पांच राज्यों के चुनावी समर में कूदने जा रही भारतीय जनता पार्टी चुनावी तैयारी में जुट गई है। कुछ महीने पहले गुजरात और उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री बदलने के बाद अब पार्टी उन राज्यों में अपने विधायकों के टिकट काटने की योजना बना रही है, जहां कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। दरअसल, ऐसा करके पार्टी सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी को कम करना चाहती है। पिछले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने अपने 15 से 20 प्रतिशत विधायकों का टिकट काटा था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है। इसका मुख्य कारण है सरकार के प्रति जनता में आक्रोश।

चुनावी राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा अहम
पांच चुनावी राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा अहम राज्य है। उत्तर प्रदेश को लेकर सभी राजनीतिक पार्टीयां एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं। वहीं भाजपा सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी को कम करने में जुटी है। खबर है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान विवादित बयानबाजी करने वाले विधायकों को इस बार टिकट नहीं देगी। साथ ही उन विधायकों का भी टिकट काटेगी जो संगठन और सरकार की गतिविधियों में पूरी तरह से विफल रहे हैं। भाजपा इसको लेकर एक सर्वे भी करा रही है। सूत्रों की माने तो इनमें मंत्री से लेकर 2017 में हारे और जीते उम्मीदवार भी शामिल हैं ।
सूत्रों के मुताबिक जिन उम्मीदवारों ने 70 साल की उम्र पार कर ली है, उन्हें भी भाजपा चुनावी रण में नहीं उतारेगी।आशंका जताई जा रही है कि इस बार चुनाव में पार्टी करीब 150 विधायकों के टिकट काट सकती है। इनकी जगह भाजपा कई नए उम्मीदवारों को मौका देने की तैयारी में हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार जिन विधायकों से स्थानीय जनता, कार्यकर्ता नाराज हैं उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। साथ ही जिन विधायकों पर समय-समय पर अलग-अलग तरह के आरोप लगते रहें हैं पार्टी उनसे इस बार दूरी बनाएगी।
सूत्रों के अनुसार यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने टिकट को लेकर दावेदारों का नाम भी लगभग तय कर लिया है। बताया जा रहा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही पार्टी टिकट का इस बार वितरण किया जाएगा, इसको लेकर एक फार्मूला तय हुआ है।
दरअसल, भाजपा ने 50 प्रतिशत वोट बैंक के साथ इस बार भी 350 से अधिक सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाजपा उम्मीदवारों के चयन में फूंक-फूंक कर कदम रखेगी। एक-एक सीट पर चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए प्रत्याशी का चयन किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अगले साल 2022 में पंजाब,उत्तर प्रदेश ,उत्तराखण्ड , मणिपुर , गोवा ,गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस दौरान भाजपा ने राज्यों में जमीनी स्तर पर सर्वे कराए हैं ताकि जनता का मूड भांप सके। विधायकों से भी कहा गया है कि वे बीते पांच सालों में किए अपने कामों का रिपोर्ट कार्ड सौंपे।
यह भी पढ़ें : भाजपा राष्ट्रवाद तो सपा विकास सहारे
विधायकों का मूल्यांकन कुछ तय मानकों पर किया जाएगा, जैसें उन्होंने लोकल डेवलेपमेंट फंड का कितना इस्तेमाल किया, गरीबों के उत्थान के लिए कितनी परियोजनाएं चलाईं और महामारी के दौरान पार्टी की ओर से शरू की गई योजना ‘सेवा ही संगठन’ में कितना सहयोग किया। पार्टी ने सभी चुनावी क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराए हैं, जहां लोगों से सरकार की परफॉर्मेंस को लेकर फीडबैक लिया गया है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान विधायकों द्वारा सेवा ही संगठन कैंपेन के तहत किए कामों की भी गिनती होगी। फिलहाल बीजेपी के लिए सत्ता विरोधी लहर को काटना ही सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। पार्टी ने इसी वजह से गुजरात में विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाया। इसके अलावा पूरे नए मंत्रिमंडल ने भी शपथ ली ताकि 2022 के अंत में होने वाले चुनावों से पहले पार्टी कैडर को पुनर्जीवित किया जा सके।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग कारणों से मौजूदा विधायकों की टिकट काटना पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। इससे पहले पार्टी राजस्थान में ऐसा कर चुकी है। दरअसल , वर्ष 2018 में पार्टी ने राजस्थान में 43 विधायकों के टिकट काटे थे, जिनमें 4 मंत्री थे। झारखंड में भी पार्टी ने दर्जनभर से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे ताकि युवाओं के साथ ही महिलाओं और एससी/एसटी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरों को शामिल किया जा सके। यही नहीं टिकट बंटवारे के लिए परफॉर्मेंस ही एकमात्र फैक्टर नहीं है। पार्टी को ऐसे चेहरे भी ढूंढने होंगे जो स्थानीय जाति-समुदाय में पकड़ रखते हों और चुनाव में अच्छे परिणाम लाने में सक्षम हों।