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देश छोड़ने वालों ने बढ़ाई सरकार की मुश्किलें

  • वृंदा यादव, प्रशिक्षु

मौजूदा समय में एक ओर जहां देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ बीते कुछ सालों में भारतीय नागरिकता छोड़ अन्य देशों की नागरिकता लेने वालों में भारी बढ़ोतरी ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं

 

पिछले तीन वर्षों से कोरोना की मार ने जहां पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा दी है वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसमें और इजाफा किया है। इस आर्थिक संकट के बीच बीते कुछ सालों में भारतीय नागरिकता छोड़ दूसरे देश की नागरिकता लेने वाले भारतीयों की संख्या में भारी बढ़ोतरी से देश छोड़ने वालों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।


इस मुद्दे को लेकर मानसून सत्र में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सदन में इनके आंकड़े पेश किए हैं। संसद के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 से 2021 के बीच कुल 9 लाख 32 हजार 276 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ी है। हालांकि नागरिकता छोड़ना निजी कारणों को बताया है।


एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में कुल 1 लाख 63 हजार 370 भारतीयों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी और दूसरे देशों की नागरिकता ली है। 2019 के बाद यह संख्या सबसे ज्यादा है। 2019 में यह आंकड़ा 1 लाख 44 हजार 17 और 2020 में 85 हजार 256 भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों की नागरिकता ग्रहण की है।


गौरतलब है की कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि कोरोना काल में बहुत सारे धनकुबेर देश छोड़ कर यूएई, यूरोप, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में चले गए। ऐसे में अमीरों के देश छोड़ने की कई वजहों में से एक बड़ी वजह कोरोना को बताया गया, लेकिन 2022 में भी देश छोड़ किसी अन्य देश में बसने का यह सिलसिला जारी है।


दुनिया-भर में निजी धन और निवेश इमीग्रेशन के ट्रेंड को ट्रैक करने वाली हेनले ग्लोबल सिटीजन्स रिपोर्ट में हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल की ग्रोथ के आंकड़ों के पूर्वानुमान के अनुसार, भारत में अगले दस साल की अवधि के दौरान डॉलर के करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या में 80 प्रतिशत की वृद्धि होगी। वहीं अमेरिका में यह वृद्धि दर मात्र 20 फीसदी है। वहीं फ्रांस, जर्मनी, इटली और ब्रिटेन में इसका प्रतिशत मात्र 10 फीसदी होगा। इसके बावजूद इस साल भारत से लगभग 8 हजार धनकुबेरों के देश छोड़ने का अनुमान है।


इन देशों में बस रहे हैं भारतीय
भारतीय नागरिकता छोड़कर भारतीयों ने 103 देशों की नागरिकता ली है। इनमें सबसे ज्यदा 78 हजार भारतीय अमेरिका में बसे हैं वहीं 21 हजार कनाडा, 14 हजार 500 ने यूके की नागरिकता ली है। वर्ष 2021 में 23 हजार 500 भारतीयों ने भारत छोड़ ऑस्ट्रेलिया में बसने का निर्णय लिया।


नागरिकता छोड़ने के कारण
सवाल उठ रहे हैं कि इतने लोगों का एक साथ भारतीय नागरिकता छोड़ने का कारण क्या है? इस सवाल का जवाब देने से पहले नागरिकता के बारे में जान लेना अति आवश्यक है। जब किसी देश में रहते हुए आप एक निश्चित अवधि पूरी कर लेते हैं या जहां आपका जन्म हुआ और आपके माता-पिता काफी समय से उसी स्थान पर रहते हैं तो एक व्यक्ति को उस स्थान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।


भारतीय नागरिकता छोड़ने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि भारत में बढ़ता प्रदूषण, भ्रष्टाचार, अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं न होना, राजनीतिक अव्यवस्था के कारण भी देश के नागरिक पलायन कर रहे हैं। कोरोना महामारी के कारण हजारों लोगों सहित कई बड़े उद्योपतियों ने विदेशों की ओर रुख किया है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। इसका एक बड़ा कारण भारत में लगे इनकम टैक्स के कड़े कानूनों को बताया जा रहा है।


कई स्थानों जैसे सिंगापुर में डिजीटल रूप से व्यापार करने वाले उद्योगपति बसना पसंद करते हैं। क्योकि वहां की व्यापारिक तकनीक, मजबूत कानून व्यवस्था और बेहतर शिक्षा है। जिसके कारण उद्योगपति वहां की ओर आकर्षित हो रहे हैं। सरल शब्दों में कहें तो यहां की सबसे अच्छी बात यह है कि लिविंग स्टेंडर्ड ऊंचा और शिक्षा व्यवस्था काफी अच्छी है।


एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह कि भारत में अवसरों की कमी है अर्थात एक व्यक्ति जो अपना उद्योग स्थापित करना चाह रहा है लेकिन उसे शुरूआती प्रक्रिया की जानकारी न होने के कारण वह अपने कार्य को आगे नहीं बढ़ा पाता। जिसे विदेशों में आसानी से सीखा जा सकता है। गौरतलब है कि 2 वर्ष पहले उद्योगपति राहुल बजाज ने आर्थिक स्थिति को लेकर अपनी और अपने साथी उद्योगपतियों की चिंता का जिक्र किया कि कई उद्योगपति सरकारी प्राधिकरणों के उत्पीड़न के माहौल में रह रहे हैं।

उद्योगपति नई परियोजनाएं शुरू करने से पहले घबराते हैं। इस माहौल में उनके अंदर असफलता का डर रहता है। इस क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि उद्यमियों का इस प्रकार से जाना भारत में बेरोजगारी की स्थिति को और भी गंभीर बना सकता है।

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