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ओपीएस पर होगी आर-पार की लड़ाई!

पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन एकजुट हो गए हैं। कहा जा रहा है कि अब ओपीएस पर आर-पार की लड़ाई होगी। केंद्र सरकार में ‘स्टाफ साइड’ की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सचिव शिव गोपाल मिश्रा की अध्यक्षता में बीते सात जनवरी को नई दिल्ली में हुई बैठक में ओपीएस बहाली की मांग को लेकर कई बड़े फैसले लिए गए हैं। इस बैठक में कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह भी शामिल हुए। खास बात यह है कि अब पुरानी पेंशन के मुद्दे पर जो आंदोलन होगा, वह केवल दिल्ली में नहीं, बल्कि राज्यों की राजधानियों और जिला स्तर तक किया जाएगा

देश में पुरानी और नई पेंशन स्कीम को लेकर रार बढ़ती जा रही है। एक तरफ कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों की राज्य सरकार पुरानी पेंशन बहाल कर रही हैं या करने की योजना बना रही हैं, वहीं केंद्र की भाजपा और उनकी राज्य सरकारें इसे सिरे से खारिज कर रही हैं। हालांकि उनके सहयोगी दल भी पुरानी पेंशन के पक्ष में दिख रहे हैं। लेकिन भाजपा जिद्द पर अड़ी है कि वह पुरानी पेंशन को बहाल नहीं करेगी। दरअसल, आगामी चुनावों के मद्देनजर पुरानी पेंशन योजना की बहाली का मामला अब जोर पकड़ता जा रहा है। केंद्रीय कर्मचारियों में इस मुद्दे पर गहरा असंतोष व्याप्त है। इस मसले को लेकर नेशनल ज्वाइंट कमेटी ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की महत्वपूर्ण बैठक 7 जनवरी को जेपी चौबे पुस्तकालय सभागार, एआईआरएफ मुख्यालय, इस्टेट इंट्री रोड, नई दिल्ली में संपन्न हुई। इस बैठक में रेलवे के दोनों लेबर फेडरेशन एआईआरएफ, एनएफआईआर सहित डिफेंस, पोस्टल, केंद्रीय कर्मचारियों के अन्य संगठनों के साथ ही तमाम राज्य सरकारों के कर्मचारी, संगठनों और दिल्ली में शिक्षक संगठनों, कश्मीर से तमिलनाडु तक के कुल 50 संगठनों के 76 प्रतिनिधि उपस्थित थे।

बैठक में आम राय यही रही कि अगर पुरानी पेंशन को बहाल कराना है तो आंदोलन का यह सही समय है। हालांकि वक्ताओं का कहना था कि राजनीतिक दलों से उनका कोई संबंध नहीं है, फिर भी कई दलों ने पुरानी पेंशन बहाली को अपने एजेंडे में शामिल कर सरकार पर काफी हद तक दबाव बनाया है। इसके अलावा कई स्थानों पर चुनावों में उन्हें कामयाबी भी मिली है। ऐसे में अब आवश्यक है कि इस मसले पर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाए।

फिलहाल बैठक में तय हुआ कि 21 जनवरी को प्यारेलाल मेमोरियल हॉल में एक बड़ा प्रतिनिधि सम्मेलन किया जाए, जिसमें एक विस्तृत घोषणा पत्र तैयार कर सरकार को सांपा जाएगा। अगर जल्द ही सरकार ने पुरानी पेंशन के मामले में सकारात्मक फैसला नहीं लिया तो मानसून सत्र के दौरान संसद का घेराव किया जाएगा। बैठक में तय हुआ कि अगर इसके बाद भी सरकार कर्मचारियों की मांग नहीं मानती है, तो 19 सितंबर में भारत बंद का आह्नान किया जाएगा। गौरतलब है कि पुरानी पेंशन योजना को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन एकजुट हो गए हैं। कहा जा रहा है कि अब ओपीएस पर आरपार की लड़ाई होगी। केंद्र सरकार में ‘स्टाफ साइड’ की जेसीएम के सचिव शिव गोपाल मिश्रा की अध्यक्षता में सात जनवरी को नई दिल्ली में हुई बैठक में ओपीएस बहाली की मांग को लेकर कई बड़े फैसले लिए गए हैं। इस बैठक में कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह भी शामिल हुए। खास बात यह है कि अब पुरानी पेंशन के मुद्दे पर जो आंदोलन होगा, वह केवल दिल्ली में नहीं, बल्कि राज्यों की राजधानियों और जिला स्तर तक किया जाएगा।

