नेपाल सरकार पैसा कमाने के चक्कर में सीमा से अधिक पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर भेज देती है। ऐसे में पर्वतारोहियों को ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। इस बीच ऑक्सीजन खत्म हुई तो जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। इस साल 11 पर्वतारोहियों की मौत की वजह यही है
मानसून शुरू होते ही एवरेस्ट आरोहण का मुख्य सीजन समाप्त होता है। मानसून खत्म होने के बाद दुनिया के पर्वतारोही संसार की इस सबसे ऊंची चोटी पर विजय की कोशिशों में फिर से जुट जाएंगे। लेकिन तब एवरेस्ट का दृश्य शायद ऐसा नहीं होगा, जैसा पिछले दिनों पूरी दुनिया ने देखा। महानगर में गाड़ियों का ट्रैफिक जाम आम है। मगर एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों का ‘ट्रैफिक जाम’ पहली बार दुनिया ने देखा। जिसके बाद कई पर्यावरणविद एवं पर्वतारोही चिंतित हैं।
पिछले महीने 19 से 29 मई के बीच एवरेस्ट पर जो हुआ वह दुनियाभर के पर्वत प्रेमियों को बहुत बेचैन कर गया। 8000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर भीड़ के कारण पर्वतारोहियों को अपनी जगह से ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने के लिए अपनी बारी का कई -कई घंटे इंतजार करना पड़ा। नतीजा कुछ ही दिनों के अंतराल में 11 पर्वतारोहियों की मौत के रूप में सामने आया। एक दर्जन से ज्यादा लोग किसी तरह बचाए गए। इस घटना के बाद नेपाल सरकार की खूब आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि पैसा कमाने के चक्कर में वह एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए आने वाले लोगों की संख्या नियंत्रित करने की कोई ठोस नीति नहीं बना रही। लेकिन गौर से देखें तो एवरेस्ट पर हो रही इन मौतों की जिम्मेदार सिर्फ नेपाल सरकार नहीं है। एवरेस्ट या आठ हजार मीटर से ऊंची तमाम चोटियों पर चढ़ाई या उनका आरोहण कभी भी आसान नहीं रहा। इन चोटियों पर चढ़ाई के प्रयासों में सैकड़ों पर्वतारोहियों की जानें गई हैं। कश्मीर हिमालय का नंगा पर्वत (8126 मीटर) तो इसी कारण किलर माउंटेन या खूनी पर्वत के नाम से जाना जाता है। एवरेस्ट पर भी अब तक 315 से ज्यादा पर्वतारोही अपनी जान गंवा चुके हैं।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के पूर्व प्रिंसपल कर्नल अजय कोठियाल बताते हैं, ’एवरेस्ट पर अब तक हुई दुर्घटनाओं में ज्यादातर एवरेस्ट की प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों, हिमस्खलनों और क्रेवासों (दरार) में फंस जाने जैसी वजहों से हुई थीं, जबकि इस वर्ष ज्यादातर दुर्घटनाएं पर्वतारोहियों की अनुभवहीनता, नेपाल के खराब प्रबंधन, भीड़ और आरोहियों के अति उत्साह के कारण हुई हैं।’ यही वजह है कि दुनिया भर से इस मामले में चिंतित होने की खबरें आ रही हैं। नेपाल सरकार को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ गया है कि एवरेस्ट आरोहण को किस तरह अधिक सुरक्षित बनाया जाए और मानवजनित हादसों पर किस तरह रोकथाम लगाई जाए।
वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत राजू लिखते हैं कि एवरेस्ट आरोहण के लिए दो मार्ग हैं। एक तिब्बत की ओर से अपेक्षाकøत ज्यादा आसान और सुगम उत्तरी मार्ग। दूसरा नेपाल के सोलखुम्भू इलाके से होकर जाने वाला परंपरागत दक्षिणी मार्ग है। अधिक दुर्गम होने के बावजूद यूरोपीय और भारतीय आरोहियों की पसंद यही मार्ग है। ऐसा शायद इसलिए भी है कि इसी मार्ग से 24 मई 1953 को तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी ने पहली बार एवरेस्ट पर मनुष्य की उपस्थिति दर्ज की थी। इस रास्ते की लोकप्रियता की एक वजह यह भी है कि तिब्बत वाले मार्ग की तुलना में यह मार्ग सस्ता है, यहां शेरपाओं और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता आसान है और नेपाल सरकार से एवरेस्ट आरोहण की अनुमति अधिक आसानी से मिल जाती है। लेकिन अब यही वजहें एवरेस्ट को ‘मौत के आरोहण का इलाका’ बनाने लगी हैं। इस वर्ष नेपाल सरकार ने एवरेस्ट आरोहण के लिए 381 क्लाइबिंग परमिट जारी किए थे। तुलनात्मक रूप से तिब्बत की ओर से आरोहण के लिए कुल 64 परमिट दिए गए थे। नेपाल की ओर से परमिट के लिए विदेशी पर्वतारोहियों को 11 हजार डॉलर की फीस देनी होती है। हर दल को अपने साथ नेपाली शेरपा गाइड रखने होते हैं। एक सामान्य हेल्थ सर्टिफिकेट देना होता है और यह सब कार्य एक्सपिडीशन एजेंसियों के जरिए भी किया जा सकता है।
यानी एक एजेंसी फीस लेकर सारे इंतजाम बैठे-बिठाए कर देती है। इस तरह की व्यवस्था में न तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कितने अभियान दलों को अनुमति दी जा रही है या उनमें कितने पर्वतारोही हैं और न ही इस बात का कि एक साथ बहुत अधिक पर्वतारोहियों की एवरेस्ट में मौजूदगी से आरोहियों को किस तरह की असामान्य जानलेवा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। 2019 के पहले एवरेस्ट सीजन के लिए 381 परमिट जारी करते समय भी इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि पर्वतारोहियों की इतनी बड़ी संख्या जानलेवा हो सकती है। नेपाल की ओर से 30 मई तक 626 आरोहियों ने एवरेस्ट आरोहण का प्रयास किया, जबकि तिब्बत की ओर से यह संख्या 191 रही।एवरेस्ट पर भीड़ का आलम यह रहा कि 23 मई को एवरेस्ट में 8000 मीटर से ऊपर के इलाके में 250 से अधिक आरोही मौजूद थे और ये सभी उस एक ही मार्ग से शिखर आरोहण का प्रयास कर रहे थे जिस पर नेपाल के शेरपा 14 मई को रोप फिक्स कर चुके थे।
इस मार्ग पर 8,790 मीटर की ऊंचाई पर 12 मीटर ऊंची एक चट्टान है जिसे पार करने के लिए बेहद सावधानीपूर्वक कुछ मीटर चढ़कर और फिर लगभग दो मीटर नीचे उतरकर चट्टान के दूसरी ओर जाना पड़ता है। इस चट्टानी अवरोध को एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी के नाम पर ‘हिलेरी स्टेप’ नाम दिया गया है। साउथ कोल से ऊपर के इस परंपरागत मार्ग में हिलेरी स्टेप ऐसी जगह है जहां पर एक वक्त