[gtranslate]
Country

कौमी हिंसा की चपेट में पश्चिम बंगाल

  •        विजय साहनी

मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूं दिनकर और निराला का
मैं बोलूंगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूंगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगड़ा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है
ताकि भोली जनता इनको जान ले
धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है गलत सवारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की।

कवि हरिओम पवार की यह कविता देश में मजहब के नाम पर हो रही हिंसा पर सटीक बैठती है। रामनवमी के दिन देश के कई राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और कई राज्यों में हालात अब तक सामान्य नहीं हैं।
दरअसल रामनवमी के मौके पर पश्चिम बंगाल और बिहार में 30 मार्च के दिन से शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिहार के नालंदा और सासाराम में पथराव और आगजनी के बाद अब भी कई जगह धुआं उठ रहा है। चारों तरफ तबाही का मंजर नजर आ रहा है। बिगड़े हुए माहौल को देखकर लोग काफी डरे हुए है। धार्मिक जुलूसों के दौरान हुई सांप्रदायिक झड़पों में दर्जनों लोग घायल हो गए, जबकि सैकड़ों को गिरफ्तार किया गया है।

सांप्रदायिक हिंसा की ये घटनाएं मुख्य रूप से बंगाल, बिहार और कर्नाटक से सामने आई थी। बिहार के मुंगेर में रामनवमी के जुलूस के दौरान हिंसा भड़कने के बाद पुलिस ने 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के हुगली में रामनवमी के जुलूस के दौरान हिंसक-झड़प की घटना सामने आई। रामनवमी पर निकाली जा रही इस शोभायात्रा में जमकर पत्थरबाजी और आगजनी हुई। रैली का आयोजन भाजपा, विश्व हिंदू परिषद् और अन्य हिंदू संगठनों ने किया था। इस जुलूस में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष भी शामिल थे परंतु इनके जाने के बाद अचानक दो सम्प्रदायों में मारपीट शुरू हो गई और उपद्रवियों द्वारा आगजनी की घटना तक को अंजाम दिया गया और बम भी फेंके जाने के आरोप हैं।

इस हिंसा में बीजेपी विधायक विमन घोष भी घायल हुए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक शोभायात्रा के इस रैली में तेज आवाज के साथ संगीत बजाया गया और मस्जिद के सामने तलवारें लहराई गईं। शोभायात्रा तय समय से देरी से शुरू हुई थी और हिंसा उस वक्त शुरू हुई जब इलाके में मस्जिद को निशाना बनाने की अफवाह फैली। पश्चिम बंगाल में इससे पहले भी रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान दो गुटों में जमकर मारपीट और पथराव की घटनाएं हुई थीं जिसमें उपद्रवियों ने वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। इस घटना को लेकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सोनी आनंद बोस ने कहा कि ‘सुरक्षा बल समय पर पहुंच गए हैं। हुगली में शोभायात्रा के दौरान हंगामा करने वाले दोषियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा।

लोकतंत्र को पटरी से नहीं उतारा जा सकता है। राज्य इस आगजनी और लूटपाट को खत्म करने के लिए दृढ़ है। कानून तोड़ने वालों को जल्द ही यह अहसास हो जाएगा कि वे आग से खेल रहे हैं।’ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 3 अप्रैल को शांति की अपील की और हिंदू भाइयों से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा। ममता ने मेदिनीपुर के खेजुरी में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रश्न किया कि ‘भगवान राम को समर्पित रामनवमी के कई दिन बाद भी शोभायात्रा क्यों निकाली जा रही है?’ ममता ने दावा किया कि हिंसा भड़काने और तनाव पैदा करने का जान-बूझकर प्रयास किया गया। ‘रामनवमी के पांच दिन बाद तक शोभायात्रा क्यों निकाली जाएगी? त्योहार वाले दिन निकाले, हमें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन वे बंदूक और बमों के साथ या पुलिस की अनुमति के बिना शोभायात्रा नहीं निकाल सकते।’ ममता ने बिना किसी का नाम लिए कहा ‘वे हिंसा भड़काने और तनाव उत्पन्न करने के लिए जान-बूझकर अल्पसंख्यकों के इलाकों में प्रवेश कर रहे हैं, वे गरीबों के खाने के ठेले में आग लगा रहे हैं और बंदूक लेकर नाच रहे हैं।

