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वाशिंगटन थिंक टैंक ने घटाई इंडिया की फ्रीडम रैंकिंग

दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति पर नजर रखने वाले एक अमेरिकी एनजीओ ‘फ्रीडम हाउस’ की ताजा रिपोर्ट वैसे तो वैश्विक स्तर पर इसकी मौजूदा दशा को चिंताजनक बताती है, लेकिन अभी इसकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि इस बार भारत के स्टेटस को इसने फ्री (स्वतंत्र) से घटाकर पार्टली फ्री (आंशिक रूप से स्वतंत्र) कर दिया है। हर भारतीय के लिए यह बात तकलीफदेह होगी कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों, परंपराओं के लिए हर जगह समादृत हमारे देश को आंशिक रूप से ही स्वतंत्र माना जाए। सीधे शब्दों में इसका मतलब यह हुआ कि इस देश के नागरिक पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं।

हमें समझना होगा कि इस रिपोर्ट पर या रिपोर्ट लाने वाली संस्था के इरादों पर संदेह करके हम ऐसे बेचैन कर देने वाले सवालों से आंखें नहीं मूंद सकते। इसलिए पहली जरूरत इस बात की है कि बाहर या भीतर, कहीं से भी अगर कोई हमारी सरकार की खामियां गिनाता है तो उसे शत्रु मानते हुए उसपर चढ़ दौड़ने की प्रवृत्ति से बाज आया जाए।

बेहतर हो कि सरकार हर संजीदा आलोचना का सम्मान करे और उसका संबंध अगर लोकतांत्रिक मूल्यों से हो तो उसे और ज्यादा गंभीरता से ले। हम अपने सिस्टम को अधिक से अधिक न्यायपूर्ण बनाए रखें तो ऐसी रिपोर्टों का कोई मतलब ही नहीं बचेगा।

पत्रकारों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई में इजाफा

स्वयं अमेरिका की नजरों में अपनी सीमाओं से बाहर लोकतंत्र और मानवाधिकारों का क्या स्थान रहा है और दुनिया में कहां-कहां इसने तानाशाहों और रंगभेद जैसी मनुष्य विरोधी मान्यताओं को संरक्षण दिया है, यह कोई बताने की बात नहीं है। जहां तक फ्रीडम हाउस और उसकी इस रिपोर्ट का सवाल है तो इसे लेकर भी सोशल मीडिया पर जारी बहस में तीखा विभाजन दिखता है।

अचानक लागू लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों और अन्य लोगों को हुई तकलीफें हर संवेदनशील मन को परेशान करती रही हैं, लेकिन उस आधार पर बाहर से किसी का यह कहना उचित नहीं लगता कि देश में स्वतंत्रता कम है। दूसरी तरफ इसी रिपोर्ट में कुछ ऐसी ऑब्जेक्टिव बातें भी हैं जिन्हें नजरअंदाज करना हमारे लिए अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। जैसे पुलिस द्वारा दर्ज किए गए राजद्रोह के मामलों में तेज बढ़ोतरी, पत्रकारों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई में इजाफा, कोरोना जेहाद की बात कह कर एक धार्मिक समुदाय को महामारी का दोषी बताना आदि।

क्या करता है फ्रीडम हाउस ?

फ्रीडम हाउस द्वारा भारत समेत दुनिया के कई देशों में जीने की ‘आजादी’ को लेकर तैयार की गई ये रिपोर्ट कई मानकों के अध्ययन पर आधारित है।इन मानकों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता, एनजीओ को कार्य करने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दे शामिल हैं?

फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में भारत को पिछले साल के 71 के मुकाबले इस साल 67 का स्कोर दिया है।इस वर्ष जिन मुद्दों के अध्ययन के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है उनमें से प्रमुख ये हैं।

  • क्या वहां पर स्वतंत्र न्यायपालिका काम कर रही है?
  • क्या NGO को काम करने की आजादी है?
  • खासकर उन एनजीओ को जो मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं?
  • क्या लोग राजनीतिक और दूसरे संवेदनशील मुद्दों पर अपनी निजी राय को बिना किसी बदले की कार्रवाई के डर के रखने के लिए स्वतंत्र हैं?
  • क्या लोगों को फ्री मूवमेंट की आजादी है? इसके अलावा क्या उन्हें अपना निवास स्थान, रोजगार और शिक्षा बदलने की स्वतंत्रता है?
  • लोगों को क्या अपने पसंद के राजनीतिक दल में जाने का अधिकार है?
  • क्या सरकार का मौजूदा प्रमुख या दूसरे राष्ट्रीय चीफ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के जरिए चुने गए हैं?
  • वहां का मीडिया क्या आजाद और स्वतंत्र है?

क्या लोग सार्वजनिक रूप से अपने धार्मिक विश्वास का पालन करने और उसे व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं? या फिर जिन्हें किसी आस्था में विश्वास नहीं है तो ऐसा व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं?

भारत की रैंकिंग गिरी

न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर टिप्पणी करते हुए फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के राज्यसभा में नियुक्ति की ओर इशारा किया गया है। इसमें कहा है कि साल 2020 में राष्ट्रपति ने एक सेवा निवृत चीफ जस्टिस की नियुक्ति संसद के ऊपरी सदन में की जो कि देश में संवैधानिक मूल्यों के लिए ठीक नहीं है। इस कैटेगरी में भारत की रैंकिंग गिरी है।

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