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ट्रेन की पटरी पर फेंका खाना खाता व्यक्ति का वीडियो वायरल, लोग बोले हमें शर्म आनी चाहिए

ट्रेन की पटरी पर फेंका खाना खाता व्यक्ति का वीडियो वायरल, लोग बोले हमें शर्म आनी चाहिए

कहते हैं कि दो वक्त की रोटी जिसे नसीब हो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है। रोटी की कीमत सांप्रदायिक हिंसा बढ़ाने वालों, एसी में घूमने वालों, बड़ें-बड़े होटलों में छुरी-चमच्च से खाने वालों को नहीं मालूम होगा। धर्म के नाम पर लोग लड़ते हैं। एक-दूसरे के जान के भूखे हैं। लेकिन असल भूख क्या है उन लोगों से पूछो जो दूसरे के जुठे पर पलते हैं।

शायद अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि हम क्या कहना चाहते हैं। अगर नहीं समझ आया हो तो इस वीडियो को देखिए जो सोशल मीडिया वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में एक शख्स रेल की पटरियों पर पड़ा हुआ खाना खा रहा है। करीब आधेे मिनट का ये वीडियो आपको अंदर तक झकझोर कर रख देगा।

निकर और शर्ट पहने शख्स रेल की पटरियों के बीच में पड़ा हुआ खराब खाना खा रहा है। वीडियो में जहां खाना फेंका हुआ है। वहां आसपास खासी गंदगी भी नजर आ रही है। लेकिन वह इन सब से अंजान सिर्फ अपना पेट भरने की कोशिश कर रहा है।

यह वीडियो ट्विटर यूजर रवि नायर शेयर ने शेयर किया है। उन्होंने ये वीडियो रविवार यानी 1 मार्च, 2020 को शेयर किया था। इसे करीब 1,800 बार रिट्वीट किया जा चुका है और तीन हजार से ज्यादा लोगों ने लाइक किया है।

इस वायरल वीडियो पर यूजर जमकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। नीलेश जैन @JainNilish लिखते हैं, “मुझे उम्मीद है कि वीडियो शूट करने वाले व्यक्ति ने गरीब आदमी के लिए कुछ भोजन खरीदा होगा, जिसके बाद उसने अवॉर्ड जीतने पर वाला वीडियो शूट किया।”

वहीं जीत @Jeet00267395 लिखते हैं, “वो गरीब है और यही उसका धर्म है। हमें सिर्फ एक ही धर्म के खिलाफ लड़ना है…गरीबी। गरीबी सिर्फ गरीबी है।”

आजम सिद्दीकी @azam_tweets लिखते हैं, “हमें शर्म आनी चाहिए।”

यशवंत सिंह लिखते हैं, “एक राष्ट्र के तौर पर हम फेल हो गए। भाजपा, कांग्रेस और सभी राजनीतिक पार्टियों का धन्यावाद।”

ये तो रही इस वीडियो की बात। ऐसे न जाने कितने लोग हैं, जिससे न धर्म से मतलब है न ही जाति से। उन्हें मतलब है सिर्फ भूख से। कुछ दिन पहले एक और वीडियो वायरल हुआ था जिसमें लगभग 60-65 साल का एक बुजुर्ग व्यक्ति दिख रहे थे। उनके हाथ में रोटी थी जिसे पहले वो धोते हैं फिर खाने लगते हैं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस वीडियो को देखकर उसकी आंखें नम नहीं हुई हो।

लोग बड़े-बड़े सपने देखते हैं और सरकार भी सपने दिखाती है। लेकिन ऐसा क्यों है इन सभी के बीच उस तबके के बारे में लोग नहीं सोचते जो झुग्गियों में रहते हैं। या फिर जिनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। भोजन सभी को मिले यह मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।

इस मुद्दे को सबसे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेंकलिन रूज़वेल्ट ने अपने एक व्याख्यान में उठाया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने इस मुद्दे को अपने हाथ में ले लिया और 1948 में आर्टिकल 25 के तहत भोजन के अधिकार के रूप में इसे मंज़ूर किया। साल 1976 में संयुक्त राष्ट्र परिषद ने इस अधिकार को लागू किया, जिसे 156 राष्ट्रों की मंज़ूरी हासिल है और कई देश इसे क़ानून का दर्जा भी दे रहे हैं। इस क़ानून के लागू होने से भूख से होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा।

2019 के एक रिपोर्ट के मुताबिक, रोजाना भूख और गरीबी की वजह से 25 हजार लोगों की मौत होती है। 85 करोड़ 40 लाख लोग को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। ये आकड़ा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन संघ की जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। भुखमरी के शिकार लोगों में 60 फ़ीसद महिलाएं हैं। दुनियाभर में भुखमरी के शिकार लोगों में हर साल 40 लाख का इज़ाफ़ा हो रहा है।

पिछले रिपोर्ट के अनुसार, हर पांच सेकेंड में एक बच्चा भूख से दम तोड़ता है। 18 साल से कम उम्र के तक़रीबन 45 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। विकासशील देशों में हर साल पांच साल से कम उम्र के औसतन 10 करोड़ 90 लाख बच्चे मौत का शिकार बन जाते हैं। इनमें से ज़्यादातर मौतें कुपोषण और भुखमरी से होने वाली बीमारियों से होती हैं।

कुपोषण संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए सालाना राष्ट्रीय आर्थिक विकास व्यय 20 से 30 अरब डॉलर है। विकासशील देशों में चार में से एक बच्चा कम वजन का है। यह संख्या तक़रीबन एक करोड़ 46 लाख है। भूख से बेहाल लोगों को कूड़ेदानों में से रोटी या ब्रेड के टुकड़ों को उठाते हुए दिनभर में सैकड़ों लोगों को हम सब अपने आंखों से देखते हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है और विडंबना है कि हमारे देश में आज़ादी के बाद से अब तक गरीबों की भलाई के लिए कई योजनाएं तो बनीं। लेकिन सरकार के महंगे कागजों तक सिमट कर रह गईं।

तमिलनाडु में एक सराहनीय कार्य को 2017 में अंजाम दिया गया था। ‘अम्मा कैंटीन’ खोला गया था जहां 10 रुपये में दिन और रात दोनों टाइम का खाना मिलता है। तमिलनाडु के ’अम्मा कैंटीन’ की तर्ज़ पर देशभर में कैंटीन खोले जाने की जरूरत है। ख़ासकर देश के उन हिस्सों में जो गरीबी की मार से अधिक जूझ रहे हैं। जहां एक तरफ सरकारी गोदामों में लाखों टन अनाज को सड़ा दिया जाता है तो दूसरी तरफ भूख से लोग मर रहे हैं। हमारे देश में जहां नेताओं, विधायकों को सैलरी मिलती है साथ ही पेंशन भी मिलती है। उसके बावजूद संसद में उनके लिए खाना 5-10 रुपये में मिलता है। हमारे देश के हज़ारों लोग भूखे-नंगे दर-दर भटकने को मजबूर है।

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