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उत्तर प्रदेश से गायब हो रहे डॉक्टर

डीएम व एमसीएच की डिग्री लेने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे उत्तर प्रदेश सरकार मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी सेवा को और बेहतर करना चाहती है। लेकिन डिग्री धारक ये डॉक्टर्स धीरे- धीरे गायब होने लगे हैं। दरअसल, प्राइवेट कॉरपोरेट अस्पतालों में अच्छे पैकेज के लालच में आकर यह डॉक्टर अपने बॉन्ड की निर्धारित अवधि पूरी नहीं कर रहे हैं।

जिसके चलते एक तरफ सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहा है वहीं दूसरी तरफ सुपर स्पेशियलिटी सेवा देने के सपने पर भी पानी फिर रहा है। बावजूद इसके मेडिकल डिपार्टमेंट जानकारी होते हुए भी अनजान बन रहा है। जब गायब हुए विशेषज्ञ डॉक्टर पर कोई एक्शन नहीं हो रहा है तो नए सत्र के भी कई डॉक्टर्स अच्छे पैकेज के लिए प्राइवेट सेक्टर की और बढ़ने की फिराक में हैं। इस दौरान नए सत्र के डॉक्टर अपने डॉक्यूमेंट के लिए संबंधित कॉलेजों में जुगाड़ बिठा रहे हैं।

गौरतलब है कि प्रदेश के मेडिकल इंस्टिट्यूट में डीएम और एमसीएच का अध्ययन करने वाले लगभग 150 डॉक्टरों से बॉन्ड भरवाया जाता है। इस बॉन्ड के तहत डिग्री पूरी होने के बाद उन्हें करीब दो साल तक सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में सेवाएं देना अनिवार्य होता है। यदि वह बॉन्ड की शर्त पूरी नहीं कर पाते हैं तो उन्हें सरकारी खाते में एक करोड़ रुपये देना पड़ता है। यह व्यवस्था वर्ष 2018 से लागू हुई है। लागू होने के बाद वर्ष 2021 में बैच ने डिग्री पूरी की। डिग्री पूरी होने के बाद काउंसलिंग के जरिए इन डॉक्टरों को अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। इस दौरान मानदेय के तौर पर 1.20 लाख रुपये प्रतिमाह दिया जाता है।

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खबरों से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, पिछले साल कई डॉक्टरों द्वारा काउंसिलिंग में हिस्सा ही नहीं लिया गया।  संबंधित कॉलेज प्रशासन की मदद से ये सभी अपने डॉक्यूमेंट लेकर गायब हो गए। इनमें से एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज मेरठ, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज, एसजीपीजीआई और केजीएमयू के एक-एक डॉक्टर का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि ये डॉक्टर प्राइवेट कॉरपोरेट अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस मामले के उजागर होने के बाद भी कोई कार्रवाई न होने के कारण इस साल अपनी डिग्री पूरी करने वाले डॉक्टर भी पूरी तरह से निश्चिन्त नजर आ रहे हैं।  डिग्री हासिल किए हुए इन्हें 2 महीने हो गए हैं। लेकिन अभी तक इस बैच की काउंसलिंग कर कॉलेज अलॉट नहीं किए गए हैं।

कोई एक्शन न होने के कारण कुछ विशेषज्ञ डॉक्टर अलग-अलग प्रदेश में निजी अस्पताल में सेवाएं देने लगे हैं। इस साल डिग्री हासिल करने वाले डॉक्टरों का कहना है जब पहले बैच के डॉक्टरों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया तो उनपर भी नहीं लिया जाना चाहिए। वहीं

गायब होने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि बॉन्ड के तहत दो साल अस्पताल में सेवा देना अनिवार्य है या फिर करोड़ रुपया जमा करना। ऐसे में जो लोग डिग्री लेने के बाद भी सरकारी अस्पताल में सेवाएं नहीं दे रहे हैं। उनके खिलाफ जांच के बाद एक्शन होगा।

—-चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशक श्रुति सिंह

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