में एक ही पर्वतारोही चढ़ या उतर सकता है। इस कारण हिलेरी स्टेप हमेशा से पर्वतारोहियों के लिए तेजी से चढ़ने में एक बड़ी बाधा बनता रहता है। इस वर्ष एवरेस्ट पर ट्रैफिक जाम के नाम पर जो तस्वीरें दुनिया ने देखी वे इसी हिलेरी स्टेप के आस-पास की थी। इसी जाम के कारण इस इलाके में चार पर्वतारोहियों की जान गई, क्योंकि बहुत देर तक रुके रहने के कारण उनकी ऑक्सीजन खत्म होती चली गई और वे एवरेस्ट का दबाव झेल पाने में असफल रहे।
इस वर्ष के एवरेस्ट हादसे के लिए जिन कारणों को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है उनमें सबसे पहला नेपाल द्वारा बहुत बड़ी संख्या में आरोहण के लिए अनुमति दिया जाना है। दूसरा कारण यह माना जा रहा है कि पहले सीजन में आरोहियों को शिखर आरोहण के लिए बहुत कम समय मिल पाया। इस वर्ष मई आरम्भ में ही बेस कैंप स्थापित होने शुरू हो गए थे, लेकिन फेनी तूफान के कारण एवरेस्ट क्षेत्र में तेज हवाएं और आंधी जैसी स्थितियां हो गईं। बेस कैंप में 20 से ज्यादा तंबू इस आंधी के कारण उड़ गए। इससे एवरेस्ट आरोहण की तैयारियों में देर हुई। नेपाल के मौसम विशेषज्ञों ने एवरेस्ट आरोहण के लिए दो अच्छी अवधि बताई थी जिनमें तेज हवाओं और बर्फीली आंधियों की संभावनाएं कम थी। पहली अवधि 19-20 मई की थी और दूसरी 21 से 26 मई के बीच बताई गई थी। एवरेस्ट के संदर्भ में अच्छे मौसम की इस अवधि को क्लियर वेदर विंडो कहा जाता है। इस अवधि में बर्फीली हवाओं की रफ्तार 25 से लेकर 45 किलोमीटर प्रति घंटे तक रहती है। ज्यादातर आरोही दलों ने 19-20 के बजाय 21 मई के बाद की अवधि को चुना, लेकिन 24 मई से 27 की आधी रात तक 65 से 85 किलोमीटर की रफ्तार की बर्फीली आंधियां चली जो कई पर्वतारोहियों के लिए जानलेवा साबित हुईं। तीसरा कारण हिलेरी स्टेप का अवरोध रहा। पहले एवरेस्ट आरोहण के लिए अभियान दल अलग-अलग दिशाओं में मार्ग चुनते थे, लेकिन अब महज रिकॉर्ड के लिए एवरेस्ट आरोहण करने वाले ज्यादातर आरोही दल हिलेरी स्टेप वाले मार्ग को ही अपनाते हैं। चौथा प्रमुख कारण बड़ी संख्या में अनुभवहीन पर्वतारोहियों का एवरेस्ट आरोहण के लिए पहुंचना था। अनुभवहीन और अतिउत्साही आरोहियों में से बहुत से ऐसे थे जिन्हें एवरेस्ट में मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों और ऑक्सीजन की कमी के बारे में व्यापक जानकारियां तक नहीं थी। एक अनुभवी शेरपा ने शिखर आरोहण के बाद वापस लौटते हुए देखा कि कैंप चार से ऊपर चढ़ते एक युवा आरोही ने अपना सप्लीमेंटरी ऑक्सीजन का सिलेंडर तक अपने शेरपा गाइड पर लाद रखा था। ऐसे कई अनुभवहीन आरोही भी इस वर्ष मारे जाने वालों में शामिल हैं।
