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कई समानताएं हैं 123 साल पहले 44 साल चले और आज के किसान आंदोलन में 

आज देश में दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर किसान आंदोलन चल रहा है। यह आंदोलन का आज 22 वा दिन है। अभी से किसानों के आंदोलन की कमान डगमगाने लगी है। एक अंग्रेजो के काल का किसान आंदोलन था जिसे बिजौलिया आंदोलन कहा गया था।  जिसको समर्थन देने महात्मा गांधी भी बिजौरिया पहुंचे थे। 123 साल पहले का वह आंदोलन देश का अब तक का सबसे लंबा किसान आंदोलन हुआ था।

भीलवाड़ा की बिजाैलिया रियासत में शुरू हुआ ये आंदोलन 1897 से 1941 तक पूरे 44 साल तक चला था। उस समय किसानों की मांग थी कि बिजौलिया, मेवाड़ रियासत और ब्रिटिश सरकार करीब 84 तरह के टैक्स वापस ले। इसके विरोध में किसानों ने दाे साल तक खेती रोक दी थी। फलस्वरूप तत्कालीन सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा था और सभी टैक्स वापस लेने पड़े थे।

बताया जाता है कि उस दौरान किसानाें पर इतना अत्याचार हाे रहा था कि बेटी की शादी पर 5 आना चंवरी टैक्स लगा दिया गया। सालाना लाग-बाग टैक्स नहीं चुकाने पर देश निकाला दे दिया जाता था । कपड़े और बर्तन नीलाम करवा दिए जाते थे। परेशान किसान बार-बार यही कह थे कि 84 टैक्स चुकाने के बाद खाने के लिए अनाज भी नहीं बचेगा। जब सरकार नहीं मानी, तो किसानों ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया।

 

अगर 123 साल पहले के किसान आंदोलन और आज के किसान आंदोलन की तुलना करे तो दिल्ली और बिजाैलिया दोनों आंदाेलन अहिंसक हैं। इस आंदोलन में अब तक दो दर्जन के करीब किसानो की मौत की सूचना है। कल ही संत बाबा रामसिंह ने व्यथित होकर अपने आपको गोली मारकर खुदकुशी कर ली। 123 साल पहले 84 टैक्स हटाने की मांग थी और अब केंद्र के तीन नए कृषि कानून रद्द करने की मांग है।

तब के किसानों ने दो साल खेती छाेड़ दी और मांग पर डटे रहे। अब भी किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं। हाड़कपाती ठंड में भी किसान सिंधु बॉर्डर से हटने को तैयार नहीं है। फिलहाल वह लंबे संघर्ष को पूरी तरह से तैयार हैं। तब के किसान आंदाेलन में युवा और महिलाओं का भी बराबर सहयाेग मिला। इस किसान आंदोलन में भी युवा और महिलाएं बराबरी से हिस्सा ले रही हैं।

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