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क्या है Pegasus फोन हैकिंग विवाद जिसको लेकर संसद में भी हुआ हंगामा ?

मॉनसून सत्र के पहले दिन की शुरुआत हंगामे के साथ हुई है।  लोकसभा-राज्यसभा की कार्यवाही कल सुबह 11 बजे के लिए स्थागित कर दिया गया है। इस दौरान Pegasus फोन टैपिंग मामले पर सदन में सरकार को विपक्ष ने घेरने की कोशिश की। इस पर सरकार की तरफ से बचाव के लिए उतरे संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि Pegasus फोन टैपिंग कर जासूसी कराने के आरोप गलत है। देश में फोन टैपिंग का कानून काफी सख्त है, ऐसा करना किसी भी तरह से संभव नहीं है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि फोन टैपिंग को लेकर सामने आए डेटा काफी भ्रामक नजर आ रहा है।

वहीं आम आदमी पार्टी के नेता और पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और सुशील कुमार गुप्ता ऊपरी सदन में पोस्टर पकड़े हुए दिखाई दिए, जिसमें लिखा था, “जासूसी करना बंद करो! ”

हाल ही में प्राइवेसी को लेकर यूजर्स की चिंता पेगासस स्‍पाईवेयर से जुड़े खुलासों ने और बढ़ा दी है। सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है कि पेगासस पुराने तरीकों से हैकिंग को अंजाम नहीं देता है। जाहिर है टेक्नोलॉजी इतनी बदल चुकी है कि अब समय के अभाव में भी टेक्नोलॉजी की मदद से आपका काम मिनटों में हो जाता है। पेगासस अटैक एक ‘जीरो-क्लिक’ हमले के जैसा होता है। यानी फोन के मालिक को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं। क्योंकि ज्यादातर हैकिंग लिंक के जरिए आपको नकली वेब पेज पर ले जाकर की जाती है। अगर आप उनके झांसे में आ गए तो आप वहां अपने एकाउंट की जानकारी दर्ज करने की गलती कर बैठते हैं और यह हैकर के सर्वर में चला जाता है। इसके बाद हैकर इन जानकारियों का इस्तेमाल कर आपके बैंक खाते या क्रेडिट कार्ड से रकम को हड़प लेता है।

ताकतवर स्पाईवेयर है Pegasus

दुनिया का सबसे ताकतवर स्‍पाईवयर पेगासस है ऐसा इसलिए क्योंकि इसका पता लगा पाना लगभग असम्भव है। लेकिन अब पेगासस का ये काला कारोबार खुलकर सबके सामने आ गया है और ये सामने आया है फ्रांस की संस्था Forbidden Stories और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty international) द्वारा किए गए खुलासे से। Forbidden Stories और एमनेस्टी इंटरनेशनल मिलकर खुलासा किया है कि दुनिया भर की सरकारें इजरायली कंपनी NSO के स्पाइवेयर पेगासस के जरिए पत्रकारों, कानूनविदों, नेताओं और यहां तक कि नेताओं के रिश्तेदारों की जासूसी करा रही हैं। इस जांच को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया है। सामने आई लिस्ट में 50 हजार लोगों के नाम बताए गए है। इसमें पहली लिस्ट पत्रकारों की निकली है जिसमें 40 भारतीय शामिल हैं।

इसी के साथ अब पेगासस स्पाइवेयर एक बार फिर चर्चा में है। वाशिंगटन पोस्ट सहित दुनिया भर के सोलह मीडिया आउटलेट्स ने पेगासस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में दावा किया है कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कुछ अधिकारियों की जासूसी करने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस स्पाइवेयर के जरिए भारत में 40 से ज्यादा पत्रकारों पर स्मार्टफोन से नजर रखी जा रही है। इससे पहले 2019 में Pegasus स्पाइवेयर इसलिए चर्चा में था क्योंकि यह WhatsApp के जरिए कुछ अहम लोगों पर नजर रख रहा था। स्पाइवेयर इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया था और इसे केवल एक विशेष देश की सरकार को बेचा जाता है। साथ ही इसकी कीमत अरबों में है। अब एक बार फिर पेगासस स्पाइवेयर पत्रकारों की निगरानी के मुद्दे पर चर्चा में आ गया है। इस मौके पर यह स्पाइवेयर कैसे काम करता है? और इसे कौन खरीद सकता है? आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ अहम सवालों के जवाब।

