कोरोना महामारी से पिछले एक साल से भारत सहित पूरी दुनिया में तबाही मची हुई है है। देश में पिछले एक हफ्ते से साढ़े तीन लाख से ज्यादा नए कोरोना मरीज मिल रहे हैं। महामारी के तांडव के चलते स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गई है। हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि अस्पताल ऑक्सीजन, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की कमी का सामना कर रहे हैं देश की सरकार को विदेशी सहायता प्राप्त करने की अपनी नीति में है । इस बदलाव के बाद उसने विदेश से मिलने वाले उपहार, दान एवं सहायता को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। साथ ही चीन से भी चिकित्सा उपकरण खरीदने का फैसला किया है।
सूत्रों केमुताबिक कोरोना महामारी की मार के चलते विदेशी सहायता प्राप्त करने के संबंध में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। भारत को अब चीन से ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण एवं जीवन रक्षक दवाएं खरीदने में कोई ‘समस्या’ नहीं है। वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी भारत को मदद की पेशकश की है। जहां तक पाकिस्तान से सहायता हासिल करने का सवाल है, तो भारत ने इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है। जबकि राज्य सरकारें विदेशी एजेंसियों से जीवन रक्षक दवाएं खरीद सकती हैं, केंद्र सरकार उनके रास्ते में नहीं आएगी।
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भारत अपनी उभरते ताकतवर देश और अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देता आया है। 16 साल पहले मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने विदेशी स्रोतों से अनुदान एवं सहायता न लेने का फैसला किया था। इससे पहले, भारत ने उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के समय विदेशी सरकारों से सहायता स्वीकार की थी। 16 साल बाद विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय वर्तमान सरकार की रणनीति में बदलाव है।
दिसंबर, 2004 में आई सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा करते हुए कहा था कि हमारा मानना है कि हम खुद से इस स्थिति का सामना कर सकते हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम उनकी मदद लेंगे।” मनमोहन सिंह के इस बयान को भारत की आपदा सहायता नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया। इसके बाद आपदाओं के समय भारत ने इसी नीति का पालन किया। वर्ष 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी और 2005 के कश्मीर भूकंप और 2014 की कश्मीर बाढ़ के समय भारत ने विदेशी सहायता लेने से साफ इनकार कर दिया।
वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के समय भी भारत ने विदेशों से कोई सहायता स्वीकार नहीं की थी। केरल सरकार ने केंद्र को बताया कि यूएई ने 700 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की पेशकश की है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसी भी तरह की विदेशी सहायता लेने से इनकार कर दिया। केंद्र ने कहा कि राहत एवं पुनर्वास की जरूरतों को वह अपने तरीकों से पूरा करेगा।
वर्तमान समय में कोरोना महामारी की मार झेल रहे भारत की मदद के लिए करीब 20 देश आगे आए हैं। भूटान ने ऑक्सीजन की आपूर्ति करने की पेशकश की है। अमेरिका अगले महीने एस्ट्राजेनेका के टीका भेज सकता है। इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, सिंगापुर, सऊदी अरब, हांगकांग, थाइलैंड, फिनलैंड, स्विटजरलैंड, नार्वे, इटली और यूएई मेडिकल सहायता भारत भेज रहे हैं।