ओपीएस पर होगा आंदोलन
10 फरवरी से 20 फरवरी तक एनजेसीए का ऑनलाइन पिटीशन अभियान शुरू होगा। एनपीएस के तहत आने वाले लाखों कर्मियों द्वारा इस पिटीशन पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है। 21 फरवरी को रेलवे में ब्रांच लेवल पर रैलियां आयोजित होंगी। इसके एक माह बाद यानी 21 मार्च को जिला स्तर पर एनजेसीए द्वारा रैलियां की जाएंगी। 21 अप्रैल को एनजेसीए की राष्ट्रीय संचालन समिति की अहम बैठक बुलाई गई है। इसी दिन कर्मचारी संगठनों की स्थानीय इकाई, ओपीएस को लेकर बैठक करेंगी। 21 मई को देश के सभी जिलों में कर्मचारी संगठन, मशाल जुलूस निकालेंगे। इसमें कर्मचारियों के परिजन भी हिस्सा लेंगे। 21 जून को राज्यों की राजधानियों में रैलियां आयोजित होंगी और जुलाई-अगस्त में संसद के मानसून सत्र के दौरान नई दिल्ली में अखिल भारतीय स्तर पर एक मेगा रैली की जाएगी। अगर तब भी केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली को लेकर कोई सकारात्मक पहल नहीं की तो 19 सितंबर को भारत बंद किया जाएगा।

जब एक प्रतिशत वोट के अंतर से खिसक गई सत्ता
बैठक में मौजूद रहे कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह एवं अध्यक्ष जयेंद्र सिंह राणा ने कहा ‘केंद्र को पुरानी पेंशन लागू करनी होगी। यह कर्मियों का हक है। एक कर्मचारी अपने जीवन के तीस-चालीस वर्ष सरकार को देता है, तो बुढ़ापे में उसका पेंशन लेने का हक बनता है। सरकार, अपनी इस जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। ओपीएस को लेकर जो आंदोलन शुरू होगा, उसमें कर्मियों के परिजन भी शामिल होंगे।’ बतौर रणबीर सिंह, हिमाचल प्रदेश के हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में पुरानी पेंशन बहाली, एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना था। ओपीएस के चलते ही एक प्रतिशत वोट, इधर से उधर हो गया। नतीजा, भाजपा के हाथ से सत्ता खिसक गई। विभिन्न राज्यों में 2023 के दौरान होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव में चपरासी और चौकीदार, यानी सिविलियन कर्मचारी व सरहदी पैरामिलिट्री चौकीदारों के परिवार एक निर्णायक भूमिका निभाएंगे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए 2023 का रोड मैप तैयार कर लिया गया है। यह आंदोलन शिव गोपाल मिश्रा के नेतृत्व में होगा। जयेंद्र सिंह राणा ने एनजेसीए के सभी सदस्यों को 14 फरवरी को पुलवामा शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए जंतर-मंतर पर आमंत्रित किया है।

उग्र आंदोलन की चेतावनी
आगामी चुनावों से पहले पुरानी पेंशन योजना में बहाली को लेकर देशभर में चर्चाओं ने एक बार फिर सियासत गरमा दी है। एक तरफ राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और झारखंड में ओपीएस को बहाल कर दिया गया है और दूसरी तरफ सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार की हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने की तैयारी जोरों पर है। इस बीच उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली को लेकर संयुक्त मोर्चा ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर इसे बहाल नहीं किया गया तो बड़ा आंदोलन होगा।

राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के प्रांतीय नेतृत्व के आह्नान पर पिछले हफ्ते देहरादून में हजारों कार्मिकों ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास कूच किया। लेकिन इसके पहले ही पुलिस ने दिलाराम बाजार से कुछ दूरी पर तैनात बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें रोक लिया। इस दौरान कर्मचारियों की पुलिस के साथ तीखी नोक-झोंक हुई। मामला बढ़ता देख पुलिस ने कई प्रदर्शनकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया हालांकि बाद में उन्हें पुलिस लाइन ले जाकर छोड़ दिया गया।
इस गिरफ्तारी से कर्मचारी नाराज हो गए और उन्होंने मांग पूरी न होने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दे डाली। पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीपी सिंह रावत ने कहा कि यह दुखद है कि उनकी मांग को सुने बिना सीधे हिरासत में लिया गया। उत्तराखण्ड सरकार को यह कदम बहुत भारी पड़ेगा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द ही पुरानी पेंशन बहाल न की तो वह सड़कों पर उतरकर उग्र आंदोलन करेंगे।

सरकार की मंशा पर सवाल
देशभर में पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर आंदोलन करने वाले सेंट्रल एंड स्टेट गवर्मेंट एम्प्लॉयीज कन्फेडरेशन दिल्ली और नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम, दिल्ली के अध्यक्ष मंजीत पटेल ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा अगर केंद्र सरकार चाहे तो वो पीएफआरडीए से सारे पैसे रिलीज करा सकती है। केंद्र सरकार को बस एक कानून में संशोधन करना है उसके बाद पीएफआरडीए से निकासी का रास्ता खुल सकता है। पुरानी पेंशन देश के 80 लाख सरकारी कर्मचारियों की मांग है। इसलिए केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

एनपीएस प्रणाली
इस समय दिल्ली और पुड्डुचेरी समेत 29 राज्यों में नेशनल पेंशन स्कीम लागू है। पश्चिम बंगाल ने एनपीएस स्कीम को लागू करने से इनकार किया। तमिलनाडु की अपनी स्कीम है। 1 जनवरी 2004 को या उसके बाद सेवा में शामिल होने वाले केंद्र सरकार और केंद्रीय इकाइयों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए गारंटीशुदा पेंशन प्रणाली की जगह एनपीएस प्रणाली की शुरुआत की गई थी। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि पुरानी पेंशन प्रणाली, कमर्चारियों की सर्विस के कुल वर्षों पर आधारित थी। उनकी पेंशन का निर्धारण उनके अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ते को जोड़कर तय की जाती थी। पुरानी व्यवस्था में समय-समय पर वेतन संशोधन के मुताबिक पेंशन दिए जाने का भी प्रावधान था। उस पुरानी व्यवस्था में, यदि किसी कर्मचारी की सेवावधि 10 वर्षों से कम नहीं है तो उन्हें पिछले मूल वेतन का आधा और सेवानिवृत्ति के समय महंगाई भत्ते की कुल राशि को जोड़कर पेंशन दिए जाने का गारंटीशुदा हक था और सेवा के दौरान या सेवानिवृत्ति के बाद किसी कर्मचारी की मृत्यु के मामले में, परिवार-पेंशन का भी प्रावधान था, जो उनके अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ता (डीए) के योगफल का आधा हिस्सा होता था। साथ ही, सेवानिवृत्ति के समय और सेवा के दौरान मृत्यु के मामले में, एक कर्मचारी या उसके परिवार को आर्थिक सहायता दी जाती थी, जिसे ‘डेथ कम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी’ कहा जाता है।

नई और पुरानी पेंशन योजना में अंतर
नई और पुरानी पेंशन योजना में कई बड़े अंतर हैं। इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। जबकि नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी की बेसिक सैलरी प्लस डीए का 10 फीसद हिस्सा कटता है। पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। वहीं नई पेंशन स्कीम में छह महीने बाद मिलने वाले डीए का प्रावधान नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। वहीं नई योजना में रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती। पुरानी स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है। नई योजना में एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यहां टैक्स का भी प्रावधान है।

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