लव जिहाद पर उत्तर प्रदेश सरकार ने जल्दबाजी दिखाते हुए नया कानून कल कैबिनेट में पास करा लिया है। गैर कानूनी धर्म परिवर्तन अध्यादेश लागू करके उत्तर प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार से पहले ही लव जिहाद पर नकेल करने का दावा भी कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस पहल को जल्दबाजी कहां जा रहा है। वह इसलिए कि पहले से ही एक ऐसा कानून प्रदेश में बना हुआ है तो दूसरा कानून बनाने की जरूरत क्या थी? सवाल यहीं पर खत्म नहीं होता है बल्कि जिस लव जिहाद को मुद्दा बनाकर योगी सरकार ने यह धर्मांतर कानून बनाया है उस पर पिछले दिनों कानपुर में हुई एसआईटी जांच में जबरन धर्म परिवर्तन के एक भी मामले की पुष्टि नही हुई।
गौरतलब है कि कानपुर जिले में जबरन धर्म परिवर्तन कर शादी की शिकायत पर मामलों की जांच के लिए एक एसआईटी गठित की गई थी। जब उत्तर प्रदेश में कानून बनाने का अध्यादेश लाया जा रहा था तो उससे 1 दिन पहले यानी सोमवार को कानपुर के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल में यह एसआईटी जांच सरकार को सौपी है। ऐसे कुल 14 मामलों की जांच की गई। जिनमें 11 मामलों में अभियुक्त अपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए लेकिन किसी भी मामले में साजिश की बात सामने नहीं आई है । इसका मतलब यह है कि धर्म परिवर्तन करने वाला युवक – युवती अपनी मनमर्जी से यह सब कर रहे है । इसमें जबरन जैसा एसआईटी को कुछ दिखाई नहीं दिया। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार में यह कानून बनाया। फिलहाल इसे राजनीतिक परिदृश्य से देखा जा रहा है।

इस कानून में दूसरे धर्म में शादी करने के लिए संबंधित जिले के जिलाधिकारी से इजाजत लेना अनिवार्य होगा। यही नहीं बल्कि इसके लिए शादी से पहले 2 माह का नोटिस देना होगा। स्वाभाविक है कि इस दौरान सरकार अपना काम कर जाएगी। यानी कि वह धर्म परिवर्तन कर शादी करने के मामले में अपना दखल देकर मामले को उलट सकती है। इस कानून के तहत बिना अनुमति के शादी करने या धर्म परिवर्तन करने पर 6 महीने से लेकर 3 साल तक की सजा के साथ 10000 का जुर्माना भी देना पड़ेगा ।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी प्रदेश में ऐसा कानून अस्तित्व में है। जिसमें तहसील में एक नोटिस चस्पां कर शादी करने वाले युवक और युवतियों की बाबत एक महीने पहले ही सूचित कर दिया जाता है। इस बाबत उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक रह चुके आईपीएस अधिकारी विक्रम सिंह कहतें हैं कि गैर कानूनी तरीके से शादी करने या फिर धर्मांतरण करने के खिलाफ यहा कानून पहले से ही बना हैं। जिसमें कई धाराएं हैं। आईपीएस में यह कानून 1861 में ही अस्तित्व में आ चुका था। वह यह भी कहते हैं कि नया कानून लाकर क्या होगा? पहले से ही मौजूद कानून नही संभाल पा रहे हैं तो नया लाकर क्या कर लेंगे?

वर्ष 1954 में आए स्पेशल मैरिज एक्ट ( कोर्ट मैरिज ) के तहत भी दो भारतीय नागरिक एक-दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंध सकते हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें प्रशासन को नाम, पता, जन्मतिथि का प्रमाण पत्र और अन्य जानकारी देनी होती है। स्पेशल मैरिज एक्ट के सेक्शन 6 (2) के तहत मैरेज ऑफिसर अपने दफ्तर में लड़के-लड़की की ओर से दिया गया आवेदन ऐसी जगह चिपकाता है, जो सबकी नज़रों में आए। अगर इस पर 30 दिनों में कोई आपत्ति नहीं आती तो लड़के-लड़की की शादी करा दी जाती है। हालांकि, इस मैरिज एक्ट 1954 के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है जिसमें शिकायत की गई है कि ये कानून आर्टिकल 21 (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है।
इस कानून को लागू करने से पहले योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा था कि उत्तर प्रदेश कैबिनेट उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 लेकर आई है। जो उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सामान्य रखने के लिए और महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए जरूरी है । साथ ही वह यह भी दलील देते हैं कि बीते दिनों में 100 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थी। जिनमें धर्म परिवर्तन किया जा रहा है । इसके अंदर छल कपट से धर्म परिवर्तन किया जा रहा है । इस पर कानून को लेकर एक आवश्यक नीति जिस पर कोर्ट के आदेश आए और उसके बाद योगी जी की कैबिनेट ने अध्यादेश पास कराने का निर्णय लिया है।