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मंत्री का टिकट काट चायवाले पर लगाया दांव

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के एलान के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने – अपने उम्मीदवारों की घोषणा करनी शुरू कर दी है। अब तक घोषित हुए उम्मीदवारों में कई स्थानों पर चुनावी जंग खून के रिश्तों का कत्ल करती नजर आ रही है वहीं विपक्ष हमेशा से ही प्रधान मंत्री को चायवाला संबोधित कर उन पर कटाक्ष करता आया है। पीएम पर किये गए इसी कटाक्ष को अब भाजपा ने अपना हथियार बना लिया है। इसी के तहत बीजेपी ने शिमला सीट से मंत्री सुरेश भारद्वाज का टिकट काट एक चाय वाले को अपना उम्मीदवार बनाया है। जिसकी तुलना पीएम नरेंद्र मोदी से की जा रही है। इस शख्श का नाम है संजय सूद। टिकट कटने पर भाजपा मंत्री सुरेश भारद्वाज कहना है कि राज्य में एक सीट बदलने और दूसरी सीट पर लड़ने का रिवाज नहीं है। निश्चित रूप से यह अजीब है क्योंकि यहां केवल एक सीट है जहां मैं नियमित रूप से निर्वाचित हुआ हूं। दरअसल इससे पहले सुरेश भारद्वाज चार बार शिमला शहरी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं।

गौरतलब है कि संजय सूद शिमला में चाय की दुकान चलाते है। इस वजह से इनकी तुलना प्रधानमंत्री से की जा रही है। अपनी तुलना प्रधानमंत्री से किये जाने पर सूद का कहना है कि मेरी तुलना उनसे नहीं की जानी चाहिए , मैं उनके पैरों के नीचे की धूल के बराबर भी नहीं हूं। भाजपा का मैं बहुत आभारी हूं कि उसने मुझे शिमला अर्बन जैसी हॉट सीट से चुनाव लड़ने के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है , मेरा विश्वास सातवें आसमान पर है क्योंकि यह मेरे जैसे छोटे कार्यकर्ता के लिए एक बड़ा सम्मान है।

कौन है शिमला का चायवाला

 

संजय सूद किसी राजनीतिक परिवेश से नहीं आते हैं। बावजूद इसके भाजपा द्वारा उन्हें चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा है। संजय सूद के मुताबिक राजनीतिक पृष्ठभूमि से न होने के बावजूद वे जनता की सेवा के लिए वे तत्पर हैं ।1980 में बीजेपी के गठन के बाद से ही वे लगातार पार्टी के लिए काम कर रहें है।

वर्ष 1991 से शिमला में चाय की दुकान चला रहे संजय सूद एक गरीब परिवार से हैं। चाय की दुकान चलाने से पहले वे बसस्टैंड पर अख़बार बेचा करते थे। जिससे उन्हें कॉलेज की फीस भरने में मदद मिलती थी। उस दौरान उन्होंने आरएसएस की छात्र शाखा “विद्यार्थी परिषद” (एबीवीपी) में भी काम किया। उनका कहना है कि ” गरीब परिवार से होने के बावजूद दिल में सेवा की भावना बनी रही है ,मैंने पांच साल तक छात्र परिषद में काम किया लेकिन वित्तीय दिक्कतों के कारण इसे रोकना पड़ा। उसके बाद दो साल तक एक चिकित्सा प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया, उसके उपरांत 1991 में चाय की दुकान खोली। जिसकी मदद से सूद अपने परिवार का पेट पालते थे

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