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Country Editorial

विष्णु बनाम शिव शक्ति और लोहिया

लगभग दस बरस पहले की एक घटना याद आ रही है। आज जब लगभग पूरे देश में ‘वन नेशन – वन इलेक्शन’, ‘वन नेशन – वन राशन’ आदि जुमलों को उछालने वालों की सत्ता कायम है, ‘वन नेशन – डाइंग नेशन’ जुमला नहीं हकीकत बन चुका है। यह घटना मुझे डाॅ राममनोहर लोहिया को याद करते याद हो आई। मेरी पत्नी के साथ काम करने वाली एक फैशन डिजाइनर ने मुझसे बड़ी मासूमियत से पूछा था ‘सर, आप कई बार लोहिया का जिक्र करते हैं। यह लोहिया आखिर हैं कौन? क्या लोहे के बड़े व्यापारी हैं?’ देश के उच्च शिक्षण संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलाॅजी से स्नातक इस लड़की का प्रश्न मुझे हतप्रभ कर गया। हतप्रभ इसलिए कि मात्र कुछ ही दशकों में यह मुल्क लोहिया को भूला चुका? नई पीढ़ी इस महान विचारक को लोहे का कारोबारी समझ रही है? मेरे लिए तब यह बड़ा आघात समान था, अब ऐसा नहीं है। मूर्खों, अंधभक्तों की भरमार वाले देश में लोहिया होने का सही में कोई अर्थ नहीं। नाना प्रकार की जातियों के पूर्वाग्रहों से ग्रसित समाज, धार्मिक नजरिए से बंधकर हरेक घटना को देखने-बूझने वालों का समाज आज जब हाहाकार मचा रहा है, ऑक्सीजन को खरीदकर सांस लेने पर विवश हो चुका है तब उसे अपने अपराध जरा याद करने चाहिए। जरूरी है, सही समय है, सही काल है और सही परिस्थितियां भी हैं। ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब देश की सबसे बड़ी न्याय पीठ ने अयोध्या में मंदिर निर्माण को हरी झंडी दिखाई थी। क्या जश्न मना इस देश में। मिठाइयां बांटी गईं, रामराज की पुनस्र्थापना के गीत गाए गए। खरबों की रकम इस मंदिर निर्माण के नाम पर इकट्ठा की गई। विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की तिकड़ी दशकों से इस मंदिर के लिए चंदा एकत्रित करने का काम करती आई है। राममंदिर, भव्य राममंदिर निर्माण शुरू भी हो चुका है। तो भाई काहे का हाहाकार-चित्कार? राममंदिर के पूरे होने का इंतजार करिए। जिस दिन पूरा हो जाएगा उस दिन सभी संकट दूर हो जाएंगे। तब तक कुछेक लाख जिंदगियां समाप्त हो जाने दीजिए। यज्ञ में आहूति मान लेना।

