भारत की महिलायें जिन्हे हमेशा इस समाज में पुरुषों से कमतर ही आँका गया है आज वह हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। लेकिन अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को 4 दीवारों के भीतर ही रखा जाता है। जिसे उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्द शहर कानपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं गलत सिद्ध कर दिया है।
जहाँ महिलाओं का अपना खुदका ‘अनाज बैंक’ है। जो उनहोंने खुदको आत्मनिर्भर बनने के लिए शुरू किया है। जिसमें महिलाएं अनाज जमा करती हैं और उन्हें जरूरतमंद किसानों को प्रदान करती हैं। इस अनाज बैंक में पहले गाँव की महिलाएं अपने घरों से करीब 2-3 किलो. अनाज का योगदान करती हैं और फिर जरूरत के समय महिला किसानों को अनाज का स्टॉक प्रदान किया जाता है। फसल के मौसम में, महिलाएँ एक निश्चित ब्याज दर के साथ ‘ऋण’ चुकाती हैं, जो कि अनाज के रूप में ही होता है।
कैसे हुई शुरुआत
अनाज बैंक की यह शुरुआत श्रमिक भारती नामक एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा की गई थी। जिसका कार्य उत्तर भारतीय समुदायों में ‘सभी के लिए समान अवसरों के साथ सतत विकास’ पर ध्यान देना है। अब यह संगठन गांव में रहने वाली अन्य महिलाओं को भी अपना अनाज बैंक शुरू करने के लिए प्रेरित करता है। इस शुरआत का एक बेहतरीन पहलु यह है कि जब इसकी शुरुआत हुई हुई थी तो इन बैंकों को श्रमिक भारती द्वारा ही समर्थित किया जाता है। लेकिन अब धीरे-धीरे स्थानीय महिलाओं को ही इसके संचालन के लिए पूरी तरह से प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया जाता है। साथी ही यह संगठन इन बैंकों को कार्य करने के लिए भंडारण सुविधाएं भी प्रदान करता है।
कोरोनाकाल में था सहारा
कोरोनाकाल में लॉकडाउन के समय जब लोग दाने – दाने को मोहताज थे उस समय इस योजना ने लोगों को सहारा दिया । गाँव कनेक्शन, में छपी एक स्टोरी में कानपुर के छब्बा निवादा में अनाज बैंक की एक संचालिका रामकुमारी बताती हैं कि “जब हम लोग समूह में बैठने लगे तो एक बात समझ आई कि ज्यादातर महिलाओं के यहां इतना अनाज पैदा नहीं होता कि सालभर खा सके। नवंबर-दिसंबर से मार्च-अप्रैल तक गेहूं ज्यादातर घरों में खत्म हो जाता है। अनाज के लिए महिलाएं भटके न इसके लिए ऐसे क्या प्रयास किये जाएं? ये बात श्रमिक भारती से जुड़े अधिकारियों के सामने रखी गयी। और फिर अनाज बैंक का जन्म हुआ।”
इसी स्टोरी में सरोज देवी नाम की एक ग्रामीण महिला बयान देते हुए कहती हैं कि ” कोरोना के समय उन्हें बीज उधर लेना पड़ा। और उनके पास पास डेढ़ बीघा ही खेती थी , जिसमें इतना पैदा नहीं होता कि साल भर गेहूं चलता रहे। पहले राशन का इंतजाम करना मुश्किल काम होता था, लेकिन अनाज बैंक खुलने से अनाज की दिक्कत कम हो गई है। ”