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युद्ध की आशंका:विदेशी छोड़ने लगे है यूक्रेन

रूस और यूक्रेन के बीच काफी समय से चल रही तनातनी और तेज हो गई है। हालत यह है कि दोनों देशों के बीच कभी भी युद्ध हो सकता है। जिसका असर दुनियाभर में दिखाई देने लगा है। इस बीच भारत ने अपने नागरिकों को अस्थायी रूप से यूक्रेन छोड़ने की सलाह दी है।कीव में मौजूद भारतीय दूतावास ने खासतौर पर यूक्रेन में मौजूद भारतीय छात्रों को स्वदेश लौटने के लिए कहा है।भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, नॉर्वे, जापान, लातविया और डेनमार्क पहले ही अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने के लिए कह चुके हैं।

 

दरअसल ,भारतीय दूतावास ने यूक्रेन छोड़ने के लिए एक एडवाइजरी पत्र यूक्रेन में मौजूद भारतीयों नागरिकों को भेजा है। इस पत्र में कहा गया है कि यूक्रेन के मौजूदा हालात को देखते हुए भारतीय नागरिकों, खासकर छात्रों को यूक्रेन छोड़कर अस्थायी तौर पर स्वदेश लौटना चाहिए। वहीं भारतीय छात्रों का कहना है कि भारत ने ए़डवाइजरी जारी करने में देर कर दी है। भारत जाने वाली फ्लाइट की टिकट 80,000 रुपये की है और 20 फरवरी से पहले कोई टिकट उपलब्ध नहीं है। फ्लाइट टिकट की कीमतें बढ़ गई है। एजेंट पैसा कमाने के लिए स्थिति का फायदा उठा रहे हैं।लेटर में आगे कहा गया है कि भारतीय नागरिक बिना किसी जरूरी काम के यूक्रेन की यात्रा न करें ।
दूतावास ने यूक्रेन में मौजूद सभी भारतीय नागरिकों से यह भी अपील की है कि वो अपनी मौजूदगी के बारे में दूतावास को जानकारी देते रहें, ताकि जरूरत पड़ने पर उन तक मदद पहुंचाई जा सके। भारतीय दूतावास अपने नागरिकों की मदद करने के लिए यूक्रेन में अपना सामान्य कामकाज जारी रखेगा।

रूस बॉर्डर के पास स्थित खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिर्सिटी 2 हजार भारतीय छात्र फंसे हुए है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,उनका कहना है कि हम डरे हुए हैं और देश लौटना चाहते हैं। सरकार की ओर से कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही है। फ्लाइट का किराया भी तीन गुना से ज्यादा हो गया है। छात्रों ने बताया है कि 80 हजार का किराया अचानक से 2 लाख के करीब पहुंच गया है।

खारकीव नेशनल यूनिवर्सिटी के छात्रों ने आगे बताया कि ईमानदारी से कहें तोयहां कुछ भी नहीं हो रहा है। हमें सिर्फ अपनी जान का डर है और कुछ नहीं। यहां सबकुछ सामान्य है। हम चाहते हैं कि हमारी सरकार कुछ करें क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि युद्ध होगा या नहीं। लेकिन जब से यूक्रेन के राष्ट्रपति ने फेसबुक पर जो युद्ध को लेकर पोस्ट किया है उसके बाद से भारतीय छात्रों में डर का माहौल है।चौराहों पर टैंकों की तस्वीरें उन तक पहुंच रही हैं, जिन्हें देखकर उन्हें डर लग रहा है। कुछ छात्रों का कहना है कि वो हेलीकॉप्टरों की आवाज सुन सकते हैं। अभी हमें नहीं पता है कि क्या हो रहा है। वही इस तरह के मामला सामने आने के बाद यूक्रेन के राजदूत इगोर पोलिखा ने एक बयान जारी किया है। जिसमे उनका कहना है कि यूक्रेन में रह रहे भारतीय छात्रों को घबराने की जरूरत नहीं है। अभी स्थिति इतनी भी खराब नहीं है कि बड़े पैमाने पर भारतीय छात्र देश छोड़े।

रूस-यूक्रेन विवाद पर भारत का न्यूट्रल रवैया

भारत ने यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में यूक्रेन मामले को लेकर रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रस्ताव पर मतदान से खुद को अलग रखा। इसके साथ ही भारत ने शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए तनाव को तत्काल कम करने की अपील की। यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस. तिरुमूर्ति ने स्पष्ट किया- भारत का हित एक ऐसा समाधान खोजने में है, जो सभी देशों के वैध सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए तनाव को तत्काल कम कर सके और इसका उद्देश्य क्षेत्र और उससे बाहर दीर्घकालिक शांति और स्थिरता कायम करना है।यूक्रेन मामले में रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की पश्चिमी देशों की धमकियों के बीच भारत ने स्पष्ट कहा है कि वह रूस के खिलाफ किसी भी आर्थिक प्रतिबंध का पक्षकार नहीं बन सकता।

गौरतलब है कि 20 हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में है। रूस और यूक्रेन विवाद के कारण युद्ध होने की संभावना है। इसी वजह से यूक्रेन में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे 20 हजार भारतीय छात्र परेशानी में पड़ गए हैं। इन छात्रों को वापस भारत लाने के लिए दिल्ली स्थित राष्ट्रपति सचिवालय में याचिका भी दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि देश से 18 से 20 हजार भारतीय स्टूडेंट्स यूक्रेन की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे हैं ।

विवाद की वजह?

यूक्रेन की सीमा रूस और यूरोप से लगती है। वर्ष 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। रूस और यूक्रेन के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई। वर्ष 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया था। यानुकोविच को रूस का समर्थन प्राप्त था। अमेरिका-ब्रिटेन तत्कालीन राष्ट्रपति का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। इसके अगले साल यानि 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा। इससे नाराज रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। साथ ही वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। रूस के समर्थन के कारण अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। तब से यूकेन में रूसी समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच लड़ाई चल रही है।
विवाद का दूसरा कारण क्रीमिया है। 1954 में सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को क्रीमिया तोफे में दिया था। 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो क्रीमिया उक्रेन के पास रहा। तभी से क्रीमिया को लेकर भी रूस और उक्रेन के बीच विवाद जारी है। दोनों देश इस पर अपना-अपना दवा करते रहे हैं। दोनों देश में शांति कराने के लिए कई बार पश्चिमी देश आगे आए। मसलन, वर्ष 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता कराया था। उस समझौते में संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी। लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं हुआ।
दोनों देशों के बीच विवाद का तीसरा कारण नार्ड स्‍ट्रीम 2 पाइपलाइन को माना जाता है। इस पाइप लाइन से जर्मनी समेत यूरोप के अन्‍य देशों को रूस सीधे तेल और गैस सप्‍लाई कर सकेगा। इससे यूक्रेन को जबरदस्‍त आर्थिक नुकसान होना। वर्तमान में यूक्रेन के रास्‍ते यूरोप जाने वाली पाइपलाइन से इसे अच्छी कमाई होती है। दूसरी तरफ, अमेरिका भी नहीं चाहता है कि जर्मनी नार्ड स्‍ट्रीम को मंजूरी दे। क्योंकि अमेरिका का मानना है कि इससे यूरोप की रूस पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।

 

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