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फिर गरमाने लगा कॉमन सिविल कोड का मुद्दा

कॉमन सिविल कोड भाजपा का हमेशा से राजनीतिक मुद्दा रहा है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने पर तीन सप्ताह के भीतर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा अपने अहम मुद्दों में से एक ‘समान नागरिक संहिता’ के मुद्दे को आगामी विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा शासित राज्यों में लागू कर इस मुद्दे को फिर से उठा सकती है

 

समान नागरिक संहिता एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। समय -समय पर इसको लेकर बहस होती रही है। संविधान के अनुच्छेद 44 में समान सिविल संहिता का उल्लेख है, जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में संविधान में राज्य को कॉमन सिविल कोड के लिए प्रयास करने हेतु निर्देशित किया है। ऐसे में इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की व्यवहार्यता पर तीन सप्ताह के भीतर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। कोर्ट के इस निर्देश के बाद कहा जा रहा है कि बीते पांच महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों में भगवा फहराने के बाद अब साल के अंत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और अगले साल नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों सहित 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता कानून लागू कर पार्टी अपने अहम मुद्दों में से एक ‘समान नागरिक संहिता’ के मुद्दे को फिर से उठा सकती है।

 

दरअसल, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट की एक पीठ शादी की उम्र, तलाक के आधार, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए कानूनों में एकरूपता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई में पीठ ने कहा, ‘ये याचिकाएं शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और मेंटेनेंस कानूनों की मांग कर रही हैं। इन बातों में क्या अंतर है? ये सभी समान नागरिक संहिता के पहलू हैं।’ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय और एक अन्य याचिकाकर्ता लुबना कुरैशी द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह ने विभिन्न धर्मों के लिए प्रचलित तलाक, विवाह, उत्तराधिकार, गोद लेने और मेंटेनेंस पर विभिन्न कानूनों में कमियों की तरफ इशारा किया है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में एकरूपता लाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि व्यभिचार के लिए हिंदुओं, ईसाइयों और पारसियों के लिए एक आधार है, लेकिन मुसलमानों के लिए नहीं। इसी तरह कुष्ठ बीमारी हिंदुओं और मुसलमानों के लिए तलाक का आधार है, लेकिन ईसाइयों और पारसियों के लिए नहीं। कम उम्र में शादी हिंदुओं के लिए तलाक का आधार है, लेकिन ईसाइयों, पारसियों और मुसलमानों के लिए नहीं है। उपाध्याय की याचिका में यह भी कहा गया है कि सभी धर्मों की महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। धार्मिक प्रथाएं जो उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती हैं, उनकी रक्षा नहीं की जानी चाहिए। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह अनिवार्य रूप से कानून का सवाल होगा। अगर जरूरत पड़ी तो हम तीन सप्ताह में जवाब देंगे।

इस बीच उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भी कहा कि समान नागरिक संहिता पर गठित कमेटी दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी और उसके बाद जल्द से जल्द इसे लागू कर दिया जाएगा। यहां तक कि इस कानून के लिए जनता के सुझावों और विचारों को शामिल किया जा रहा है। इसे लेकर यूसीसी समिति ने राजभवन में वेबसाइट का शुभारंभ किया है। इस दौरान समिति ने प्रदेश के करीब एक करोड़ लोगों को मैसेज भी भेजे, जिसके माध्यम से समिति ने जनता की राय मांगी है। समिति ने समान नागरिक संहिता के परीक्षण एवं क्रियान्वयन के लिए वेबसाइट को लॉन्च किया है। इसके साथ ही समिति ने जनता से बढ़-चढ़कर अपनी राय देने का अनुरोध किया है।

सीएम धामी ने कहा कि हम समान नागरिक संहिता के रूप में अमृत काल में एक बड़ी इबारत लिखने जा रहे हैं। गौरतलब है कि नई सरकार गठन के बाद पहली कैबिनेट बैठक में समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट के लिए समिति के गठन को मंजूरी दी गई थी। धामी ने समिति के अब तक के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि विशेषज्ञ समिति ने तेजी से काम किया है। वहीं, समिति की अध्यक्ष रंजना प्रकाश देसाई ने बताया कि समिति ने सुझाव के लिए वेबसाइटhttps:@ucc.uk.gov.in का शुभारंभ किया है, जिस पर प्रदेश के जनप्रतिनिधि, नागरिक, प्रबुद्धजन, संगठन, संस्थाएं अपने सुझाव अगले 30 दिन यानी 7 अक्टूबर तक भेज सकते हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शपथ ग्रहण करने के साथ ही राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की बात कही थी। इसके बाद सरकार की पहली कैबिनेट में यूसीसी को लागू करने के लिए समिति का गठन करने का निर्णय लिया गया। 27 मई 2022 को सरकार ने जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय समिति का गठन किया। यह समिति अभी तक चार बैठकें कर चुकी है। अब समिति ने पांचवी बैठक की है। इसके अलावा समिति ने यूसीसी के लिए दो सब कमेटी भी बनाई है, जिसके तहत एक दिल्ली और दूसरी देहरादून में काम कर रही है। समान नागरिक संहिता के परीक्षण और क्रियान्वयन के लिए गठित विशेषज्ञ समिति की अध्यक्ष जस्टिस (सेनि) रंजना प्रकाश देसाई के अनुसार समिति सरकार को अपनी रिपोर्ट कब तक सौंपेगी इसकी अभी कोई समय सीमा नहीं है, क्योंकि प्रदेश की जनता से सुझाव मांगे गए हैं, जिसमें काफी वक्त लग सकता है।

