राजस्थान में इस साल नवंबर के अंत में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं, जिसको लेकर पूरे राजस्थान में राजनीतिक सरगर्मी उफान पर है। कुछ दिन पहले तक राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था, लेकिन बीते दिनों अमित शाह और वसुंधरा राजे के बीच हुई बैठक के बाद जब बैठक की तस्वीरें सामने आईं तो लोगों की निगाह सिर्फ वसुंधरा के हाव-भाव पर थीं। लोग उनकी बॉडी लैंग्वेज को देखना और समझना चाह रहे थे। वीडियो में दिख रहा है कि वसुंधरा के एक तरफ गजेंद्र सिंह शेखावत बैठे हैं और दूसरी तरफ राज्यवर्धन राठौड़। ये सीटिंग अरेंजमेंट तब तक का है, जब तक अमित शाह और जेपी नड्डा बैठक के लिए पहुंचे नहीं थे। जैसे ही दोनों नेता मीटिंग के लिए पहुंचे सीटिंग अरेंजमेंट बदल गया।
बताया जा रहा है कि यह बैठक शाम करीब साढ़े सात बजे शुरू हुई और रात दो बजे तक चलती रही। इस दौरान उम्मीदवारों से लेकर प्रचार की रणनीति तक पर चर्चा हुई। कोर ग्रुप की बैठक में अमित शाह और जेपी नड्डा समेत राज्य और केंद्र सरकार के करीब 17-18 लोग मौजूद थे। जब मीटिंग खत्म हुई और नेता होटल से बाहर निकलने लगे तो मीडिया के कैमरे में वसुंधरा, गजेंद्र सिंह शेखावत और कुलदीप बिश्नोई नजर आए। पत्रकारों ने वसुंधरा से सवाल पूछना चाहा, लेकिन उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई। वो ये कहते हुए गाड़ी में बैठ गईं कि मीटिंग बहुत अच्छी रही। उनके इस बयान को लेकर माना जा रहा है कि मीटिंग में बनी रणनीति ने वसुंधरा को फिर से रेस में वापस ला दिया है। इस मीटिंग में वसुंधरा को भरोसा दिया गया है कि पार्टी चुनाव में उनके सम्मान का पूरा ख्याल रखेगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजस्थान में इस बार वसुंधरा राजे एक बार फिर चुनावी कमान संभालेंगी।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं। प्रदेश में अब भी उनको भीड़ जुटाने वाली नेता के तौर पर जाना जाता है। पार्टी राजनीति में वो भले ही खुद को साइड लाइन समझ रहीं थीं, लेकिन समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है और इसी लोकप्रियता की बदौलत उन्होंने चुनावी रेस में वापसी की है। यह भी माना जा रहा है कि आरएसएस नेताओं ने वसुंधरा की पैरवी की है। संघ का भी मानना है कि बिना क्षेत्रीय क्षत्रप के सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर विधानसभा का चुनाव नहीं जीता जा सकता। कर्नाटक की हार के बाद संघ के मुखपत्र में ये बातें कही गईं थी। राजस्थान में आरएसएस की जड़ें गहरी हैं।
एक सर्वे में भी 36 फीसदी लोगों ने माना था कि वसुंधरा ही पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, जबकि गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम लेने वाले महज 9 फीसदी लोग ही थे। वहीं राज्यवर्धन सिंह राठौर और अर्जुन मेघवाल का नाम 7 फीसदी लोगों ने लिया था। ऐसे में बीजेपी नहीं चाहती कि चुनाव से पहले किसी भी सूरत में आपसी गुटबाजी का असर चुनाव के नतीजों पर पड़े। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के चेहरे को ही आगे रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई जा रही है। बाकायदा मोदी के चेहरे को भुनाने के लिए राजस्थान
बीजेपी ने एक गाना भी तैयार किया है। हालांकि 200 सीटों वाले राजस्थान में सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला और ये सच्चाई पार्टी भी समझती है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा की जड़ें काफी गहरी हैं। इसलिए उनको नजरअंदाज करके सत्ता हासिल करना आसान नहीं रहने वाला है। शायद यही वजह है कि वसुंधरा को साधे रखने के लिए नेतृत्व ने नई रणनीति बनाई है। अब ये रणनीति क्या है इसका खुलासा होना बाकी है।