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मानवाधिकारों का हनन किया उत्तराखंड पुलिस ने, पत्रकार अहसान ने किया खुलासा 

मानवाधिकारों का हनन किया उत्तराखंड पुलिस ने, पत्रकार अहसान ने किया खुलासा 

एक समय था जब यूपीए 1 और यूपीए 2 के दिनों में भोजन का अधिकार, रोजगार के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, सूचना का अधिकार और जमीन के अधिकार पर देश बहस कर रहा था। देश में लग रहा था कि हम नागरिक समाज के आंदोलन के जरिये एक पूर्ण लोकतान्त्रिक राज्य की ओर बढ़ रहे हैं।

इसके बाद आया मोदी राज । मोदी सरकार -01 के बाद अब मोदी सरकार-02 चल रही है। आज की स्थितियों पर गौर करें तो फिलहाल ये सब मुद्दे सिरे से गायब हैं। आज घृणा और नफ़रत के ख़िलाफ़ समूह बन रहे हैं। आज मुद्दे हैं कि किसी को लिंच करने का अधिकार न हो। देश के किसी नागरिक को देशद्रोही, घुसपैठिया घोषित करने का सर्टिफिकेट न दिया जाय। इसी के साथ देश को विश्व गुरू बनाने के दावे किए जा रहे हैं।

फिलहाल देखे तो देश में इस समय सबसे बडी बहस पुलिस थानों में मानवाधिकारो के हनन की चल रही है। थानों से आए दिन समाचार पढने को मिल रहे हैं। बावजूद इसके कि हर साल 10 दिसंबर के दिन देश के हर थाने में पुलिस को मानवाधिकारो का पालन करने की शपथ दिलवाई जाती है।लेकिन थानों में पुलिस खुलेआम मानवाधिकारो का हनन करने में सबसे आगे होती है।

देवभूमि उत्तराखंड की ही बात करे तो यहां के हर थाने चौकियों पर मानवाधिकार संरक्षण के बड़े-बड़े दावे करने के साथ ही बड़े-बड़े अक्षरों में मानवाधिकार के नियम लिखे होते है। लेकिन देखने में आता है कि नियम तोडने में सबसे अग्रणी पुलिस ही होती है। उत्तराखंड में हरिद्वार पुलिस का पत्रकार अहसान अंसारी प्रकरण इसका ताजा उदाहरण है।

अहसान अंसारी के साथ पुलिस ने मानवाधिकारों का ना केवल खुलेआम उल्लंघन किया है बल्कि खाकी को भी दागदार बना डाला है। इसकी बानगी भर हैं ‘दि संडे पोस्ट’ के गढवाल ब्यूरो चीफ अहसान अंसारी। अंसारी के साथ जो कुछ हुआ है वह सोचने पर मजबूर करता है कि जब एक पत्रकार के साथ ऐसा अन्याय होता है तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा?

16 मई को एक फर्जी मामले में जेल भेजे गए अहसान अंसारी ने फिलहाल हरिद्धार की रोशनाबाद जेल से कारागार अधीक्षक के माध्यम से पत्र लिखकर पुलिस की पोल खोली है। हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्रकार अहसान अंसारी द्वारा अवगत कराया गया है कि प्रार्थी जनपद स्तर पर राजकीय मान्यता प्राप्त पत्रकार है। प्रार्थी द्वारा समय-समय पर माफिया व पुलिस गठजोड़ को लेकर समाचार प्रकाशित किए जा रहे हैं।

‘दि संडे पोस्ट’ के न्यूज़ पोर्टल पर प्रार्थी ने ज्वालापुर के निवर्तमान कोतवाल योगेश देव के संबंध में एक समाचार प्रकाशित किया था। जिस कारण योगेश देव व उनके खास पुलिसकर्मी प्रार्थी से रंजिश रखने लगे थे। यही नहीं बल्कि कोतवाल द्वारा बदले की भावना से प्रार्थी के विरुद्ध तरह-तरह की साजिश रची जा रही थी। जिस के संबंध में प्रार्थी ने सीएम हेल्पलाइन ट्विटर सहित डीजीपी महोदय को ईमेल के माध्यम से अवगत भी कराया था।

दिनांक 16 मई 2020 कि सुबह 11:24 बजे की घटना है। प्रार्थी भेल सेक्टर 1 से मध्य मार्ग होते हुए ज्वालापुर की ओर जा रहा था। तभी वर्कर हॉस्टल के बाहर पहुंचते ही पीछे से ज्वालापुर कोतवाली की सरकारी जीप में आए तत्कालीन निरीक्षक योगेश देव ,चालक आनंद रावत , सिपाही सतेंदर यादव ने प्रार्थी को जबरदस्ती रोक लिया और प्रार्थी की मोटरसाइकिल छीनते हुए प्रार्थी को जबरदस्ती उठाकर सरकारी जीप में डाल लिया।

प्रार्थी के दोनों फोन भी छीन लिए गए और प्रार्थी को उठाकर सेक्टर 14 भेल स्थित हरिद्वार के एसओसी-एलआईयू कार्यालय के पीछे की ओर स्थित एक छोटे कमरे में ले जाकर बंधक बना लिया। प्रार्थी के बार-बार कहने के बावजूद प्रार्थी को परिजनों से बात तक नहीं करने दी। इस दौरान प्रार्थी को अवैध हिरासत में रखते हुए प्रार्थी को विभिन्न तरीके से शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी गई।

इसके उपरांत 6-7 घंटे की अवैध हिरासत में रखने के पश्चात प्रार्थी को साजिशन दर्ज किए गए फर्जी मुकदमें में 16 मई की शाम 5:30 बजे प्रार्थी की गिरफ्तारी दिखलाई गई । जबकि तीनों पुलिसकर्मियों ने प्रार्थी को भेल मध्य मार्ग से सुबह 11:24 पर वर्कर हॉस्टल के बाहर से अपहरण किया गया। एसओजी-एलआईयू कार्यालय में अवैध हिरासत में रखा और फोन छीन कर प्रताड़ित किया गया। फोन लोकेशन से जांच होने पर सच्चाई सामने आ जाएगी।

आपसे प्रार्थना है प्रार्थी का अपहरण कर पद का दुरुपयोग करते हुए षड्यंत्र कर प्रार्थी को अवैध हिरासत में रख फोन छीनने वाले तथा शारीरिक यातनाएं देने वाले ज्वालापुर कोतवाली के तत्कालीन निरीक्षक योगेश देव, चालक आनंद रावत , सिपाही सत्येंद्र यादव के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराएं जाने के आदेश करने का कष्ट करें जिससे सच सामने आ सके।

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