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आउट ऑफ कंट्रोल होती यूपी पुलिस

भाजपा शासित राज्य जिस तरह से ठोको नीति का सहारा लेकर अपराधियों को कंट्रोल करने निकले थे। उसमे न अपराध कंट्रोल हुआ न अपराधी कंट्रोल में आए। बल्कि पुलिस कंट्रोल से बाहर हो गई। हर दिन पुलिस के नए-नए कारनामे देखने को मिलते है। हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के कासगंज में अल्ताफ की मौत , हत्या के तरफ इशारा कर रही है। ये हत्या न पहली है। न आखिरी।

दअरसल, 9 नवम्बर के दिन 21 वर्ष के अल्ताफ़ की पुलिस कस्टडी के दौरान मौत हो गई। अल्ताफ़ पर 16 साल की लड़की को भगाने का आरोप था। शक के आधार पर पुलिस ने उसे 8 नवम्बर को हिरासत में ले लिया था और अगली सुबह पता चला कि बाथरूम में लगी पानी की टौंटी से लटककर अल्ताफ़ ने आत्महत्या कर ली है। जिसके बाद से पुलिस पर आरोप लगाया जा रहा है कि आखिर डेढ़ दो फुट ऊंचाई पर लगी टोंटी से आत्महत्या कैसे की गई। इसको लेकर पुलिस पर सीधा -सीधा आरोप लगाया जा रहा है कि अल्ताफ़ ने आत्महत्या नहीं की है उसे मारा गया है। गौरतलब है कि इसी तरह के मामले आए दिन उत्तर प्रदेश से आते रहते हैं। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि उत्तर प्रदेश हिरासत में मौत के मामलों में नंबर वन है।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 27 जुलाई को खुद राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा था कि हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। गौरतलब है कि उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन वर्ष में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍यायिक हिरासत में मौत हो चुकी है।

एनएचआरसी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में वर्ष 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 और न्‍याय‍िक हिरासत में 452 लोगों की जान चली गई। इसी तरह वर्ष 2019-20 में पुलिस हिरासत में 3 और न्‍याय‍िक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुई। वर्ष 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 और न्‍याय‍िक हिरासत में 443 लोगों ने दम तोड़ दिया।

प‍िछले तीन वर्ष में हुई इन मौतों को जोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कुल 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मारे गए हैं। उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% है। देश में प‍िछले तीन वर्ष में पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई है।

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देखा जाए तो 3 वर्षों के दौरान भाजपा शासित राज्य गुजरात में सबसे ज्यादा मौतें हुई है। गुजरात में 13 लोगों की पुलिस कस्टडी में जान चली गई। इसके बाद दूसरे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आते हैं। जहां वर्ष 2018-19 में 12-12 लोगों की मौत हुई। तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु है। यहां 11-11 लोगों की पुलिस कस्टडी में मारे गए । दिल्ली में 8 और बिहार में 5 लोगों की मौत इस वर्ष पुलिस कस्टडी में हुई।

वही मध्य प्रदेश में वर्ष 2019-20 में 14 लोगों की मौतें हुई है। इसी वर्ष गुजरात और तमिलनाडु में 12 -12, दिल्ली में 9, बिहार में 5, और उत्तर प्रदेश में 3 लोगों की मौत हिरासत के दौरान देखने को मिली।

इस वर्ष की दो ख़बरों ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। एक उत्तर प्रदेश के आगरा जिले का है। जहां चोरी के एक मामले में पूछताछ के लिए गिरफ्तार किए गए सफाई कर्मचारी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। दूसरा असम के दरांग जिले में बेदखली अभियान का एक हिंसक वीडियो है। जिसमें पुलिस कर्मियों के सामने 33 वर्षीय मोइनुल हक को पीट-पीटकर मारते दिखाया गया है। मोइनुल की मौत पर असम के मुख्यमंत्री ने पुलिस पर कोई कार्रवाई न कर उसे उचित ठहराया और एक कदम आगे बढ़कर पूरी घटना को सांप्रदायिक रंग देने का काम किया। असम में 10 मई से 27 सितंबर, 2021 के बीच 50 मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं। जिसमें कुल 27 लोग मारे गए हैं और 40 घायल हुए हैं। उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा सत्ता में आई है तब से प्रदेश में 8,742 मुठभेड़ हुई हैं। इन मुठभेड़ों में 146 लोग मारे गए हैं और 3,302 घायल हुए हैं।

 

गौरतलब है कि पूरे देश में इस तरह के मामले पर संवैधानिक अधिकारियों और नौकरशाहों द्वारा मामले को लेकर दिए जा रहे बयान पुलिस की बर्बरता और न्यायेत्तर हत्याओं के सामान्यीकरण की ओर इशारा करते हैं। यह भी देखा जा रहा है कि भाजपा शासित राज्यों की एक अनौपचारिक नीति बन गई है। इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के पीछे राजनीतिक विचार शामिल हैं।

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