पश्चिम बंगाल में अधिकतर सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं कुछ स्कूल ऐसे हैं जहाँ विद्यार्थी कम और शिक्षक ज्यादा हैं । छात्रों के अनुपात में शिक्षक मौजूद नहीं है। इसी वजह से एक शिक्षक दो कक्षाओं के विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ा रहे हैं । लेकिन उत्तर 24 परगना जिले के बैरकपुर शिल्पांचल की कहानी इससे काफी अलग है। खबरों के अनुसार वहां दर्जनों स्कूल ऐसे हैं जहां कम विद्यार्थी है और उन्हें पढ़ाने के लिए दर्जनभर शिक्षक नियुक्त हैं। जिसका खुलासा हाल ही में एक आरटीआई के जरिये हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बैरकपुर शिल्पांचल में 45 ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां 20 से भी कम विद्यार्थी पढ़ते हैं। इनमें ज्यादातर स्कूलों में शिक्षकों की संख्या विद्यार्थियों से दोगुना या तीन गुना से अधिक है। 45 स्कूलों में कुल 279 छात्र-छात्राएं हैं, जबकि शिक्षकों की संख्या 233 हैं। वहीं दस ऐसे भी स्कूल है, जहां न शिक्षक हैं और न विद्यार्थी। जिस वजह से ये स्कूल लगभग बंद पड़े है।
सोदपुर सुशीलकृष्ण शिक्षायतन फॉर बॉयज (हाई स्कूल) में पांचवीं से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। जिसमें विद्यार्थियों की संख्या मात्र चार है। यहां 35 शिक्षक नियुक्त हैं। यहां के प्रधानाध्यापक के मुताबिक वर्तमान में यहां कुल 17 शिक्षक हैं। इसके अलावा घोला भुवनेश्वरी बालिका विद्यामंदिर में भी पांचवीं से 10वीं तक की पढ़ाई होती है। लेकिन छात्राओं की संख्या सिर्फ नौ और शिक्षक-शिक्षिकाओं की संख्या 14 है। स्कूल के टीचर्स भी इसे स्वीकार कर रहे हैं।ऐसा ही हाल मद्राल हाई स्कूल (कोएड) का भी है। इस विद्यालय में पांचवीं से 10वीं तक चलनेवाली कक्षाओं में मात्र 10 विद्यार्थी है, जबकि शिक्षकों की संख्या 12 है।
सोदपुर सुशील कृष्ण शिक्षायतन फॉर ब्वॉयज के प्रधानाध्यापक अमित एच के मुताबिक स्कूल में मात्र चार छात्र हैं । इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अभिभावकों का रुझान अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की तरफ बढ़ रहा है, छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए आस-पास के प्राथमिक स्कूलों के हेडमास्टरों से बातचीत भी की गयी, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। वहीं घोला भुवनेश्वरी बालिका विद्यामंदिर प्रधानाध्यापिका चंदना बास्के के कहने के अनुसार उनके स्कूल में नौ छात्राएं और 14 टीचर्स हैं। अभिभावक भी अपने बच्चों का दाखिला ऐसे स्कूल में करा रहे हैं ,जो उच्च माध्यमिक तक हैं । अपने बच्चों के एडमिशन के लिए अधिकतम अभिभावक नामी स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं।