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पश्चिम बंगाल : क्या बागी तृणमूल नेताओं के सहारे बीजेपी खिला पाएगी कमल?

294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा की चुनावी जंग के लिए भाजपा को तृणमूल कांग्रेस से टक्कर लेने के लिए टीएमसी के ही पूर्व नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का साथ मिल रहा है।

हालांकि पश्चिम बंगाल में अभी तक राजनीतिक विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि सत्ता की कुर्सी की लड़ाई त्रिकोणीय हो गयी है। यही कारण है कि भाजपा नेता प्रदेश में तीसरी शक्ति के रूप में खड़े कांग्रेस-वाम संभावित मोर्चे पर हमले की बजाय तृणमूल पर ही ज्यादा केंद्रित हैं। क्योंकि बंगाल में चुनावी बिगुल के शुरुआत से ही तृणमूल के कई नेताओं ने बीजेपी की सदस्यता लेनी शुरू कर दी थी तो यह सवाल बन कर सामने आता है कि क्या बागी तृणमूल नेताओं के सहारे राज्य में खिल पाएगा कमल? इस सवाल की ओर जाने से पहले के आधार की ओर देखा जाए तो 16 दिसम्बर 2020 की घटना याद आएगी।

शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को दिया बड़ा झटका

जब पश्चिम बंगाल सरकार में नम्बर दो कहे जाने वाले तृणमूल कांग्रेस के बागी नेता शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को बड़ा झटका दिया। कयास को सही साबित करते हुए उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। बाद में जनवरी 2021 के दिन हाल ही में भाजपा नेता बने शुभेंदु अधिकारी के छोटे भाई और तृणमूल कांग्रेस नेता सौमेंदु अधिकारी , कई पार्षदों के साथ भाजपा में शामिल हुए।

सौमेंदु ने हाल ही में कोंतई नगर निगम के प्रशासक के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी के साथ सौमेंदु ने एक बयान में कहा भी था कि कमल हर घर में खिलेगा। यह बात अलग है कि अधिकारी परिवार के दो सदस्य सांसद दीब्येन्दु और शिशिर तृणमूल कांग्रेस में हैं।

 

एक और बड़ा नाम हैरान करने वाला था जो ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार में वन मंत्री रहे , राजीब बनर्जी । 21 जनवरी 2021 को गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री राजीब बनर्जी सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के कुछ अन्य पूर्व नेताओं के साथ राष्ट्रीय राजधानी में बीजेपी में शामिल हो गए।

उनके साथ विधायक प्रबीर घोषाल और बैशाली डालमिया तथा हावड़ा के पूर्व मेयर रतिन चक्रवर्ती भी दिल्ली पहुंचे थे। घोषाल और डालमिया को हाल ही में तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था। नदिया जिले की राणाघाट पश्चिम विधानसभा से तृणमूल कांग्रेस के पूर्व विधायक पार्थसारथी चट्टोपाध्याय और अभिनेता रूद्रनील घोष भी इन्हीं नेटज के साथ थे।

चुनाव का टर्निंग पॉइंट

टीएमसी से भाजपा में जाने वाले नेताओं को लेकर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद एवं पार्टी प्रवक्ता सौगत रॉय ने कहा कि,’जो लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, उनका कोई लम्बा रजनीतिक इतिहास नहीं है और उनमें से अधिकतर को पार्टी में ममता बनर्जी ने शामिल किया था। भविष्य में तृणमूल कांग्रेस सतर्क रहेगी।’

लेकिन टीएमसी के चुनाव प्रचार के दौरान की ऊर्जा देखें तो यह तो तय है कि तृणमूल कांग्रेस ने शायद यह अपनी चुनावी रणनीति बनाई है कि पलायन करने वाले नेताओं पर ध्यान देने के बजाय प्रचार पर फोकस करने पर जोर देना है। इस बाबत तृणमूल कांग्रेस के नेता एवं मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने भी एक बयान दिया है उन्होंने कहा है कि, ‘यदि कोई पार्टी से जाना चाहता है तो क्या किया जा सकता है? हम एक बड़ी पार्टी हैं। हम असंतुष्ट को सेना की तैनाती कर नहीं रोक सकते।’

टीएमसी नेतृत्व की ओर से यह भी कहा गया है कि पार्टी छोड़ने वालों के खिलाफ गलत बयानबाजी न की जाए क्योंकि इससे मतदाताओं में नकारात्मक सन्देश जाता है।

अब ताजा मामला ममता बनर्जी के साथ हुई धक्का-मुक्की में लगी उनकी चोट का है। दरअसल यह चोट, पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव का टर्निंग पॉइंट भी हो सकता है। अगर ऐसा नहीं भी होता है तो यह तो तय है कि यह चोट नंदीग्राम के संग्राम में अहम भूमिका निभाएगी। राज्य की मुख्यमंत्री के साथ हुए इस झड़प पर टीएमसी के प्रतिनिधि मंडल की ओर से चुनाव आयोग को पत्र भी लिखा गया। जिसका जवाब यह आया कि चुनाव आयोग ने पत्र को आक्षेप और घृणा का पुलिंदा कह दिया।खैर, 14 मार्च को टीएमसी अपना घोषणा पत्र जारी कर रही है। तो अब जनता-जनार्दन की बारी है कि वे हर घर में कमल खिलाएंगे या दीदी को फिर से सत्ता में लाएंगे।

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