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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संबंध भाजपा संग लगातार गिरावट दर्ज कर रहे हैं। प्रदेश भाजपा नेताओं का एक बड़ा खेमा अब प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री चाह रहा है। ऐसे नेताओं का मानना है कि प्रदेश विधानसभा में सबसे बड़ा दल होने के नाते सीएम पद पर उनकी दावेदारी तर्कपूर्ण हैं। पिछले कुछ अर्से के दौरान नीतीश कुमार की कार्यशैली को लेकर बिहार भाजपा के कई नेताओं ने मुखर होना शुरू भी कर डाला है। पटना के सत्ता गलियारों से निकल ऐसी अफवाहें भी तेजी से फैल रही हैं या फैलाई जा रही हैं कि नीतीश बाबू को उपराष्ट्रपति अथवा केंद्र सरकार में मंत्री बनाकर दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा ताकि पटना की सत्ता के शीर्ष पर भाजपा का कब्जा हो सके। जद(यू) ने लेकिन ऐसी किसी भी संभावना को सिरे से खारिज करने में देर नहीं लगाई है। भाजपा के दबाव में लेने की रणनीति भी जद(यू) बनाने लगी है।

बीते दिनों नीतीश कुमार का राजद द्वारा आयोजित रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल होना और एक पखवाड़े के भीतर कई बार नेता विपक्ष तेजस्वी यादव संग मुलाकात करना इसी रणनीति का नतीजा है। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने तो खुलकर कुछ बड़ा ‘खेला’ होने की बात तक कह डाली है। ऐसे में भाजपा हाईकमान ने सतर्क होकर नीतीश को एनडीए में बनाए रखने की कवायद शुरू कर दी है। गत् बृहस्पतिवार को केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान यकायक ही पटना पहुंचे। बगैर प्रदेश भाजपा नेताओं को साथ लिए उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संग मुलाकात की। यह मुलाकात इतनी गोपनीय थी कि प्रदेश भाजपा नेताओं तक को इसकी जानकारी मीटिंग बाद पता चली। दो घंटे की इस मुलाकात को लेकर अब नाना प्रकार की कयासबाजियों का दौर शुरू हो चला है। कहा-सुना जा रहा है कि धर्मेंद्र प्रधान ने नीतीश कुमार संग अपनी मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों को लेकर चर्चा की और उनसे जद(यू) का समर्थना मांगा। यहां यह गौरतलब है कि नीतीश कुमार पूर्व में दो बार विपक्षी दलों के प्रत्याशियों का समर्थन कर चुके हैं। 2012 में एनडीए गठबंधन का हिस्सा रहते हुए भी उन्होंने यूपीए गठबंधन के राष्ट्रपति प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। ठीक इसी प्रकार 2017 में यूपीए का हिस्सा होते हुए भी उन्होंने एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन दिया था। नीतीश कुमार की इसी कार्यशैली से चिंतित प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने धर्मेंद्र प्रधान को अपना दूत बना बिहारी बाबू का मन-मिजाज परखने पटना भेजा।

जानकारों की मानें तो भाजपा नेतृत्व कुछ अन्य गैर एनडीए दलों को भी साधने में जुट गया है। कहा जा रहा है कि ओडिसा के सीएम नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी संग भी संपर्क करने की कवायद शुरू हो चुकी है। हालांकि उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा को खास दिक्कत आने की संभावना लगभग शून्य है क्योंकि इस पद के लिए मतदाता लोकसभा और राज्यसभा के सांसद होते हैं। इन दोनों ही सदनों में एनडीए को बहुमत है। राष्ट्रपति के चुनाव में राज्य विधानसभाओं के सदस्य भी मतदाता होते हैं। भाजपा आलाकमान इसके चलते कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता है। विपक्षी दलों ने संकेत दे दिया है कि वे एकजुट होकर राष्ट्रपति पद के लिए साझा उम्मीदवार खड़ा करने की रणनीति बना रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार को साधे रखना भाजपा की मजबूरी है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रदेश भाजपा के नेता केंद्रीय गृहराज्य नित्यानंद राय को नीतीश कुमार के स्थान पर सीएम बनाना चाह रहे हैं। खासकर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव इस दिशा में खासे सक्रिय हैं। नित्यानंद राय का मन भी दिल्ली के बजाय पटना में ज्यादा रमता है। इन दिनों खासकर वह पटना में ही ज्यादा समय बिता रहे हैं। गत् पखवाड़े उन्होंने एक के बाद एक रात्रि भोजों का आयोजन कर राजनीतिक तापमान बढ़ाने का काम किया है। प्रदेश भाजपा नेताओं, राज्य सरकार के मंत्रियों और पत्रकारों को नित्यानंद राय ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के जरिए साधने का काम करते बताए जा रहे हैं। ऐसे गर्म राजनीतिक माहौल में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की नीतीश कुमार संग गोपनीय मुलाकात के जरिए भाजपा आलाकमान यही संदेश देने का प्रयास करता नजर आ रहा है कि ‘ऑल इज वेल’।

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