एवरेस्ट और पर्यावरण की चिंता करने वालों के बीच सबसे अधिक चर्चा इस बात को लेकर है। यदि इस पर कन्ट्रोल नहीं किया गया तो भविष्य कैसा होगा। इंटरनेशनल माउंटेनियरिंग फेडरेशन के अध्यक्ष अमित चौधरी कहते हैं, ‘कुंछ पर्वत शिखरों पर यह नियम है कि अनुभवी माउंटेन गाइड अपने साथी आरोही की शारीरिक मानसिक स्थिति को देखते हुए उसे शिखर आरोहण से रोक सकता है और सुरक्षित नीचे वापस लौटने को कह सकता है, लेकिन एवरेस्ट के मामले में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तो आप काठमांडू से किसी भी शेरपा को गाइड बनाकर ला सकते हैं और एवरेस्ट आरोहण का प्रयास शुरू कर सकते हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए एवरेस्ट नोटिफिकेशन कमेटी बनानी चाहिए जो हर आवेदन पर विचार करे, छानबीन करे और तब जाकर अनुमति दी जानी चाहिए।
अर्जेंटीना में पर्वतारोहण की अनुमति के लिए विंटर क्लाइंम्बिग का अनुभव मांगा जाता है। अलास्का और अफ्रीका के सर्वोच्च शिखर माउंट किलिमंजारो के लिए भी ऐसे ही नियम हैं। उधर, पासपोर्ट की एक कापी, एक औपचारिक किस्म का हेल्थ सर्टिफिकेट, सामान्य बायोडाटा और 11 हजार डालर की फीस देकर कोई भी एवरेस्ट जाने की अनुमति हासिल कर सकता है। पहले काठमांडू में एवरेस्ट से जुड़ी एजेंसियों का मालिकाना हक यूरोप एवं अमेरिकी पर्वतारोहियों के हाथों में था, लेकिन अब पिछले दस वर्षो में यहां नेपाली मालिकों वाली एजेंसियों की बाढ़ सी आ गई है। सस्ते में आरोहण कराने का दावा करने वाली इन एजेंसियों ने नए नारे भी गढ़े हैं, मसलन ‘एनीवन’, ‘एनीवन केन समिट’ या ‘लो कॉस्ट एवरेस्ट समिट’ जैसे इन विज्ञापनों के जाल में अनुभवहीन और अति महत्वाकांक्षी पर्वतारोही आसानी से फंस जाते हैं।
ऐसी एजेंसियां कीमत कम करने के साथ सुरक्षा और साधनों के साथ समझौता करती हैं। काम बढ़ने पर स्टाफ बढ़ाने के लिए 8000 मीटर से ऊपर पर्वतारोहण का अनुभव न रखने वालों को भी शेरपाओं के काम के लिए एवरेस्ट भेज दिया जाता है। हर शेरपा एवरेस्ट गाइड है, ऐसा मान लेना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। पर्वतारोही एवं ब्लॉगर एड्रिन बलिंगर कहते हैं, ‘बड़ी एजेंसियां आरोहण की अनुमति चाहने वालों का स्वास्थ्य परीक्षण खुद करवाती हैं। आवेदन के साथ इंटरव्यू भी होते हैं और बड़ी संख्या में आवेदन रद्द भी होते हैं। नेपाल में भी एवरेस्ट आरोहण के लिए आवेदक को पूर्व में कम से कम 8000 मीटर से ऊंची एक चोटी पर सफल आरोहण का अनुभव अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए। चूंकि नेपाल में ऐसी बहुत सी चोटियां हैं इसलिए इससे नेपाल में पर्वतारोहण कारोबार भी बढ़ेगा और एवरेस्ट भी ज्यादा सुरक्षित रह सकेगा।’
एवरेस्ट निसंदेह बेहद आकर्षक है। संसार का यह सबसे ऊंचा शिखर जहां दुनिया भर के आरोहियों को आमंत्रित करता रहता है वहीं शून्य से 25 डिग्री कम तक का तापमान, भयानक तेज बर्फीली आंधियां, समुद्र सतह से तीन गुना तक हवा का कम दबाव और ऑक्सीजन शून्यता जैसी स्थितियों इसे ‘डेथ जोन’ बना देती हैं। यहां एवरेस्ट और आरोही के बीच मुकाबला लगभग एकतरफा रहता है, इसलिए अनुभवहीन और अति उत्साही गैर जिम्मेदार पर्वतारोहियों को यहां पहुंचने से रोकने के लिए कड़े नियम और पूर्णतः पेशेवर प्रबंधन की आज बेहद आवश्यकता हो गई है।