प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में मुस्लिम तबके से आने वाले ‘पसमांदा मुसलमान’ से जुड़ने का मंत्र दिया था,जिसके बाद भाजपा ने अपने प्रयोग के तहत 4मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि भाजपा का यह प्रयोग पूरी तरह से फेल रही है। इसके बावजूद भी भाजपा उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव में’पसमांदा मुसलमानों’ पर दांव लगा रही है,जिसमे देखना होगा कि भाजपा कितना सफल हो पाती है।
दरअसल,भाजपा ने पसमांदा प्रयोग के तहत दिल्ली नगर निगम चुनाव में जिन चार पसमांदा मुस्लिमों को टिकट दिए थे, उनमें तीन महिलाएं भी शामिल थीं। चांदनी महल सीट से इरफान मलिक, कुरैश नगर से समीना राजा, चौहान बांगर से सबा गाजी,मुस्तफाबाद से शबनम मलिक को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा के चारों पसमांदा मुस्लिम कैंडिडेट को करारी मात खानी पड़ी है। कुरैश नगर में भाजपा उम्मीदवार को सात हजार वोट मिले हैं जबकि चांदनी महल और मुस्तफाबाद में डेढ़-डेढ़ हजार से संतोष करना पड़ा है तो चौहान बांगर सीट पर महज 600 वोट मिले हैं।हालांकि, नगर निगम की इन चारों सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार को चुनाव जीतने वोट मिले हैं, उतने वोट इससे पहले कभी नहीं मिले है। इन सीटों को धार्मिक समीकरण के लिहाज से देखें तो चौहान बांगर में बेहद कम हिंदू वोटर हैं जबकि चांदनी महल और मुस्तफाबाद सीट पर 30 से 50 वोट के बीच है और कुरैश नगर में 4 हजार हिंदू वोटर हैं। भाजपा पर मुस्लिम विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं और यह भी ओपन सीक्रेट है कि भाजपा को मुस्लिम समाज का वोट कम ही मिल पाता है। ऐसे में भाजपा के उम्मीदवार भले ही न जीत पाए हों, लेकिन उन्हें मुस्लिमों के एक तबके ने ठीक-ठाक वोट दिए हैं।
इसलिए उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में भाजपा पसमांदा कार्ड खेलने की तैयारी में है। भाजपा प्रदेश के सभी 17 नगर निगम सीटों पर पसमांदा सम्मेलन करने जा रही है ताकि मुस्लिमों के ओबीसी तबके को भाजपा से जोड़ा जा सके। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश के शहरी इलाकों में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं और सरकार की योजनाओं का अल्पसंख्यक समुदाय को लाभ मिला है। ऐसे में भाजपा नगर निगम के चुनाव में पूरी तैयारी के साथ मुसलमानों को हिस्सेदारी देने की रणनीति पर भी काम कर रही है। भाजपा नगर पंचायत, वार्डों में बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी उतारने जा रही है, जो पहली बार भाजपा के सिंबल पर लड़ने जा रहे हैं मेरठ, अलीगढ़, लखनऊ, गाजियाबाद, सहारनपुर, फिरोजाबाद, आगरा, प्रयागराज, बरेली, मुरादाबाद और कानपुर जैसे नगर निगम में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। इतना ही नहीं सूबे की तमाम नगर पालिका और नगर पंचायत में भी मुस्लिम वोटर अहम रोल में हैं। गोला गोकर्णनाथ, रामपुर विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव में पसमांदा मुस्लिमों का वोट भाजपा को मिला है, जिससे भाजपा के हौसले बुलंद हैं। ऐसे में दिल्ली नगर निगम की तरह ही भाजपा उत्तर प्रदेश में भी नगर निकाय के चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट को उतार सकती है।
कौन होते है पसमांदा मुसलमान
मुस्लिम समाज के भीतर पसमांदा समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ा माना जाता है। यह मुस्लिम समाज का ओबीसी वर्ग है, जिसमें कुरैशी, मंसूरी, अंसारी, सलमानी, राईन, गाड़ा, दर्जी, तेली, सैफी, अब्बासी, धोबी सहित 41 अलग-अलग जातियां शामिल हैं। पसमांदा यानी मुसलमानों के पिछड़े वर्गों की उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की कुल आबादी में 85 फीसदी हिस्सेदारी मानी जाती है। भाजपा इन्हीं मुस्लिम समाज के इस बड़े वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए तमाम तैयारी कर रही है।