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उद्धव – अंबेडकर का साथ आना मजबूरी या मौका

एकनाथ शिंदे गुट के विद्रोह से शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी के पुनर्निर्माण की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं। ठाकरे जितना संभव हो, उतने सहयोगियों को अपने साथ लाने के लिए तैयार हैं। एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद उद्धव ठाकरे ने न केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी खो दी, बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी खो दिए है,क्योंकि अधिकांश विधायकों और सांसदों ने उनका साथ बीच मंझधार छोड़ दिया है।

 

इसी साल अगस्त में शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे ने संभाजी ब्रिगेड के साथ हाथ मिलाया है।उस समय इस पर किसी का ध्यान नहीं गया था,क्योंकि संभाजी ब्रिगेड अपनी सांस्कृतिक राजनीति के लिए जानी जाती है और चुनावी राजनीति में इसका कोई प्रभाव नहीं है,हालांकि अब प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाले वंचित बहुजन अगाड़ी के साथ गठबंधन की चर्चा ने महाराष्ट्र की राजनीतिक में चर्चा का केंद्र बना दिया है।

इससे पहले 29 नवंबर को वंचित बहुजन अगाड़ी की प्रदेश अध्यक्ष रेखा ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा कर के कहा है कि दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच बातचीत हुई है और अब तक की चर्चा सकारात्मक रही है। यह शिवसेना को तय करना है कि वह वंचित बहुजन अगाड़ी के साथ अलग से गठबंधन करेगी या ‘महा विकास अघाड़ी गठबंधन’ के हिस्से के रूप में, जिसमें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी शामिल हैं। गौरतलब है कि शिवसेना उद्धव ठाकरे और वंचित बहुजन अगाड़ी को स्वाभाविक सहयोगी नहीं कहा जा सकता है। शिवसेना खुद को एक कट्टर हिंदुत्व पार्टी के रूप में पेश करती है, जिसे उसके नेताओं ने पहले दशहरा रैली के मंच पर दोहराया था,जबकि दूसरी तरफ राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में दलित राजनीति का केंद्र हमेशा से हिंदुत्व विरोधी रहा है।

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