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अविश्वास प्रस्ताव या शह-मात का खेल

संसद का मानसून सत्र हंगामे के साथ बुधवार (18जुलाई) को शुरू हुआ। सत्र के पहले दिन ही मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव भी पटल पर रखा गया, जिसे स्पीकर सुमित्रा महाजन ने स्वीकार कर लिया। विपक्ष के पास नंबर नहीं है। फिर भी वे मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए हैं। आखिर क्यों। सरकार द्वारा इस बार इतनी आसानी से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना भी बहुतों को पच नहीं रहा।
सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव उनके पूर्व सहयोगी रहे टीडीपी की ओर से आया है। जिन्हें मुख्य विपक्षी कांग्रेस, आएजेडी और वामपंथी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। इससे पूर्व बजट सत्र में भी टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी पर तब इसे स्वीकार नहीं किया गया था।
विपक्षी पार्टियों के पास नम्बर नहीं होने के बावजूद प्रस्ताव लाना आम लोगों के समझ में नहीं आ रहा। पर इसके पीछे यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की रणनीति बताई जा रही है। बुधवार को संसद से निकलते समय सोनिया गांधी का मीडिया को यह कहना कि किसने कहा यूपीए के पास नंबर नहीं है, इसकी पुष्टि करता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नंबर न होने के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाना और पहले ही दिन स्पीकर द्वारा स्वीकार कर लेना, सरकार और विपक्ष दोनों की एक सोची समझी रणनीति है।
राजनीति के जानकार कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव में अब एक साल का भी समय नहीं है। इसलिए कांग्रेस इस प्रस्ताव के जरिए विपक्षी एकता का प्रदर्शन करना चाहती है। सोनिया की रणनीति है कि सदन में विपक्षी एकता का प्रदर्शन कर कुछ माह बाद एमपी, राजस्थान और छतीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों से पूर्व भाजपा पर रणनीतिक बढ़त बनाया जाए। ताकि उसका लाभ चुनावों में उठाया जा सके।
टीडीपी इस प्रस्ताव के जरिए लोकसभा चुनाव के साथ आंध्रप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को पटखनी देना चाहता है।
वहीं सरकार ने भी एक रणनीति के तहत ही इस अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार किया है। सरकार एनडीए की एकजुटता दिखाने की कोशिश करेगी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक नाराज चल रहे सहयोगी दलों से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बातचीत शुरू भी कर दी है।
बजट सत्र में आखिरी दो सप्ताह सदन एक भी काम नहीं हुआ था। इससे सरकार की किरकिरी भी हुई थी। इसलिए सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार कर संदेश देना चाहती है कि वह सदन चलाने के लिए विपक्ष की हर बात मान रही है।
सरकार की मंशा यह भी है कि अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते समय सदन में अपनी बात मजबूती से रखे, ताकि विपक्ष को बैकफुट पर लाया जा सके।

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