भारत में भले ही मीडिया और पत्रकारिता की आलोचना होती रहती हो, आए-दिन पत्रकारों पर भी खेमेबाजी के आरोप लगाए जाते हैं। लेकिन इस संबंध में सामने आई रॉयटर्स की सर्वे रिपोर्ट का खुलासा चौंकाने वाला है। सर्वे के अनुसार भारत उन चंद देशों में शामिल है जहां न्यूज़ को लेकर लोगों में विश्वास और अधिक बढ़ गया है।
पिछले हफ्ते रॉयटर्स इंस्टीट्यूट ने एक सर्वे किया जिसमें भारत को लेकर बेहद आश्चर्यजनक खुलासे हुए हैं। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट का ग्यारहवां संस्करण जारी किया है। जिसके मुताबिक, एक तरफ पूरी दुनिया में न्यूज़ के ऊपर से लोगों का भरोसा उठ चुका है तो वहीं दूसरी तरफ भारत में लोग न्यूज़ के ऊपर और भरोसा करने लगे हैं। दुनिया की महाशक्ति अमेरिका में भी न्यूज़ पर से लोगों का भरोसा घटा है। लेकिन भारत में लोगों ने न्यूज़ को अपनी जीवनशैली में विशेष स्थान दे रखा है।
पूरी दुनिया में समाचार खपत में वृद्धि बताई गई है और सोशल मीडिया रिपोर्ट्स पर लोगों ने विश्वास करना बंद कर दिया है। जिसके चलते मंद गति से समाचारों से लोगों का भरोसा उठ जाना एक आम प्रवृत्ति बनती जा रही है। लेकिन, भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जहां हजारों न्यूज वेबसाइट और खबरों के स्रोत हैं, वहां समाचार के प्रति लोगों का भरोसा और मजबूत हो गया है।
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रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन सात देशों में से एक है, जहां समाचार के प्रति लोगों में विश्वास बढ़ा है। भारत में ये बढ़ोतरी 3 प्रतिशत की हुई है और अब 41 प्रतिशत लोगों को समाचार में ज्यादा भरोसा है। वहीं, पूरी दुनिया में फ़िनलैंड में समाचार के प्रति लोगों का विश्वास सबसे ज्यादा 69 प्रतिशत है, जबकि सर्वेक्षण में सबसे कम प्रतिशत अमेरिका को ही मिले हैं, अमेरिका में समाचार के प्रति विश्वास में तीन प्रतिशत की गिरावट आई है। सिर्फ 26 प्रतिशत लोगों को ही समाचार पर भरोसा रह गया है।
सर्वेक्षण में भारत की चौंकाने वाली बातें
दुनिया भर के 46 देशों में किए गए इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में समाचार तक पहुंचने के लिए 53 फीसदी लोग यूट्यूब का उपयोग करते हैं और 51 फीसदी लोग व्हाट्सएप के जरिए समाचार तक पहुंचते हैं। प्रमुख 12 देशों के डाटा के आधार पर सोशल मीडिया के जरिए न्यूज़ सबसे अधिक फेसबुक (30 प्रतिशत) इसके बाद यूट्यूब (19 प्रतिशत) और फिर व्हाट्सएप (15 प्रतिशत) पर देखी जाती है। हालांकि फेसबुक की लोकप्रियता में 2016 में 12 प्रतिशत कमी जरूर आई है लेकिन अभी भी सोशल मीडिया में फेसबुक पहले स्थान पर बना हुआ है।
भारत को अपेक्षाकृत ज्यादा युवा आबादी वाला देश माना जाता है और युवा वर्ग सबसे अधिक ऑनलाइन सिस्टम पर निर्भर है। इस समय भारत एक मजबूत मोबाइल-केंद्रित बाजार बन गया है। जिसके चलते 72 प्रतिशत लोग स्मार्टफोन से न्यूज़ तक पहुंचते हैं। वहीं कंप्यूटर के जरिए जहां केवल 35 प्रतिशत लोग। वहीं, न्यूज एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म और ऐप जैसे गूगल न्यूज (53 फीसदी), डेली हंट (25 फीसदी), इनशॉर्ट्स (19 फीसदी), और न्यूज़पॉइंट (17 फीसदी) समाचारों तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं।
भारत में किस माध्यम से न्यूज देखते लोग?
भारत में किए गये सर्वे में पता चला है कि, जिन लोगों ने सर्वे में भाग लिया था, उनमें से 84 प्रतिशत लोग न्यूज को ऑनलाइन ही देखते हैं। वहीं, सर्वे स्टडी में पता चला है कि, अब भारत में 63 प्रतिशत लोग समाचार सोशल मीडिया नेटवर्क के जरिए देखते हैं, लेकिन अभी भी 59 प्रतिशत लोग समाचार के लिए टेलीविजन का ही उपयोग करते हैं, जबकि 49 प्रतिशत लोग समाचार के लिए प्रिंट मीडियम का इस्तेमाल करते हैं।
सबसे भरोसेमंद ब्रांड
डीडी न्यूज और ऑल इंडिया सार्वजनिक प्रसारकों में सबसे भरोसेमंद ब्रांड हैं। तो निजी क्षेत्र में टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स और हिंदुस्तान टाइम्स की विरासत अभी भी कायम है और इन सभी ब्रांडों को मिला दिया जाए, तो न्यूज में विश्वास बढ़कर 41 प्रतिशत हो जाता है। सर्वे तैयार करने और उसका विश्लेषण करने वाले विश्लेषकों के मुताबिक, ‘व्यापक डेटा इस बात की पुष्टि करते हैं, कि पिछले कुछ सालों में मीडिया की संरचना में भी बदलाव आया है और पत्रकारिता काफी तेज हो गई है। वहीं, इसके व्यापार मॉडल और पत्रकारिता के स्वरूप ने भी काफी प्रभाव डाला है।’
किस तरह से किया गया है सर्वेक्षण?
समाचारों में लोगों के भरोसे पर इन निष्कर्षों को रॉयटर्स इंस्टीट्यूट डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2022 में शामिल किया गया है, जिसे रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म द्वारा बनाया गया है, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग का हिस्सा है। यह रिपोर्ट यह समझने में मदद करने के लिए है कि विभिन्न देशों में समाचारों का उपभोग कैसे किया जा रहा है। YouGov द्वारा जनवरी के अंत और फरवरी 2022 की शुरुआत में एक ऑनलाइन प्रश्नावली का उपयोग करके इस पर शोध किया गया और फिर रिपोर्ट प्रकाशित की गई। सर्वेक्षण में कुल 46 देशों का सर्वेक्षण किया गया, जिनमें एशिया के 11, दक्षिण अमेरिका के पांच, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका के तीन और यूरोप के 24 शामिल हैं, जो दुनिया की आधी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक देश में 2,000 से अधिक लोगों से पूछताछ की गई और उत्तर दिए गए।