लागू हो जायेगा। लेकिन जैसा कि केंद्र सरकार ने कहा है कि दोनों सदनों से पास होने के बाद यह बिल जनगणना के बाद ही लागू होगा। इसके आधार पर संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया की जा सकती है। इस आधार पर 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण को वास्तविक रूप दे पाना संभव नहीं है।

जिसपर विपक्षी पार्टी कांग्रेस का ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “महिला आरक्षण बिल की क्रोनोलॉजी समझिए यह बिल आज पेश जरूर हुआ लेकिन हमारे देश की महिलाओं को इसका फायदा जल्द मिलते नहीं दिखता। ऐसा क्यों? क्योंकि यह बिल जनगणना के बाद ही लागू होगा। आपको बता दें, 2021 में ही जनगणना होनी थी, जोकि आज तक नहीं हो पाई। आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। खबरों में कहीं 2027 तो 2028 की बात कही गई है। इस जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर महिला आरक्षण बिल लागू होगा। मतलब PM मोदी ने चुनाव से पहले एक और जुमला फेंका है और यह जुमला अब तक का सबसे बड़ा जुमला है। मोदी सरकार ने हमारे देश की महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है, उनकी उम्मीदों को तोड़ा है।”  वहीं कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि मोदी सरकार को महिला आरक्षण बिल लाने में 9 साल क्यों लग गए। सरकार नई बिल्डिंग का इंतजार कर रही थी। क्या पुरानी संसद में वास्तु दोष था?

 

साथ ही आम आदमी पार्टी ने भी इसपर सवाल उठाते हुए कहा है कि परिसीमन और जनगणना के प्रावधानों को क्यों शामिल किया गया है? इसका मतलब है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण लागू नहीं किया जाएगा। उसने मांग की है कि परिसीमन और जनगणना के प्रावधानों को हटाया जाए। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए महिला आरक्षण लागू किया जाए।

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लोकसभा में जब से महिला आरक्षण बिल पेश और पास हुआ है, तब से इसको लेकर बहस जारी है। एक ओर कोई इस विधेयक में एससी-एसटी और ओबीसी को शामिल किए जाने की बात कर रहा है तो दूसरी ओर कोई अल्पसंख्यकों की बात कर रहा है। वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मैं इस बिल का विरोध करता हूं। क्योंकि इस बिल में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं दिया गया है। ओवैसी का कहना है कि देश में 50 फीसदी से अधिक ओबीसी समुदाय के लोग हैं। इसके बावजूद भी सरकार उन्हें आरक्षण देने से मना कर रही है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं की आबादी 7 प्रतिशत है। संसद में उनका प्रतिनिधित्व केवल 0.7 फीसदी है। हम मुस्लिम और ओबीसी महिलाओं के आरक्षण के लिए लड़ रहे हैं इसलिए हमने इसका विरोध किया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने जताई ख़ुशी

 

संयुक्त राष्ट्र संघ भी भारत में महिला आरक्षण के पक्ष में नजर आ रहा है। एक बयान में, संयुक्त राष्ट्र महिला की भारत प्रतिनिधि सुसान फर्ग्यूसन ने कहा है कि संसद में महिलाओं के लिए 30 फीसदी प्रतिनिधित्व का महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल करना महिला सशक्तिकरण के लिए सकारात्मक परिणाम के लिए जाना जाता है।

फर्ग्यूसन का कहना है कि इसे यह एक ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी कदम है जो महिलाओं को सशक्त बनाता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक लैंगिक समानता, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और नेतृत्व की स्थिति में उनकी बढ़ती भूमिका के लिए काम करने वाले लैंगिक अधिवक्ताओं और संगठनों के लिए बहुत खुशी का क्षण है। यूएन का यह भी कहना है कि राजनीति में महिलाओं की स्थिति में पहले से सुधार आया है लेकिन यह काफी नहीं है। वैश्विक स्तर पर महिलाएं वर्तमान में केवल 26.7 प्रतिशत संसदीय सीटों और 35.5 प्रतिशत स्थानीय सरकारी पदों पर आसीन हैं।

 

क्या है महिला आरक्षण विधेयक

 

महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है।  इस विधेयक के आधार पर लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की सीटों का ये आरक्षण 15 सालों के रोटेशन पर लागू होगा। एक सीट 15 सालों के लिए आरक्षित रहेगी। जब 15 साल में चक्कर पूरा हो जाएगा तो फिर महिलाओं के लिए कोई दूसरी सीट अगले 15 सालों के लिए आरक्षित हो जाएगी। यह पहली बार नहीं है कि महिला आरक्षण बिल संसद में पेश किया जाएगा इससे पहले भी कई बार इस बिल को संसद में पेश किया जा चुका है। सबसे पहले यह बिल साल 1996 में एचडी देवगौड़ा द्वारा संसद में पेश किया गया था। आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, जो कुल सांसदों का मात्र 14 प्रतिशत है। वहीं राज्यसभा में मात्र 32 महिला सांसद हैं, जो कुल राज्यसभा सांसदों का 11 प्रतिशत है। विधेयक के तहत लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए।

 

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कब कब पेश किया गया बिल?

 

यह बिल इससे पहले साल 2008 में संसद में पेश किया गया था। वहीं इससे पहले इस बिल को वर्ष 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया गया जा चूका है। गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और 7 सिफारिशें की थीं। जिसमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण शामिल था। इसमें अंतर ये था कि पहला विधेयक राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था तो वहीं दूसरा विधेयक (2008) संविधान द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था।

 

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