यदि मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़े नहीं होते, लड़ते देश की स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए, लड़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने के लिए या फिर साथ देते किसानों का, साथ देते उनका जो अंधाधुंध निजीकरण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, साथ खड़े नजर आते हरेक उस आवाज के साथ जो धर्म और राजनीति के नाम पर समाज को बांटने वालों का विरोध करती है तब शायद यह दिन न देखना पड़ता। अच्छा बताओ भाई लोगों देश के प्रधान सेवक नई संसद, मंत्रालयों के लिए नई इमारतें और खुद के लिए नया आवास बनाने का ऐलान करते हैं, 20 हजार करोड़ उस पर खर्च करने के लिए बजट तय करते हैं तब आप लोगों को क्यों भला खुशी मिलती है? कभी घुसने तक का मौका तो मिलना नहीं, लेकिन जश्न मनाने में सबसे अव्वल। वाह भाई क्या दूरदर्शी पीएम है अपना, बीस हजार करोड़ खर्च कर अमेरिका से ज्यादा सुंदर संसद, व्हाइट हाउस से ज्यादा सुंदर पीएम आवास बना रहा है। देश की राजधानी तक में ऑक्सीजन न मिलने से सैकड़ों प्रतिदिन मर रहे हैं लेकिन भक्तगण तो प्रसन्न हैं इस बीस हजार करोड़ की फिजूलखर्ची पर। जैसा बोया जाएगा, फसल वैसी ही होगी। तो फिर काहे को कोरोना-कोरोना कह शोर मचा रहे हो भाई। धैर्य धरो, अयोध्या के बाद काशी में भी मस्जिद ढहाए जाने का इंतजार करो, राम के साथ-साथ कृष्ण का भी राज स्थापित हो जाएगा। तब तक शांति धरे रखो। नए जुमले का इंतजार करो। ज्यादा घबराओ नहीं। जैसे ही कोरोना का कहर मई अंत अथवा जून मध्य तक में गिरावट दर्ज करने लगेगा नया जुमला बतौर जश्न मनाने के लिए आपके लिए तैयार हो चुका होगा। इस बार ताली-थाली के साथ-साथ शंख बजाने का तरीका बताया जाएगा। तो भाई लोगों मस्त रहो। कोरोना से दम तोड़ते देश की कतई चिंता मत करो। चिंता करो तो केवल इस बात की कि कहीं बंगाल हाथ से चला तो नहीं जाएगा? कहीं बंगाल बांग्लादेश में तो नहीं शामिल हो जाएगा? तसल्ली दीजिए खुद को कि उत्तर प्रदेश में जहां राममंदिर बन रहा है, वहां के ‘यशस्वी’ मुख्यमंत्री भले ही बेचारे नागरिकों को ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हों, गायों की सुरक्षा के लिए हेल्प डेस्क बनाने का तो आदेश दे ही चुके हैं। गौ माता सुरक्षित रहेगी तो ज्यादा ऑक्सीजन अपने आप मिल जाएगी। फिर न तो करोड़ों खर्च करके ऑक्सीजन प्लांट लगाने पड़ेंगे, न ही अस्पतालों में अनावश्यक खर्चा करना पड़ेगा। अरे नाराज मत होइए। उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत साहब का ‘वैज्ञानिक सोच’ पर आधारित बयान याद करिए। 26 जुलाई 2019 को उन्होंने इस बाबत ज्ञान दिया था। उनसे पहले 2018 में राज्य की मंत्री रेखा आर्य जी भी राज्य विधानसभा में ऐसा ही वक्तव्य दे चुकी हैं। 2017 में राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार में शिक्षा मंत्री वसुदेव देवनानी भी ऐसा ही दावा कर चुके हैं। तब भला यूपी के सीएम साहब पद में रहते कैसे जनता को ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ने दे सकते हैं? उन्होंने गायों के लिए हेल्प डेस्क बना ही दी है। राममंदिर बनाने में दिन-राज जुटे हैं। धैर्य धरो भाई धैर्य। ‘आॅल इज वेल’ जपते रहो। सब कुछ ठीक हो जाएगा।

यदि मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़े नहीं होते, लड़ते देश की स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए, लड़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने के लिए या फिर साथ देते किसानों का, साथ देते उनका जो अंधाधुंध निजीकरण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, साथ खड़े नजर आते हरेक उस आवाज के साथ जो धर्म और राजनीति के नाम पर समाज को बांटने वालों का विरोध करती है तब शायद यह दिन न देखना पड़ता। तसल्ली दीजिए खुद को कि उत्तर प्रदेश में जहां राममंदिर बन रहा है, वहां के ‘यशस्वी’ मुख्यमंत्री भले ही बेचारे नागरिकों को ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हों, गायों की सुरक्षा के लिए हेल्प डेस्क बनाने का तो आदेश दे ही चुके हैं। गौ माता सुरक्षित रहेगी तो ज्यादा आॅक्सीजन अपने आप मिल जाएगी। फिर न तो करोड़ों खर्च करके ऑक्सीजन प्लांट लगाने पड़ेंगे, न ही अस्पतालों में अनावश्यक खर्चा करना पड़ेगा

रही बात उनकी, मुझ जैसों की, जो प्रधानमंत्री जी के ग्रेट विजन को, गृहमंत्री जी की दिन-रात तपस्या को, योगी जी की वैज्ञानिक सोच को न मानने का हठ करे बैठे हैं। उन्हें लोहिया को इस संकटकाल में अवश्य पढ़ना चाहिए। डाॅ राममनोहर लोहिया को यह देश समझ ही नहीं पाया। यदि उनके चिंतन पर थोड़ा भी मंथन होता तो इस अद्योगति में देश न पहुंचता। लोहिया शिव संस्कृति के उपासक थे। वर्तमान में विष्णु संस्कृति हमारे यहां हावी है। शिव संस्कृति से मेरा तात्पर्य औघड़ जीवन जीने वालों से है। ना ब्रांडेड कपड़े, न लग्जरी घर-कार केवल और केवल मानवीय सरोकारों से, करुणा से भरा ऐसा जीवन की नीलकंठ बन जाएं। दूसरी तरफ है विष्णु संस्कृति जिसमें आते हैं ऐश्वर्य, शक्ति प्रदर्शन से लबालब भरे वे सब जो लक्ष्मी पूजक हैं। जो अपने क्षीर सागर में एकांतवास करने वाले वे सब जिनका प्रतीक है कीचड़ में खिलने वाला ‘कमल’। जिस कीचड़ में पैदा हुए, उसीसंग दूरी बनाने वाले विष्णु संस्कृति के उपासक हैं। इनके पास प्रचार तंत्र है जिसका प्रतीक ‘शंख’ है। अपने विरोधियों को समाप्त करने, आतंकित करने के लिए इनके पास ‘गदा’ है। लोहिया सही अर्थों में शिव के उपासक थे। बहुत कम ऐसे सामाजिक जीवन जीने वाले पुरुष हमें देखने को मिलते हैं जो राजा-रंक, अफसर-चपरासी, महल-झोपड़ी, ब्राह्मण-शूद्र आदि का भेद न मानने वाले, सभी के प्रति समान दृष्टि रखने वाले हों। लोहिया को पढ़ें, पढ़ना जरूरी है ताकि वर्तमान समय में मचे हाहाकार के कारणों को समझा जा सके। उनके संसद में दिए गए कुछ कथन बेहद प्रासंगिक हैं जैसे कि:

