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क्या है ‘वन नेशन वन फर्टिलाइजर योजना’, 2 अक्टूबर से देश में लागू

केंद्र की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘एक देश एक राशन कार्ड’ लागू होने के लगभग तीन साल पूरे होने के बीच अब वन नेशन वन फर्टिलाइजर योजना लागू की गई है। ‘एक देश एक राशन कार्ड’ के तहत राशन कार्ड धारक देश के किसी भी हिस्से की सरकारी राशन दुकान से कम कीमत पर अनाज खरीद सकते हैं। उसी तरह अब केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने देश में ‘एक देश एक उर्वरक’ नीति लागू की है। इन्हीं नीतियों के तहत प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना पूरे देश में लागू की गई है। जिसके बाद से इस नीति को लेकर देशभर से आलोचनाएं सामने आने लगी हैं।

क्या है ‘एक देश एक उर्वरक’ योजना?

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने ‘एक देश एक उर्वरक’ योजना को लेकर 24 अगस्त को सर्कुलर जारी किया है। इस हिसाब से 2 अक्टूबर 2022 से यानी गांधी जयंती से देश में बिकने वाले सभी सब्सिडी वाले रासायनिक उर्वरक ‘एक देश एक उर्वरक ‘ योजना के तहत बेचे जाएंगे। सभी उर्वरक कंपनियों को पैकेजिंग पर एक ही पैकेजिंग और टेक्स्ट प्रिंट करना होगा। उर्वरक कवर के 75 प्रतिशत हिस्से पर सरकार के निर्णय के अनुसार प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना मुद्रित करना होगा। इसमें बड़े अक्षरों में प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक योजना का उल्लेख है। इसके अलावा संबंधित उर्वरक की बोरी की मूल लागत, सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और सभी करों सहित बिक्री मूल्य का उल्लेख करना होगा। शेष 25 प्रतिशत क्षेत्र में कंपनी अपना नाम और अन्य जानकारी प्रिंट कर सकेगी।

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आख़िर मजबूरी क्या है?

 

फिलहाल कंपनियों द्वारा किए जा रहे लिफाफों की छपाई 15 सितंबर के बाद नहीं की जा सकती है। गांधी जयंती के बाद कंपनियों को स्पष्ट शब्दों में सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही उर्वरक बेचने के लिए मजबूर किया गया है। पुरानी पैकेजिंग में फर्टिलाइजर बैग 31 दिसंबर 2022 तक बेचे जाने हैं। उसके बाद पुराने बाड़े में खाद की बिक्री नहीं हो सकेगी। पहले भी केंद्र सरकार द्वारा रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी दी जा रही थी। हालांकि, ऐसा पहली बार हो रहा है कि कवर और उस पर लगे कंटेंट को लेकर जबरदस्ती की जा रही है। पहले सरकारी सब्सिडी का आंकड़ा उर्वरकों की पैकेजिंग पर ही छपा था लेकिन नीचे की तरफ लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सभी कंपनियां सभी उर्वरकों की एक जैसी पैकेजिंग करने को मजबूर हैं।

पहले कंपनियां उर्वरकों में सामग्री के अनुसार उर्वरकों के नाम निर्धारित करती थीं। अब सभी उर्वरक कंपनियां खाद के नाम के साथ एक समान पैकेजिंग करने को मजबूर हैं। उर्वरकों के नाम भारत यूरिया, भारत एनपीके, भारत डीएपी, भारत एमओपी होंगे। ऐसा लगता है कि सरकार ने उर्वरकों के नाम पर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की नीति बनाई है। सवाल उठाया जा रहा है कि इससे राष्ट्रवाद को बल मिलेगा या भाजपा को। वर्तमान में सरकार द्वारा प्रचारित उर्वरक बोरियों के नमूनों में बड़े अक्षरों में नाम केवल हिंदी भाषा-देवनागरी लिपि में है। यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि नाम तमिल, तेलुगू/कन्नड़, मलयालम लिपियों में इतनी प्रमुखता से छापा जाएगा या नहीं कि यह दक्षिणी राज्यों में भी हिंदी में छपे बैगों की बिक्री को मजबूर करेगा।

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उर्वरक उद्योग की क्या भूमिका है?

 

केंद्र सरकार की योजना का उर्वरक उद्योग की ओर से विरोध के संकेत मिल रहे हैं। उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा कि उर्वरक उद्योग की स्थिति खराब  हो गई है। क्योंकि सरकार बड़े पैमाने पर रासायनिक उर्वरकों को सब्सिडी दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उर्वरकों की कीमत दोगुनी या तिगुनी हो गई है। किसान महंगी खाद खरीदने को तैयार नहीं हैं। इसलिए उर्वरक उद्योग में मंदी है। इस तरह की बाध्यता थोपना उद्योग के हित में नहीं है।

उर्वरक कंपनियों की समस्याएं क्या हैं?

 

किसान पहले नाम (ब्रांड) से उर्वरक खरीदना पसंद करते थे। उदाहरण के लिए दीपक फर्टिलाइजर के ‘महाधन’ उर्वरक का व्यापक रूप से किसानों द्वारा उपयोग किया जाता था। अब ऐसे उर्वरकों का कोई नाम नहीं होगा। सभी कंपनियों के नाम एक जैसे केमिकल इंग्रीडिएंट्स के होने जा रहे हैं। अब किसानों को कंपनी का नाम देखकर ही खरीदना होगा क्योंकि उर्वरकों के नाम वही होंगे। कंपनियां अपने उर्वरकों को बढ़ावा देने की कोशिश करती थीं, अब ऐसा नहीं है। इससे सवाल उठता है कि उर्वरक कंपनियां अपने उत्पादों का विज्ञापन कैसे करेंगी ?

उर्वरकों की मांग कितनी है? 

 

देश को अकेले खरीफ सीजन के लिए 35.43 मिलियन टन विभिन्न प्रकार के उर्वरकों की आवश्यकता है। इनमें से अधिकांश उर्वरक आयात किए जाते हैं। देश में रासायनिक उर्वरकों का उत्पादन न्यूनतम है, उर्वरकों के मामले में देश आत्मनिर्भर नहीं है। इसलिए हमें रासायनिक उर्वरकों और उर्वरकों के उत्पादन के लिए बेलारूस, रूस, यूक्रेन, चीन, हॉलैंड, इज़राइल आदि देशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। देश को एक साल में करीब 500 लाख टन उर्वरक की जरूरत होती है। जबकि महाराष्ट्र को खरीफ और रबी सीजन में एक साथ 40 लाख टन उर्वरक की जरूरत है।

देश में उर्वरक उद्योग का विस्तार

यूक्रेन-रूस युद्ध के परिणामस्वरूप दुनिया भर में रासायनिक उर्वरकों और उर्वरक कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि हुई है। इसलिए वित्तीय वर्ष 2022-23 में केंद्र सरकार द्वारा रासायनिक उर्वरकों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी की कुल राशि दो ट्रिलियन रुपये तक जाने की उम्मीद है। दो ट्रिलियन रुपए देश की अर्थव्यवस्था के मुकाबले बहुत बड़ा है।

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