त्योहारों में बढ़ जाती है हिंसा
गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी जगहों पर हिंसा रामनवमी और रमजान के मौके पर हुई। दिल्ली में इस बार शोभायात्रा के दौरान सतर्कता बरती गई लेकिन यही सतर्कता बंगाल, बिहार और कर्नाटक में नहीं बरती गई। जब भी कोई हिंसा भड़कती है तो गलती दोनों समुदायों की होती है। इसका एक उदाहरण जमशेदपुर में रामनवमी के दौरान साल 1979 में हुआ दंगा भी है। 1979 का जमशेदपुर दंगा रामनवमी के मौके पर हुआ पहला बड़ा दंगा था, जिसमें 108 लोगों की जान गई थी। मारे गए लोगों में 79 मुस्लिम और 25 हिंदुओं की पहचान की गई थी। कहा जाता है कि आरएसएस ने वर्ष 1978 के राम नवमी जुलूस की योजना बनाई थी। इसकी शुरुआत दिमनाबस्ती नामक एक आदिवासी पड़ोस इलाके से की गई। हालांकि, पड़ोसी इलाका साबिरनगर एक मुस्लिम क्षेत्र था और अधिकारियों ने जुलूस को वहां से गुजरने की अनुमति नहीं थी। आरएसएस ने पूरे एक साल तक इस मुद्दे पर अभियान चलाया। आरएसएस ने यह तर्क दिया कि हमें अपने ही देश में स्वतंत्र रूप से जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

दोनों समुदायों के बीच गतिरोध बढ़ा और शहर का माहौल खराब हो गया। हिंदुओं ने दुकानों को बंद करने के लिए मजबूर किया और उनमें से कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया। 1979 में आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने जमशेदपुर का दौरा किया और ध्रुवीकरण को लेकर भाषण दिया। इससे स्थिति और खराब हो गई थी। रामनवमी 2022ः पिछले साल रामनवमी समारोह के दौरान या बाद चार राज्यों में सामने आई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घरों या दुकानों में आग लगा दी गई। मध्य प्रदेश के खरगोन में हिंसा तब शुरू हुई जब मुस्लिम समुदाय ने जुलूस में संगीत बजा रहे डीजे पर कथित तौर पर आपत्ति जताई। इसके बाद शहर में कई जगहों पर पथराव और आगजनी हुई, जिसमें खरगोन के पुलिस अधीक्षक सहित कई लोग घायल हो गए थे। रामनवमी के जुलूस के दौरान पश्चिमी राज्य गुजरात के दो शहरों क्रमशः हिम्मतनगर और खंभात में भी झड़पें हुई। खंभात में झड़पों में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि अन्य घायल हो गए। पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रामनवमी के जुलूस पर हुए हमले में कई लोग घायल हो गए। झारखंड के बांकुड़ा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विधायक और केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार की कार पर कथित तौर पर हमला हुआ।

हनुमान जयंती 2022ः पुलिस ने 18 अप्रैल 2022 को हनुमान जयंती के अवसर पर उत्तराखण्ड के हरिद्वार में हुई एक पथराव की घटना के सिलसिले में 13 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर 11 को गिरफ्तार किया था
गणेश चतुर्थी 2022ः गणेश चतुर्थी समारोह से पहले 29 अगस्त की रात को गुजरात के वड़ोदरा के मांडवी इलाके से एक सांप्रदायिक झड़प की सूचना मिली। इस घटना के संबंध में पुलिस ने 13 लोगों को हिरासत में लिया
दिवाली 2022ः नवरात्रि के बाद गुजरात के वड़ोदरा में दिवाली भी ज्यादा शांतिपूर्ण नहीं रही। शहर के पानीगेट इलाके में आधी रात को पटाखे फोड़ने को लेकर शुरू हुई मारपीट दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा में बदल गई। पुलिस ने मामले से जुड़े 19 लोगों को हिरासत में लिया था।

लक्ष्मी पूजा 2022ः पिछले साल लक्ष्मी पूजा के अवसर पर पश्चिम बंगाल के कोलकाता में दो समुदायों के बीच हुई झड़प में 40 लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस हिरासत में भेजा गया था।
होली 2023ः इस साल होली से पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की कोशिश हुई। त्योहार से दो दिन पहले दो समुदायों के लोगों के बीच एक बहस हिंसक हो गई थी।

