बीजेपी में सचिन पायलट के आने की चर्चाओं से खुशी का माहौल है । हालात यह है कि बीजेपी सचिन पायलट के लिए रेड कारपेट बिछाने तक की प्लानिंग कर रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बीजेपी सचिन पायलट को अपनी पार्टी में देखने के लिए इतनी आतुर है कि वह उनका और उनके समर्थक विधायकों का पलक पावडे बिछा कर इंतजार कर रही हैं। राज्य में सियासी घटनाक्रम को लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत और राज्यसभा सदस्य ओम माथुर लगातार पायलट के समर्थन में बोल रहे हैं।
लेकिन यह सिर्फ एक ही पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि राजस्थान की महारानी विजयाराजे सिंधिया सचिन पायलट के पार्टी में आने से इतनी खुश नहीं है जितनी बीजेपी के नेता है। हालांकि फिलहाल सचिन पायलट के भाजपा में आने की चर्चा के चलते अभी तक राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी विजय राजे सिंधिया चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन उनकी यह चुप्पी कोई बड़ा गुल खिला सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री की यह रहस्यमय चुप्पी चर्चाओं में है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि महारानी की यह चुप्पी तूफान आने से पहले की शांति की तरह है। बीजेपी से जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि सिंधिया कभी नहीं चाहेगी कि सचिन पायलट उनकी पार्टी में आए और उनके ताज यानी मुख्यमंत्री पद के हकदार बने। हालांकि, आज 11 बजे विजय राजे सिंधिया जयपुर पहुंच रही है। यह कहा जा रहा है कि वह अपने सभी विधायकों के साथ मीटिंग करके आगामी रणनीति पर विचार करेंगे। इसे सिंधिया की अपने विधायकों का मन टटोलने की बात से जोडकर देखा जा रहा है।
लेकिन सच यह है कि विजय राजे सिंधिया राजस्थान में बीजेपी की एकमात्र सर्वे सर्वा है । आज बीजेपी के 75 विधायकों में से कम से कम 45 विधायक ऐसे हैं जो उनके अंधभक्त हैं। मतलब यह कि जब तक सिंधिया का इशारा नहीं होगा विधायक उनके बगैर किसी को भी सपोर्ट नहीं कर सकते। केंद्र सरकार मे बैठे शीर्ष नेतृत्व ने भी सिंधिया को कई बार राजस्थान से असहज करने की कोशिश की । जिसमें वह सफल नहीं हो पाए। पूर्व में राजनाथ सिंह से लेकर वर्तमान में अमित शाह तक महारानी के विरोध में अपना नेता राजस्थान में इस्टैबलिश्ड करने को अहमियत देते रहे। लेकिन विजय राजे सिंधिया ने कभी भी उनकी दाल गलने नहीं दी।
गौरतलब है कि वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने फैसला लिया था कि वसुंधरा राजे को नेता विपक्ष पद से इस्तीफा देना होगा। उसके बाद तत्कालीन 78 विधायकों में से 63 विधायकों ने दिल्ली में राजनाथ सिंह के घर के बाहर पार्टी के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन तक कर दिया था। साथ ही वसुंधरा राजे ने 8 महीने तक राजनाथ सिंह के बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए नेता विपक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया था। यह उनकी हठधर्मिता रही। जिसके आगे राजनाथ सिंह भी कुछ नही कर पाए थे।
इसी तरह वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच बहुत कुछ ठीक नहीं रहा था। 2018 के चुनाव से पहले अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे। लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के चलते अमित शाह भी गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पाए थे।
हालांकि, जिस तरह से सचिन पायलट कांग्रेस से बागी बनने के सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिलने पहुंचे, उससे कयास लगाए जा रहे थे कि सिंधिया परिवार सचिन पायलट के साथ हैं। तब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी ट्वीट करके कहा कि उनके दोस्त के साथ कांग्रेस ने अन्याय किया है। यही नहीं बल्कि विजय राजे सिंधिया ने भी ज्योति राजे सिंधिया की तरह ही सचिन पायलट का समर्थन किया। लेकिन बताते हैं कि यह समर्थन सिर्फ एक दिखावा है। जबकि अंदर खाने विजय राजे सिंधिया सचिन को राजस्थान की बीजेपी की राजनीति में एंट्री में बिलकुल खिलाफ है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि बेशक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय राजे सिंधिया दोनों अलग-अलग पार्टियों के नेता है। लेकिन अंदर खाने दोनों की सियासी सेटिंग है। यह सेटिंग इस कदर है कि जब से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश का चार्ज संभाला है तब से विजय राजे सिंधिया ने विपक्षी नेता होने के नाते एक बार भी गहलोत का विरोध नहीं किया है। कुछ इसी तरह पूर्व में गहलोत भी सिंधिया सरकार के दौरान मौन धारण किए रहते थे।
पायलट प्रकरण में अभी तक सिंधिया बीजेपी के केंद्रीय नेताओं का रुख भांप रही है। इसी के साथ ही आज वह जयपुर में होने वाली 11 बजे की मीटिंग में अपने पार्टी के विधायकों का भी मूड जानेगी। हालांकि, दूसरी तरफ राजस्थान में ही भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावत और ओम माथुर जैसे सीनियर लीडर भी है जो खुलकर सचिन पायलट के समर्थन में आ गए हैं। सचिन पायलट के बीजेपी में शामिल होने के सवालों पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत कह चुके हैं कि कोई भी बड़े जनाधार वाला नेता किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होना चाहे तो उसका स्वागत किया जाता है।