जनता से जो सुझाव प्राप्त होंगे, उन सूचनाओं का विश्लेषण किया जाएगा ताकि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए बेहतर रिपोर्ट तैयार की जा सके। अगर ऐसा होता है तो गोवा के बाद उत्तराखण्ड देश का दूसरा राज्य होगा, जहां पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा। इसके पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मई में कह चुके हैं कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को प्रदेश में किस तरह से लागू किया जा सकता है, इसे लेकर सरकार गंभीर है। कैसे इसे हम कानून के दायरे में ला सकते हैं, यह सब कुछ देखा जा रहा है।

गौरतलब है कि भाजपा अपने अहम मुद्दों और वायदों में से एक ‘समान नागरिक संहिता’ को लागू करने के मुद्दे को फिर से उठाने लगी है। उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए वायदे को निभाते हुए सरकार राज्य में समान नागरिक संहिता का मसौदा लगभग तैयार कर चुकी है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी राज्य के साथ ही पूरे देश में तेजी से इस कानून को लागू करने की वकालत करते हुए यह दावा कर चुके हैं कि समान नागरिक संहिता को लेकर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।

सबसे बड़ी बात यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं भोपाल में पार्टी नेताओं के साथ बैठक के दौरान यह कह चुके हैं कि भाजपा की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370, राम जन्मभूमि, नागरिकता संशोधन कानून और तीन तलाक जैसे ज्यादातर मुद्दों को हल कर दिया है और अब समान नागरिक संहिता जैसे जो कुछ मुद्दें बचे हैं, आने वाले वर्षों में उन्हें भी हल कर दिया जाएगा।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा अब अपने तीसरे और बचे हुए एकमात्र कोर एजेंडे को लेकर भी कदम उठाने का फैसला कर चुकी है। फिलहाल भाजपा की राज्य सरकारों ने इसकी शुरूआत कर दी है, जिससे भाजपा को देश भर के माहौल का अंदाजा लगाने में मदद मिलेगी और फिर इस मुद्दे पर भी केंद्र सरकार आगे कदम बढ़ा सकती है क्योंकि पूरे देश में इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार के स्तर पर ही संसद से इस कानून को पारित करवाना पड़ेगा। इस लिहाज से कहा जा रहा है कि संसद का आगामी शीतकालीन सत्र भी अहम हो सकता है।

देश के अधिकांश राजनीतिक दलों को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के भाजपा के इन तीन मुद्दों पर सबसे ज्यादा ऐतराज था। भारत की राजनीति में भाजपा के इन तीनों कोर एजेंडों को लेकर विरोध इतना ज्यादा था कि 1998 में एनडीए गठबंधन के बैनर तले सरकार बनाने के लिए भाजपा को इन तीनों मुद्दों को भूलना पड़ा और 6 वर्षों तक सरकार चलाने के बावजूद भाजपा ने इन तीनों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब भाजपा ने देश के राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से बदल दिया है।

 

मुस्लिम महिला वोटरों पर नजर

 

भाजपा तीन तलाक की तरह समान नागरिक संहिता को भी मुस्लिम महिला वोटर को अपने पक्ष में करने का बड़ा हथियार मानती है। उसे लगता है कि इसके जरिए मुस्लिम महिलाओं का एक बड़ा वर्ग उसे वोट कर सकता है और इस बात के संकेत असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के दिए गए बयान से मिलता है। उन्होंने बीते मई में कहा था कि यदि समान नागरिक संहिता लागू नहीं होती है, तो बहुविवाह प्रणाली जारी रहेगी। एक पुरुष एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए 3-4 बार शादी करेगा। मुस्लिम महिलाओं के हित के लिए समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए।

 

 

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति-निर्देशक तत्वों के तहत समान नागरिक संहिता का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार राज्य यानी भारत सरकार ‘भारत के पूरे भू-भाग में अपने नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।’ भाजपा इसी आधार पर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की बात कहती रही है।

असल में भारत में क्रिमिनल कानून सभी नागरिकों के लिए समान है। लेकिन परिवार और संपत्ति के बंटवारे के लिए नियम धर्मों के आधार पर अलग-अलग हैं। यदि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो यह कानून सभी जाति, धर्म, समुदाय या संप्रदाय के पर्सनल लॉ से ऊपर होगा। यानी देश में विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता आ जाएगी। फिलहाल भारत में हिंदू विवाह अधिनियम-1955, मुस्लिम पर्सनल कानून, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956, इसी तरह ईसाई और पारसी समुदाय आदि से जुड़े सिविल कानून हैं।

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