मशहूर शास्त्रीय गायक और संगीतकार उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान का 17 जनवरी को निधन हो गया। उन्होंने 89 साल की उम्र में मुम्बई के बांद्रा स्थित अपने ही घर में अंतिम सांस ली। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म श्री, 2006 में पद्म भूषण और 2018 में पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा था।
गुलाम मुस्तफा खान का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था। उनकी मां महान उस्ताद इनायत हुसैन खान की बेटी थीं और संगीत उनके परिवार की विरासत थी। इनायत हुसैन खान, राजा वाजिद अली शाह के शासनकाल में भी दरबारी संगीतज्ञ थे और ग्वालियर घराने के अग्रणी राजा हड़्डू खान के दामाद भी थे।
आठ वर्ष की उम्र में ही प्राप्त कर ली थी संगीत जगत में ख्याति
अवध में एक समय, हर शहर में एक विक्टोरिया गार्डन हुआ करता था। उस वक़्त यह रिवाज था कि जन्माष्टमी पर, संगीत में रुचि रखने वालों के लिए शासन-प्रशासन द्वारा एक सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन कराया जाता था। अवध में भी इसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही थी।
तत्कालीन नगर पालिका के अध्यक्ष अली मकसूद ने हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जन्माष्टमी समारोह का आयोजन किया था। हर आयोजन में एक विशेष गायक को आमंत्रित किया जाता था और उन्हें ही कार्यक्रम को संगीतमय बनाना होता था। इस बार एक नन्हें गायक को कार्यक्रम में बुलाया गया था जिसकी उम्र मात्र आठ वर्ष की थी। जो बाद में चलकर कई दिग्गज गायकों के गुरु हुए उनका नाम था गुलाम मुस्तफा खान।
चूंकि गुलाम मुस्तफा खान के माता-पिता चाहते थे कि वे एक गायक बनें, इसलिए संगीत में उनका प्रशिक्षण बहुत कम उम्र में ही शुरू हो गया था। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे बचपन से ही धुन में रूचि रखते थे , वह शब्दों को तो नहीं पर धुनों को जरूर याद रखते थे।
रामपुर, ग्वालियर और सहसवान घरानों की पारंपरिक शैलियाँ
अपने पिता के बाद, उन्हें उस्ताद फिदा हुसैन खान द्वारा संगीत सीखने का अवसर मिला जो बड़ौदा के शाही दरबार में दरबारी गायक थे, और फिर निसार हुसैन खान से। रामपुर, ग्वालियर और सहसवान घरानों की पारंपरिक शैलियाँ इसलिए उनकी गायकी में रस की तरह घुली हुई थी।
उन्होंने जिस पहली फिल्म के लिए मराठी में गीत गाया उसका नाम था ‘छंद प्रितिजा’ ।
1957 से, उन्होंने मराठी और गुजराती फिल्मों के लिए पार्श्व गायन शुरू किया। उन्होंने मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ से शुरुआत की और उसी संगीत निर्देशक विजय राघव राव के नेतृत्व में ‘बदनाम बस्ती’ के लिए ‘सजना काहे नहीं आए …’ गाया। उन्होंने एक ही फिल्म में पार्श्व गायक होने के अलावा जयपुर में एक जर्मन डॉक्यूमेंट्री “रेन मेकर” में बैजू बावरा की भूमिका भी निभाई।
उन्होंने फिल्म्स डिवीजन द्वारा बनाई गई 70 से अधिक वृत्तचित्र फिल्मों को अपनी आवाज दी है, जिनमें से कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर रही हैं। उन्होंने पूरे भारत और यूरोपीय देशों में अपने संगीत का परचम लहराया है।
पिछले करीब 15 वर्षों से उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हो गए थे। उन्हें लकवा भी मार दिया था तभी से वह बीमार चल रहे थे। वह चल-फिर भी नहीं पाते थे। घर में ही उनका इलाज चल रहा था। और 17 जनवरी को वे हम सबको अलविदा कह गए। संगीत जगत से कई लोगों ने उन्हें अपनी श्रद्वाजंलि अर्पित की है।
वो गायक अच्छे थे पर इंसान भी बहुत अच्छे थे : लता मंगेशकर
लता मंगेशकर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साहब की एक फोटो शेयर की है। उन्होंने कैप्शन में लिखा, ”मुझे अभी ये दुखद खबर मिली है कि महान शास्त्रीय गायक उस्ताद उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साहब खान इस दुनिया में नहीं रहे। ये सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ है। वो गायक अच्छे थे पर इंसान भी बहुत अच्छे थे।”
Mujhe abhi abhi ye dukhad khabar mili hai ki mahan shastriya gayak Ustad Ghulam Mustafa Khan Saheb is duniya mein nahi rahe. Ye sunke mujhe bahut dukh hua. Wo gayak to acche the hee par insaaan bhi bahut acche the. pic.twitter.com/l6NImKQ4J9
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) January 17, 2021
लता ने एक और ट्वीट में लिखा, ”मेरी भांजी ने भी खान साहब से संगीत सीखा है। मैंने भी उनसे थोड़ा संगीत सीखा था। उनके जाने से संगीत की दुनिया को हानि हुई है। मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।”
वह आशा भोसले, मन्ना डे, रानू मुखर्जी, गीता दत्त, एआर रहमान, हरिहरन, शान,सोनू निगम ,शिल्पा राव आदि जाने-माने गायकों के गुरू रहे हैं।मशहूर सूफी गायक रशीद खान उनके भतीजे हैं।