अक्टूबर 1997 के बाद से यूपी कांग्रेस में एक बार फिर से बगावत के बिगुल बजने वाले हैं। पार्टी से स्वतः हटे और हटाए गए पूर्व कांग्रेसी नेताओं से लेकर मौजूदा समय में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने एक ‘थर्ड फ्रंट’ के रूप में एक नया विकल्प चुना है। बगावती तेवरों से सराबोर इन नेताओं की एक मीटिंग बहुत जल्द लखनऊ में होने वाली है। इस मीटिंग में ‘थर्ड फ्रंट’ का नामकरण भी होगा और दिशा भी तय की जायेगी।
मौजूदा समय में मोदी-शाह की जोड़ी जिस रणनीति पर काम कर रही है उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि आने वाले समय में विपक्ष की भूमिका महज नाम मात्र की रह जायेगी। बात यदि उत्तर प्रदेश की हो तो भाजपा के समक्ष सपा-बसपा और कांग्रेस की हालत ठीक वैसी है जैसे बीच भंवर में फंसी नैया में बैठे लोग बेसब्री से किनारे की तलाश में हो।
यूपी की इन प्रमुख पार्टियों में सर्वाधिक खराब हालत कांग्रेस की है। कोमा में पहुंच चुकी कांग्रेस की हालत से वरिष्ठ कांग्रेसी भलीभांति परिचित हैं। इन नेताओं को अब इस बात का आभास हो चला है कि कांग्रेस अब समाप्ति की ओर है। कहा जा रहा है कि जिस कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता हो और गांधी परिवार का लगाव भी पार्टी से सौतेला हो गया हो तो ऐसे में कांग्रेस के भविष्य पर चर्चा करना महज स्वांग के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। दूसरी ओर अवसर की तलाश में बैठे कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने वक्त की नजाकत को भांप लिया है और ऐसा निर्णय लिया है जो आने वाले कुछ समय में कांग्रेस हाई कमान के लिए चैंकाने वाला साबित हो सकता है।
यूपी कांग्रेस के कुछ बडे़ नेता बहुत जल्द एक नया विकल्प लेकर सामने आने वाले हैं। बात थर्ड फ्रंट बनाए जाने की हो रही है जो सीधे जनता की समस्याओं से जुड़कर उनके हितों की बात करेगी। इस थर्ड फ्रंट की खास बात यह है कि यह फ्रंट कांग्रेस से निकलकर सामने आयेगा। अर्थात लगभग दो दशक पश्चात वर्ष 1997 के बाद कांग्रेस में एक और बड़ा विद्रोह।
अक्टूबर 1997 का वह दिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को बखूबी याद होगा जब जगदम्बिका पाल और नरेश अग्रवाल की अगुवाई में कांग्रेस से विद्रोह करके अखिल भारतीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया गया था। कांग्रेस से टूटकर गठित की गयी इस पार्टी में पंडित हरिशंकर तिवारी, जगदम्बिका पाल, नरेश अग्रवाल, अतुल कुमार सिंह, बच्चा पाठक, राजीव शुक्ला और श्याम सुन्दर शर्मा समेत अनेक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शामिल थे। इस विद्रोह के बाद से यूपी में कांग्रेस का जनाधार लगातार गिरता ही चला गया। मौजूदा समय में कांग्रेस कोमा की स्थिति में है। रही-सही कसर अब थर्ड फ्रंट पूरी कर देगा। फिलहाल थर्ड फ्रंट के गठन की बात करने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि यह थर्ड फ्रंट नाॅन पाॅलिटिकल होगा। अर्थात इसका जुड़ाव राजनीति से परे रहकर आम जनता की समस्याओं का समाधान करना होगा। यूपी विधानसभा चुनाव में तकरीबन ढाई वर्ष का समय शेष है। यदि इस दौरान थर्ड फ्रंट आम जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुआ तो निश्चित तौर पर आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी भी उतारे जा सकते हैं।
थर्ड फ्रंट की आधारशिला रखने की बात करने वाले इन कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि मौजूदा समय में भाजपा के बाद कोई ऐसा दल नहीं है जो उसके आस-पास भी नजर आता हो और यही वह समय है जब किसी ऐसे दल को तैयार किया जाना चाहिए जो इस खाली स्थान को भर सके। रही बात कांग्रेस हाई कमान की तो उसमें अब राजनीति का माद्दा नहीं रह गया है। वह तो बस खानापूर्ति तक ही सीमित रहा गया है।
कांग्रेस से बगावत करके नया फ्रंट बनाने वाले नेताओं की एक मीटिंग बहुत जल्द लखनऊ में होने वाली है। इस मीटिंग में ही तय हो जायेगा कि फ्रंट किन मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरेगा और उसकी अगली रणनीति क्या होगी।
नया फ्रंट गठित करने की बात करने वाले नेताओं ने इस संवाददाता से यह भी बताया है कि इस नए फ्रंट में कांग्रेस का साथ छोड़ चुके नेताओं से लेकर मौजूदा समय में कांग्रेस के कुछ बड़े नेता भी शामिल हैं। अर्थात लगभग दो दशक बाद एक बार फिर से बहुत जल्द कांग्रेस को एक बड़ी बगावत का सामना करना पड़ सकता है।