पिछले कुछ सालों में जीवनशैली और खान-पान में कुछ ऐसे बदलाव हुए हैं जिसने नई-नई बीमारियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। एक समय मोटापा और डायबटीज ने बहुत तेजी से लोगों को अपने जाल में जकड़ा और अब ये एक महामारी जैसा बन चुका है। इसी क्रम में एक नई बीमारी बहुत तेजी से हमारे घर में घुस रही है वह है विटामिन डी की कमी।
क्या है वर्तमान स्थिति
विटामिन डी कमी बहुत तेजी से हमारे घर में घुस रही है। भारत में हुई एक शोध के अनुसार भारत की 69 प्रतिशत महिलाएं विटामिन डी की कमी का शिकार है। जबकि 26 प्रतिशत महिलाओं के शरीर में विटामिन डी सामान्य के स्तर पर ही है। सिर्फ 5 प्रतिशत महिलाएं ही ऐसी हैं जिनके शरीर में विटामिन डी की मात्रा एकदम सही है।
सिर्फ महिलाओं ही नहीं पुरूषों में भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। शहरी क्षेत्र में रहने वाला हर तीसरा पुरूष विटामिन डी की कमी से जूझ रहा है।
क्यों नहीं है लोग जागरूक
विटामिन डी की कमी का सीधा या जानलेवा प्रभाव मानव शरीर पर नहीं दिखता। साथ ही भारतीय जनमानस की छोटी परेशानियों को नजरअंदाज करने की सोच के कारण महामारी का रूप लेती इस बीमारी के बारे में चर्चा बहुत कम होती है। लेकिन यह शरीर की हड्डियों को बहुत कमजोर कर देता है साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी ला देता है। इसके कारण जोड़ों में दर्द की शिकायत रहती है। अगर बहुत दिनों तक शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाए तो डॉयबटीज होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
क्या है विटामिन डी की कमी के लक्षण
विटामिन डी की कमी के कारण शरीर की कैल्शियम को एबजॉर्ब करने की क्षमता बिल्कुल खत्म हो जाती है। इस कारण से हड्डिया बहुत कमजोर हो जाती है। कमजोर हड्डियों के कारण जोड़ों और हड्डियों में दर्द की शिकायत होती है। इतना ही नहीं मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द भी इसकी कमी की वजह से रहता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण बहुत ज्यादा सर्दी और जुकाम होने लगता है। ज्यादा देर तक खड़े रहने में परेशानी होती है और हाथ पैरों में कंपन की समस्या भी होती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ:
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, आर वेंकटरमन और प्रणब मुखर्जी के चिकित्सा सलाहकार रहे डॉ. मोहसिन वली ने एक इंटरव्यू में विटामिन डी की कमी को लेकर बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी। डॉ. वली के मुताबिक यह धीरे-धीरे इतनी गंभीर समस्या बनती जा रही है कि सरकार को इसे महामारी घोषित कर देना चाहिए।
डॉ. वली के मुताबिक इस बीमारी को बढ़ावा हमारे किचन में रखा हुआ है। जी हां, हमारे खाने में इस्तेमाल किया जाने वाला रिफाइंड ऑयल ही इस बीमारी का सबसे बडा कारण है। वास्तव में रिफाइंड ऑयल में ट्रांस फैट की मात्रा ज्यादा होती है। ट्रांस फैट शरीर में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है और खराब कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है।
रिफाइंड ऑयल के कारण शरीर में कॉलेस्ट्रॉल मॉलिक्यूल्स बहुत कम बनते हैं। जो कि शरीर में विटामिन डी के निर्माण में बहुत सहायक होते हैं। इससे लगातार रिफाइंड ऑयल यूज करने से विटामिन डी की कमी तो होती है साथ ही हार्ट की परेशानियां भी बढ़ जाती है।
‘तो क्या रिफाइंड ऑयल खाना छोड़ देना चाहिए’ इसके जवाब में डॉ. वली ने कहा कि अगर आप ऐसा कर सकें तो बहुत अच्छा है। लेकिन अगर अचानक ये करना संभव न हो तो धीरे-धीरे रिफाइंड के यूज को कम करके उसकी जगह पर सरसों का तेल इस्तेमाल करना चाहिए।
डॉ. वली ने इसकी दूसरी वजहों पर भी बात की और कहा कि जीवन शैली और खास कर महिलाओं में उनका पहनावा इसके दूसरे कारणों में से एक हैं। धूप में न निकलना और कपड़ों से पूरा बदन ढका होना भी विटामिन डी की कमी का प्रमुख कारण है।
क्या होती है विटामिन डी की शरीर में सामान्य मात्रा
डॉक्टरों के मुताबिक शरीर में विटामिन डी की मात्रा कम से कम 75 नैनो ग्राम अवश्य होनी चाहिए। इससे कम यानी कि 50 से 75 तक होने पर इसे कम माना जाता है जबकि शहरों में कई लोगों में इसकी मात्रा 5 से 20 नैनो ग्राम तक ही पाई गई है जो कि खतरे की घंटी है। शरीर में विटामिन डी की मात्रा इस स्तर पर पहुंचने के बाद दूसरी परेशानियां शुरू हो जाती हैं।
कैसे रुक सकती है यह महामारी
ऐसा भोजन करें जिससे शरीर को जरूरी कॉलेस्ट्रॉल मिले।
धूप में कुछ देर अवश्य बैठे, खास कर सुबह की धूप में।
अगर शरीर में दर्द, मांसपेशियों में दर्द या फिर बैठे बैठे थकान जैसी शिकायत है तो इसको नजरअंदाज न करें और अच्छे डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
बीजों का सेवन अधिक से अधिक करें जैसे मूंगफली, बादाम आदि।
सबसे जरूरी है कि इस बीमारी के बारे में एक दूसरे से बात अवश्य करें और दूसरों को इसके प्रति जागरूक करें। जिससे शुरूआती समय पर ही लोग इसके प्रति सचेत हो जाएं।