  1. हिंदुस्तान की गाड़ी बेतहाशा बढ़ती जा रही है, किसी गड्ढ़े की तरफ या किसी चट्टान से चकनाचूर होने। इस गाड़ी को चलाने की जिन पर जिम्मेवारी है उन्होंने इसे चलाना छोड़ दिया है। गाड़ी अपने आप बढ़ती जा रही है। मैं भी इस गाड़ी में बैठा हूं। यह बेहताशा बढ़ती जा रही है। इसके बारे में मैं सिर्फ एक ही काम कर सकता हूं कि चिल्लाऊं और कहूं कि रोको। अगर मेरी आवाज और ज्यादा तेज नहीं होती तो कम से कम माननीय सदस्य इस बात को, मेरे दिल को, मेरी आत्मा की पुकार को समझें कि मैं चिल्लाना चाहता हूं कि इस गाड़ी को रोको, यह चकनाचूर होने जा रही है।
  2. एक व्यापक भ्रम को हमें मिटाना होगा। अपनी कमजोरियों की बात करते हुए हमेशा फूट और दंगों पर ध्यान केंद्रित रहता है। हमेशा जयचंद और मीरजाफर को ही हमारे देश का खलनायक करार दिया जाता है। ऐसे लोग हर युग में हर जगह रहे हैं। … हर स्कूली बच्चे को यह मालूम होना चाहिए कि राजाओं की फूट के कारण नहीं, बल्कि लोगों की उदासीनता के कारण हमलावरों को कामयाबी मिली। इस उदासीनता का सबसे बड़ा कारण जाति है। जाति से उदासीनता आती है और उदासीनता से हार।
  3. समूचा हिंदुस्तान कीचड़ का तालाब है जिसमें कहीं-कहीं कमल उग आए हैं। कुछ जगहों ंपर ऐय्याशी के आधुनिकतम तरीकों के सचिवालय, हवाई अड्डे, होटल, सिनेमाघर और महल बनाए गए हैं और उनका इस्तेमाल उसी तरह के बने-ठने लोग-लुगाई करते हैं। लेकिन कुल आबादी के एक हजारवें हिस्से भी इन सबका कोई सरोकार नहीं है। बाकी तो गरीब, उदास, दुखी, नंगे और भूखे हैं।
  4. हिंदुस्तान की सामान्य जनता, मामूली लोग अपने में भरोसा करना शुरू करें कि कल तक जो अंग्रेजी राज था, वह पाजी बन गया तो उसे खत्म किया। आज कांग्रेसी सरकार है, वह पाजी बन गई उसे खत्म करेंगे। परसों सोशलिस्ट सरकार बनेगी। मान लो वह पाजी बने तो उसे भी खत्म करेंगे। जिस तरह तबे के ऊपर रोटी उलटते-पलटते सेंक लेते हैं उसी तरह से हिंदुस्तान की सरकार को उलटते-पलटते ईमानदार बनाकर छोड़ेंगे। यह भरोसा किसी तरह हिंदुस्तान की जनता में आ जाए तो फिर रंग जा जाएगा अपनी राजनीति में।
  5. अब यह दिल्ली वाली गद्दी, जो भी इस पर बैठेगा, दुखदायी रहेगी। गद्दी पर बैठने वाला जब तक खुद को और गद्दी को जलाने और स्वाहा करने को तैयार नहीं होगा, यह दुखदायी ही रहेगी।
  6. संसद को स्वांग, पाखंड और रस्म अदायगी का अड्डा बना दिया गया है। सरकार और सदस्य जानवरों की तरह जुगाली करते रहते हैं।

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