देश के साथ-साथ विदेशी पत्रकारों के भी नाम

लीक हुई सूची में हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के शीर्ष पत्रकार भी शामिल हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता, द वायर के संस्थापक , संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और द वायर की लेखक रोहिणी सिंह, एम के वेणु शामिल हैं। इस सूची में एक मैक्सिकन पत्रकार Cecilio Pineda Birto ke के का नाम भी शामिल है जिनकी हत्या कर दी गई थी। साथ ही इस लिस्ट में  UAE की पहली महिला पत्रकार रौला खलाफ, मोरक्को के स्वतंत्र पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता उमर रेडी और अजरबैजानी खोजी पत्रकार खदीजा इस्मायिलोवा के नाम भी हैं।

Pegasus सॉफ्टवेयर किसने बनाया?

पेगासस स्पाइवेयर एक इजरायली निगरानी तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है। इस कंपनी को Q साइबर टेक्नोलॉजी के नाम से भी जाना जाता है। Pegasus कोई स्पाइवेयर नहीं है जिसे आसानी से ऑनलाइन पाया जा सकता है। 2009 में स्थापित ये कंपनी अपने जासूसी उत्पादों के लिए जानी जाती है। कंपनी के अनुसार, एनएसओ खुफिया एजेंसियों, खोज और बचाव कार्यों और ड्रोन हमलों के खिलाफ उपायों के लिए कानून विश्लेषण और डेटा विश्लेषण के लिए प्रोडक्ट भी बनाती है।

Pegasus स्पाइवेयर कौन खरीद सकता है?

NSO समूह का दावा है कि कंपनी केवल अधिकृत सरकारों के साथ काम करती है। इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल मेक्सिको और पनामा की सरकारें कर रही हैं। 40 देशों में कंपनी के 60 ग्राहक हैं। कंपनी के मुताबिक, इसके 51 फीसदी उपयोगकर्ता खुफिया एजेंसियों से, 38 फीसदी कानून प्रवर्तन एजेंसियों से और 11 फीसदी सेना के हैं। इसलिए सवाल यह है कि क्या यह सरकार के आशीर्वाद से किया गया था। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, एनएसओ सरकार को स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संकट से बचने में मदद करने के लिए सबसे अच्छी तकनीक बनाता है। कंपनी ने कहा कि एजेंसियां इसका इस्तेमाल अपराध और आतंकवाद को रोकने के लिए करती हैं।

क्या अनगिनत लोगों पर नजर रखना संभव है?

एनएसओ ग्रुप के मुताबिक, पेगासस एक व्यापक निगरानी तकनीक नहीं है। इसका मतलब है कि कई लोगों पर इसकी निगरानी नहीं की जा रही है। यह केवल कुछ खास लोगों के मोबाइल से डेटा एकत्र करता है जो अपराध या आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में शामिल हैं। साथ ही कंपनी Pegasus को खुद हैंडल नहीं करती

है और इसके इस्तेमाल से अनजान है। कंपनी बताती है कि एनएसओ देश में सरकार और एजेंसी को पेगासस का लाइसेंस देता है और इसे खुद संचालित नहीं करता है। साथ ही इसका उपयोग कैसे किया जाता है, इसके लिए यह जिम्मेदार नहीं है।

इस स्पाइवेयर का उपयोग करने में कितना खर्च आता है?

