राज्यसरकार और राज्यपाल के बढ़ते विवादों के कारण कई राज्यों की सरकार ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिस पर गत सप्ताह न्यायालय ने पंजाब सहित कई राज्यों के राज्यपालों को फटकार लगाते हुए विधेयकों को लटकाये रखने पर नाराजगी जाहिर की थी। तमिलनाडु सरकार द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के खिलाफ राज्यापल के विरोध में दाखिल की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायलय ने आज ( 20 नवंबर ) राज्यपाल आरएन रवि से सवाल किया कि ये बिल साल 2020 से लंबित थे। वे तीन साल से क्या कर रहे थे ?
साथ ही तमिलनाडु में विधेयकों पर मंजूरी देने में राज्यपाल की ओर से देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि राज्यपालों को राजनीतिक पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का रुख करने तक इंतजार क्यों करना पड़ता है। दरअसल पंजाब राज्यपाल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और नोटिस किये जाने से पहले ही तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 लंबित विधेयक राज्य सरकार को वापस लौटा दिए गए थे। जिससे नाराज राज्य सरकार ने इन विधेयकों को लेकर तमिलनाडु विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और राज्यपाल के पास वापस भेज दिया। जिस पर कोर्ट ने कहा है कि विधानसभा ने विधेयकों को फिर पारित कर दिया है और राज्यपाल को भेज दिया है। अब इस पर अगली सुनवाई 1 दिसंबर को होगी।
पंजाब राज्यपाल को लगा चुका फटकार
सरकार और राज्यपाल के बीच इन विवादों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार राज्यपाल व राज्य सरकार को आपस में मिलकर इन मुद्दों को सुलझाना चाहिए। साथ ही राज्यपाल को प्रस्तुत बिलों पर निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ने के लिए कहा। कोर्ट ने राज्यपाल को फटकार लगते हुए कहा कि क्या राज्यपाल को इस बात का जरा भी अंदेशा है कि वो आग से खेल रहे हैं, अगर राज्यपाल को लगता भी है कि बिल गलत तरीके से पास हुआ है तो उसे विधानसभा अध्यक्ष को वापस भेजना चाहिए। विधेयकों को रद्द किये जाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए मुख्य न्यायाधीश ने पंजाब राज्यपाल के वकील से पूछा कि अगर विधानसभा का कोई सत्र अवैध घोषित हो भी जाता है तो क्या सदन द्वारा पास किये गए सारे बिल भी कैसे गैरकानूनी हो जाएगा? अगर राज्यपाल इसी तरीके से बिल को गैरकानूनी ठहराते रहे तो क्या देश में संसदीय लोकतंत्र बचेगा? कानूनी रूप से राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है, लेकिन पंजाब की स्थिति को देखकर लगता है कि सरकार और उनके बीच बड़ा मतभेद है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
विधानसभा में राज्यपाल की भूमिका
संविधान के अनुच्छेद-174 के तहत इसके अनुसार राज्यपाल को प्रत्येक छह माह में कम-से-कम एक बार अवश्य आहूत किया जाए। परंतु राज्यपाल को मंत्रिमंडल की “सहायता और सलाह” पर कार्य करना आवश्यक है। इसका अर्थ है की राज्यपाल सदन को आहूत करता है तो यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि मंत्रिमंडल की “सहायता और सलाह” पर किया जाता है। हालांकि आपात स्थिति में राज्यपाल के पास स्व विवेक के आधार पर सभा को बुलाने और किसी भी समय स्थगित करने का अधिकार होता है। राज्यपाल को राज्य विधानसभा में पारित किये जाने वाले किसी भी विधेयक को रद्द करने, समीक्षा के लिये वापस भेजने और राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार है। इसका मतलब है कि राज्य विधानसभा में कोई भी विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता।