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विपक्ष के झंडे को लेकर खींचतान

पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की कोशिशों में बीते कुछ महीनों से काफी तेजी देखने को मिली है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष बनाने की अपील सबसे पहले ममता बनर्जी ने की थी। लेकिन एक ओर जहां अब बिहार में सियासी उठा-पटक के बाद कुछ राजनीतिक दल 2024 लोकसभा चुनाव में मोदी और भाजपा से मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व में करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच छिड़ी जंग से आम आदमी पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल का नारा बुलंद किए हुए है। ऐसे में कहा जा रहा है कि विपक्ष के झंडे को लेकर एक बार फिर छीना-झपटी शुरू हो गई है

 

मिशन 2024 के आम चुनाव को लेकर देश के राजनीतिक दलों में अभी से हलचल महसूस की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की कोशिशों में बीते कुछ महीनों से काफी तेजी देखने को मिली है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष बनाने की अपील सबसे पहले ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव के दौरान की थी। बंगाल में अपना परचम लहराने के बाद तृणमूल कांग्रेस पूरे देश में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। लेकिन अब बिहार में सियासी उठापटक के बाद कुछ राजनीतिक दल 2024 लोकसभा चुनाव में मोदी और भाजपा से मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व में करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच छिड़ी जंग के बीच आम आदमी पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम केजरीवाल का मुकाबला बनाने की कोशिश में जुट गई है। ऐसे कहा जा रहा है कि विपक्ष के झंडे को लेकर छीना- झपटी यहीं खत्म नहीं होगी।

बीते दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभरने की चर्चा को लेकर राजद नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि यदि विपक्ष द्वारा विचार किया जाता है तो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के मजबूत उम्मीदवार हो सकते हैं। उनकी छवि बहुत अच्छी है इसलिए उनके प्रबल दावेदार होने की पूर्ण संभावना है। वहीं नीतीश भी लोकसभा चुनाव 2024 में पीएम उम्मीदवार के संकेत दे चुके हैं। इसके लिए नीतीश अगले महीने राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं।

इससे पहले ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अपना परचम लहराने के बाद पूरे देश में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए वह तेजी से दूसरे दलों के बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही हैं। पहले यह सिलसिला बंगाल तक सीमित था, लेकिन अब देश के दूसरे राज्यों में भी यह सिलसिला तेजी से शुरू किया गया था। तब ममता बनर्जी ने कांग्रेस को छोड़ अन्य विपक्षी दलों के साथ 2024 आम चुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए लगातार बैठकें की थीं।

इस बीच अब दिल्ली में शराब घोटाला मामले ने आम आदमी पार्टी सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिसके चलते उन पर सीबीआई का शिकंजा कस गया है। विपक्ष में बैठी बीजेपी इसे लेकर हमलावर है तो आम आदमी पार्टी इस पूरी कार्रवाई को बदले की भावना बताते हुए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए नरेंद्र मोदी बनाम केजरीवाल का मुकाबला बनाने की कोशिश कर रही है। हालांकि केजरीवाल का यह सपना तभी संभव हो पाएगा जब आम आदमी पार्टी भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांटे की चुनौती दे पाएगी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो मोदी बनाम केजरीवाल आम आदमी पार्टी पहले से ही सेट कर रही थी, लेकिन जब शराब घोटाले में सीबीआई ने सिसोदिया के घर रेड डाली तो ‘आप’ नेताओं ने इसे भुनाने में देरी नहीं लगाई।

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि जब से पंजाब में ‘आप’ ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, लोग कहने लगे हैं कि उन्हें एक विकल्प मिल गया है। देश की राजनीति मोदी बनाम केजरीवाल बन गई है। भाजपा केजरीवाल से डर गई है, इसलिए उनके मॉडल को खत्म करना चाहती है। खुद मनीष सिसोदिया ने भी इसे आगे बढ़ाते हुए सीबीआई जांच को लोकसभा 2024 के चुनाव से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि 2024 का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल ही होने वाला है। केजरीवाल को रोकने, उन्हें डराने के लिए केंद्र ऐसे हथकंडे आजमा रहा है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प के रूप में उभरे हैं।

आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं के ऐसे बयानों के बाद रानजीतिक विश्लेषक सवाल उठा रहे हैं कि क्या 2024 लोकसभा के चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल बनाना आम आदमी पार्टी के लिए इतना आसान है? क्या विपक्ष मोदी के खिलाफ केजरीवाल को अपना पीएम उम्मीदवार मानेगा? मोदी से महामुकाबला करने लायक कद केजरीवाल कैसे हासिल करेंगे? इन सवालों के जवाब साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही मिल पाएंगे।

गौरतलब है कि गुजरात की सत्ता पर बीजेपी ढाई दशक से ज्यादा समय से काबिज है। अभी तक गुजरात में बीजेपी बनाम कांग्रेस का मुकाबला ही होता रहा है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में उतरकर इसे त्रिकोणीय लड़ाई बनाने में जुटी है। ‘आप’ संयोजक केजरीवाल काफी समय से हिमाचल प्रदेश से ज्यादा गुजरात के चुनाव पर फोकस किए हुए हैं। कुछ दिन पहले वह दो दिवसीय गुजरात दौरे पर गए थे। उनके साथ डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी गए थे। अगस्त के महीने में यह उनका चौथा गुजरात दौरा है। जबकि पिछले चार महीनों में आधा दर्जन से ज्यादा बार पार्टी के लिए प्रचार कर चुके हैं।

गुजरात में क्या है आप की रणनीति
आम आदमी पार्टी इस समय गुजरात चुनाव में उसी रणनीति पर काम कर रही है, जिसके दम पर पहले दिल्ली और फिर पंजाब में उसने सरकार बनाई। ‘आप’ के चार बड़े स्तंभ हैं अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और युवाओं को रोजगार। गुजरात चुनाव में इन्हीं पहलुओं को अपनी ‘गारंटी’ बताया है जो सरकार बनते ही देने की बात कर रही है, यहां सबसे बड़ी घोषणा बिजली वाली है क्योंकि इसी के दम पर पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को प्रचंड जनादेश दिया था। वहीं गुजरात में युवाओं को साधने के लिए केजरीवाल ने रोजगार को लेकर बड़ा वायदा किया है। उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है कि सरकार बनते ही वे 10 लाख सरकारी नौकरी देंगे, ऐसी योजना तैयार करेंगे जिससे सभी बेरोजगारों को रोजगार मिल सके। जब तक रोजगार नहीं मिल जाता, बेरोजगारों को 3 हजार रुपए का मासिक भत्ता मिलेगा। आम आदमी पार्टी के ये वे वायदे हैं, जो जाति-धर्म से ऊपर उठकर सीधे-सीधे गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को साधने का काम करते हैं।

भगवान का प्रसाद बनाम रेवड़ी कल्चर
आम आदमी पार्टी जिसे अपनी गारंटी बता रही है, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे ‘रेवड़ी संस्कृति’ का नाम दे दिया है। वहीं ‘आप’ ने गुजरात चुनाव में इस बार रेवड़ी कल्चर को बड़ा मुद्दा बनाने में जुट गई है। यहां तक कि ‘आप’ ने अपनी मुफ्त स्कीमों को भगवान का प्रसाद बता कहा कि यह पाप नहीं पुण्य है।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आमने-सामने
गुजरात में आम आदमी पार्टी अपनी सरकार की स्वच्छ छवि का मॉडल पेश कर पाती उससे पहले ही दिल्ली में शराब घोटाले पर पड़े सीबीआई के छापों ने उसे बैकफुट पर धकेल दिया है। पीएम मोदी लाल किले की प्राचीर से पहले ही संदेश दे चुके हैं कि वे भ्रष्टाचार पर और ज्यादा कठोर कार्रवाई करने वाले हैं। ऐसे में मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले पर कसता शिकंजा बीजेपी के हाथ लगा वह मुद्दा है, जिसे लेकर वह ‘आप’ को घेरने में जुट गई है।

आम आदमी पार्टी भी बखूबी समझती है कि ताजा छापे उसकी छवि को गुजरात में खराब कर सकते हैं, इसलिए वो सीबीआई को केंद्र सरकार की कठपुतली बताते हुए ताजा कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित और केंद्र की ‘आप’ को कमजोर करने की साजिश बता रही है। यह कुछ-कुछ वैसा ही है जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सरकार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के एक्शन को राजनीति से प्रेरित बताया था और जनता ने इस पर भरोसा भी किया था। यह इत्तेफाक नहीं है कि मनीष सिसोदिया ने अपने यहां छापे पड़ने के बाद मोदी का ही वह पुराना वीडियो ट्वीट किया जिसमें वह सीबीआई को केंद्र की कठपुतली बता रहे थे।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि केजरीवाल की असल परीक्षा गुजरात विधानसभा चुनाव में होगी। आम आदमी पार्टी ने अभी तक जिन दो राज्यों में सत्ता हासिल की है, वह दोनों ही राज्य कांग्रेस से छीने हुए हैं। गुजरात के सियासी हालात दिल्ली और पंजाब से काफी अलग हैं। नरेंद्र मोदी के करिश्मे और बीजेपी के कुशल नेतृत्व की वजह से कांग्रेस की दाल 27 सालों से यहां नहीं गल पा रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव में किस्मत आजमाने उतरी है और केजरीवाल ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी की गुजरात इकाई का गठन हुआ और उसने 2017 विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमाई, लेकिन उसका एक भी उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा सका था। हालांकि 2020 में पार्टी के प्रदेश संगठन का पुनर्गठन हुआ। 2021 में ‘आप’ को पहली बार सफलता सूरत नगर निगम चुनाव में हासिल हुई। गुजरात नगर निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती था और कांग्रेस को पछाड़कर वह मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। इसके अलावा गांधीनगर निगम में भी ‘आप’ के पास एक पार्षद है। इस तरह नगर निकाय चुनाव के परिणाम से गुजरात में आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वास जरूर बढ़ गया है।

मिशन 2024 की तैयारी में केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में ‘मेक इंडिया नंबर वन’ कैंपेन की शुरुआत की है। उन्होंने इसका ऐलान करते हुए कहा कि वह देशभर में जाएंगे और 130 करोड़ लोगों का गठबंधन तैयार करेंगे। पार्टी ने राष्ट्रवाद, सॉफ्ट हिंदुत्व और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर बनाने जैसे वायदों के साथ अपना वोट बेस बढ़ाने की कोशिश की है।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केजरीवाल अपनी पार्टी को बीजेपी का विकल्प बनाना चाहते हैं और इसके लिए वह बीजेपी के मुद्दों को भी हथियाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगले दो साल में वह इस तरह के कई नए प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा पार्टी अगले दो वर्षों के भीतर कम से कम 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और इसके लिए संगठन को मजबूत किया जा रहा है।

 

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