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दिल्ली बॉर्डर पर यूपी के किसानों की हुंकार, मोदी सरकार से लड़ाई आर – पार 

आज से दो माह पूर्व केंद्र सरकार ने जब देश में कृषि से संबंधित तीन बिल विधेयक पास किये थे तो तब किसी को यह आभाष नहीं था कि कोरनकाल में पास हुए यह कानून मोदी सरकार के लिए मुसीबत बनकर सामने आएंगे हालाँकि तब अकाली दाल की केंद्रीय मंत्री हरसिमरतकौर ने किसानो के पक्ष में इस्तीफा देकर इसके संकेत दिए थे। इसके बाद पंजाब के किसान रेलवे ट्रैक पर धरना देकर बैठ गए थे। तेरह दिन पहले जब पंजाब के आंदोलनरत किसान दिल्ली की तरफ कूच करने लगे तो पुरे देश में किसानो के पक्ष में लहर सी चल निकली। यह लहर सिंधु बॉर्डर से दिल्ली यूपी बॉर्डर तक जा पहुंची है।  जहा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भारतीय किसान यूनियन ( भानु ) और टिकैत के नेतृत्व में गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे है।
चिल्ला बॉर्डर पर जब ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम पहुंची तो वहा का दृश्य देखकर लगा की किसान फ़िलहाल पीछे हटने के मुंड में नहीं है। यहा की कमान देहात मोर्चा के जमीनी नेता रहे बेगराज गुर्जर ने संभल राखी है। बेगराज गुर्जर देहात मोर्चा में राजकुमार भाटी की टीम के सक्रीय सदस्य हुआ करते थे जो अब भारतीय किसान यूनियन भानु के सीनियर लीडर है। उनके साथ ही युवा नेता बीसी प्रधान और प्रेमराज भाटी के साथ ही भोला ठाकुर जैसे नेता मोर्चा संभाले हुए है। सभीका कहना है कि केंद्र सरकार ने किसानो के साथ तीन बिल लेकर कोरोना काल में धोखा किया है। इसका जवाब वह आने वाले चुनावो में भाजपा को हराकर देंगे। आज सभी किसानो ने भारत बंद को सफल्बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। जिससे भारत बंद सफल होता प्रतीत हो रहा है। हालाँकि इस दौरान केंद्र सरकार किसानो से लगातार वार्ता कर रही है। अब तक पांच दौर की बार हो चुकी है। कल देश के गृह मंत्री अमित शाह के साथ छठे दौर की वार्ता होगी। जिसका फ़िलहाल तो कोई नतीजा निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार बिल वापस करने के मुंड में नहीं है तो किसान किसी भी सूरत में वापिस नहीं हटेंगे।

गौरतलब है कि तीनों बिल में जिस तरह के प्रावधान किए गए हैं, उसके बाद देश में किसानों का विरोध पंजाब, हरियाणा, राजस्थान , उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों के चुनिंदा किसानों द्वारा किया जा रहा है। दरअसल, इन राज्यों में केंद्र और राज्य सरकारें किसानों से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर पर गेहूं और चावल सबसे ज्यादा खरीदती हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं और चावल की पैदावार बहुत होती है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की रिपोर्ट के के मुताबिक इन राज्यों में 80 फीसदी धान और 70 फीसदी तक गेहूं सरकार ने ही खरीदा है। ऐसे में बिल कि खुले बाजार के प्रावधान के चलते किसानों को आशंका है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म कर देगी। किसानों को सबसे बड़ा यही डर सता रहा है। किसानों को डर है कि निजी कंपनियां न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम पर किसानों से उत्पाद खरीदेगी।

याद रहे कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों को लेकर तीन अहम विधेयक पास कराए, जिन्हें किसान संगठन वापस लेने का दबाव सरकार पर बना रहे हैं। इन तीनों विधेयकों को कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 नाम दिया गया है।विधेयक में यह प्रावधान है कि किसान अपने उत्पाद मंडी से बाहर बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। बिल में दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। मार्केटिंग और यातायात पर खर्च कम करने की बात कही गई है। किसान को देश में कहीं भी अपना उत्पाद बेचने के लिए खुला बाजार मिलेगा। लेकिन किसान इन तीनो ही बिलो को मात्र छलावा करार दे रहे है।

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