NSO स्पाइवेयर को लाइसेंस के रूप में बेचता है और इसकी कीमत अनुबंध के आधार पर होती है। कंपनी एक लाइसेंस के लिए अधिकतम 70 लाख रुपये चार्ज करती है। एक लाइसेंस से कई स्मार्टफोन को ट्रैक किया जा सकता है। 2016 तक NSO समूह ने केवल 10 लोगों की जासूसी करने के लिए कम से कम 9 करोड़ रुपये लिए थे। 2016 की मूल्य सूची के अनुसार, एनएसओ समूह ने 10 उपकरणों को हैक करने के लिए अपने ग्राहकों से ग्राह 650,000 (लगभग 4.84 करोड़ रुपये) लिए थे। इसके अलावा स्थापना शुल्क 66 लाख (करीब 3.75 करोड़ रुपए) था।

Pegasus का उपयोग करके आपके फ़ोन से कौन सा डेटा चुराया जा सकता है?

पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके, हैकर्स आपके एसएमएस रिकॉर्ड, संपर्क विवरण, कॉल इतिहास, कैलेंडर रिकॉर्ड, ईमेल, त्वरित संदेश और ब्राउज़र इतिहास प्राप्त कर सकते हैं। NSO के उत्पाद ब्रोशर के अनुसार, Pegasus WhatsApp, Viber, Skype और BlackBerry Messenger पर आसानी से जासूसी कर सकता है। यह तस्वीरें भी ले सकता है, कॉल रिकॉर्ड कर सकता है, परिवेश रिकॉर्ड कर सकता है और यहां तक कि उपयोगकर्ताओं की जानकारी के बिना उनके स्क्रीनशॉट भी ले सकता है। साथ ही यह स्पाइवेयर काम के बाद फोन से अपने आप डिलीट हो जाता है।

यह सॉफ्टवेयर फोन में कैसे इंस्टाल होता है?

इसे पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके दूर से और गुप्त रूप से फोन में स्थापित किया जाता है। निगरानी के लिए फ़िशिंग संदेश फोन में पेगासस को स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका है।  यह सॉफ्टवेयर स्मार्टफोन में बिना फोन नंबर या ईमेल आईडी के बेस ट्रांसीवर स्टेशन जैसे नेटवर्क के जरिए इंस्टॉल किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर एंड्रॉइड, आईओएस, विंडोज फोन, ब्लैकबेरी, सिम्बियन और टिज़ेन को सपोर्ट करता है।

इस स्पाइवेयर को काम करने के लिए क्या चाहिए?

पेगासस को संचालित करने के लिए एक बड़ी आईटी संरचना की आवश्यकता होती है। इसके लिए एनएसओ ग्रुप के कर्मचारी अपने ग्राहकों की साइट पर जाकर इन सभी सुविधाओं को स्थापित करते हैं। कंपनी के ब्रोशर में यह भी कहा गया है कि एनएसओ ग्राहकों के परिसर में पेगासस हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए एक वेब सर्वर, संचार मॉड्यूल, सेलुलर संचार मॉड्यूल, अनुमति मॉड्यूल, डेटा संग्रहण, सर्वर सुरक्षा, सिस्टम हार्डवेयर इंस्टॉलेशन, ऑपरेटर कंसोल और पेगासस ऐप की आवश्यकता होती है। इसके लिए एक डेस्कटॉप कोर i5 प्रोसेसर, 3 जीबी रैम और 320 जीबी हार्ड ड्राइव और विंडोज 7 ओएस की आवश्यकता होती है। इसके अलावा कुछ और खास चीजों की भी जरूरत होती है।

मीडिया संगठनों को यह डेटा कैसे मिला?

दरअसल, यह डेटा सबसे पहले पेरिस स्थित मीडिया एनजीओ फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को लीक किया गया था। बाद में इसे रिपोर्टिंग कंसोर्टियम के हिस्से के रूप में द वाशिंगटन पोस्ट, द गार्जियन सहित 17 मीडिया संगठनों के साथ साझा किया गया। लीक हुए डेटा में 50000 से अधिक फोन नंबर सूचीबद्ध हैं। हालांकि भारत सरकार की ओर से अपने स्तर से खास लोगों की निगरानी संबंधी आरोपों को नकारा गया है। सरकार ने कहा,‘ इससे जुड़ा कोई ठोस आधार या सच्चाई नहीं है।’

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