नेताओं के भड़काऊ बयान
पश्चिम बंगाल में नेताओं द्वारा ऐसे बयान दिए गए जो कहीं न कहीं हिंसा उत्पन्न करते हैं। 31 दिसंबर 2020 को पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं ‘हिंदू युवाओं को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए अब हथियार उठाना होगा। अगर कोई कायर ऐसा करने के लिए मना करता है तो उसकी गर्दन दबोच लो। भगवान श्रीराम बचपन से धनुष उठाते थे और इसी से शैतानों का संहार किया। भगवान कृष्ण भी पुतना का संहार किए, जब वे सिर्फ 6 दिन के थे। यदि आपसे कोई अहिंसा की बात करता है तो उसके कान के नीचे मारो। अगर जरूरत पड़ी तो हमें हथियार भी उठाना होगा। कानून की नजर में भी यह अपराध नहीं है। हमारी आंखों के सामने हमारी मां-बहनों को परेशान किया जा रहा है और हम लोग केवल पुलिस स्टेशन में गुहार लगा रहे हैं, ऐसे मामलों में हमें पहले बदला लेना चाहिए फिर पुलिस स्टेशन जाना चाहिए।’ 16 जनवरी 2021 को टीएमसी सांसद नुसरत जहां कहती हैं ‘आप लोग अपनी आंखें खोलकर रखें, बीजेपी जैसा खतरनाक वायरस घूम रहा है। यह पार्टी धर्म के बीच भेदभाव और लोगों के बीच दंगे कराती है। अगर बीजेपी सत्ता में आई तो मुसलमानों की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी।’

16 जनवरी 2021 को टीएमसी नेता मदन मित्रा ने भड़काऊ बयान देते हुए कहा ‘बीजेपी के लोग सुन लें, दूध मांगोगे तो खीर देंगे, बंगाल मांगोगे तो चीर देंगे।’ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2019 में राजनीतिक हत्याओं के मामले में पश्चिम बंगाल शीर्ष स्थान पर रहा। पश्चिम बंगाल में एक लंबे अर्से से दलगत विचारधाराओं के आधार पर उच्च स्तर की हिंसात्मक घटनाएं होती आई हैं। आंकड़ों अनुसार वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में प्रत्येक वर्ष औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं होती रही हैं। इस राज्य में हिंसा के नवीनतम दौर के पीछे वर्तमान में सत्तारूढ़ दल टीएमसी और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच का संघर्ष है। कई विश्लेषकों कि यह दलील है कि वर्तमान में राजनीतिक हिंसा में हुई वृद्धि का कारण भाजपा का सत्तारूढ़ टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने के लिए आक्रामक दबाव है। पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) नजरूल इस्लाम का मानना है कि पुलिस बल का राजनीतीकरण इस अराजकता का मुख्य कारण है। यह वामपंथी शासन के दौरान शुरू हुआ और टीएमसी शासन में यह चक्र पूरा हो गया। यदि पुलिस प्रशासन को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए तो महीने भर के भीतर हिंसा पर रोक लग सकती है।

पश्चिम बंगाल में हिंसा का इतिहास
बंगाल में राजनीतिक हिंसा की ऐतिहासिक विरासत है। इस हिंसा की शुरुआत स्वतंत्रता पूर्व राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान विशेषकर 1905 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन के फैसले के परिणामस्वरूप लोगों की प्रतिक्रिया से हुई। इस विभाजन के कारण 20वीं सदी की शुरुआत में राज्य में एक क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म हुआ। अनुशीलन समिति और जुगांतर जैसी गुप्त संस्थाओं ने औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे भी हुए। जैसे कि 1946 का कलकत्ता दंगा और 1946-1947 का तेभागा आंदोलन जो कि एक हिंसक किसान विद्रोह था। स्वतंत्रता उपरांत 1967 नक्सलबाड़ी विद्रोह हुआ, जो राज्य प्रशासन को उखाड़ फेंकने के लिए कट्टरपंथी कम्युनिस्ट ताकतों द्वारा किया गया एक प्रयास था जिसमें विद्रोहियों द्वारा की गई हिंसा और पुलिस द्वारा अपनाई गई दमनात्मक कार्रवाइयों के कारण कई लोगों की जानें गईं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD