[gtranslate]
Country

फिर गरमाने लगा कॉमन सिविल कोड का मुद्दा 

कॉमन सिविल कोड एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। समय-समय पर इसको लेकर बहस होती रही है। देश के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान सिविल संहिता का उल्लेख मिलता है, जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में संविधान में राज्य को कॉमन सिविल कोड के लिए प्रयास करने हेतु निर्देशित किया है। पिछले महीने हुए पांच महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों में भगवा फहराने के बाद अब साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गई है। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी अपने अहम मुद्दों  में से एक  समान नागरिक संहिता के मुद्दे को  फिर गरमाने लगी है।

 

गौरतलब है कि शुरुआत से ही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने तीन कोर एजेंडों को लेकर स्पष्ट रहे हैं। इसमें अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना और देश में समान नागरिक संहिता लागू करना मुख्य रूप से शामिल रहा है। इनमें से दो कोर एजेंडे को मोदी सरकार हासिल कर चुकी है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जोर-शोर से जारी है और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जा चुका है। अब धीरे-धीरे ही सही भाजपा ने अपने तीसरे कोर एजेंडे – देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने की तरफ कदम बढ़ा दिया है।

दरअसल उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए वादे को निभाते हुए  उत्तराखण्ड   सरकार राज्य में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए जल्द ही एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने जा रही है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी राज्य के साथ ही पूरे देश में तेजी से इस कानून को लागू करने की वकालत करते हुए यह दावा कर चुके हैं कि समान नागरिक संहिता लेकर गंभीरता से विचार कर रही है।

उत्तराखण्ड और  उत्तर प्रदेश सरकार के बाद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी इसे सही निर्णय बताते हुए यह कह चुके हैं कि हमारी सरकार भी राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार कर रही है। इसके लिए अधिकारियों को इसे एक्जामिन करने का निर्देश दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि गृह मंत्री अमित शाह स्वयं भोपाल में पार्टी नेताओं के साथ बैठक के दौरान यह कह चुके हैं कि भाजपा की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370, राम जन्मभूमि, नागरिकता संशोधन कानून और तीन तलाक जैसे ज्यादातर मुद्दों को हल कर दिया है और अब समान नागरिक संहिता जैसे जो कुछ मुद्दें बचे हैं, आने वाले वर्षों में उन्हें भी हल कर दिया जाएगा।

खबरों के मुताबिक  भाजपा अब अपने तीसरे और बचे हुए एकमात्र कोर एजेंडे को लेकर भी कदम उठाने का फैसला कर चुकी है। फिलहाल भाजपा की राज्य सरकारों ने इसकी शुरूआत कर दी है, जिससे भाजपा को देश भर के माहौल का अंदाजा लगाने में मदद मिलेगी और फिर इस मुद्दे पर भी केंद्र सरकार आगे कदम बढ़ा सकती है क्योंकि पूरे देश में इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार के स्तर पर ही संसद से इस कानून को पारित करवाना पड़ेगा। इस लिहाज से संसद का आगामी मानसून सत्र काफी अहम हो सकता है।

दरअसल, भारतीय राजनीति में एक दौर ऐसा भी था जब केवल तीन मुद्दों को लेकर देश के अधिकांश राजनीतिक दलों ने भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी करार देते हुए देश की मुख्यधारा वाले राजनीतिक दलों की लिस्ट से पूरी तरह बाहर कर दिया था। इन्ही तीन मुद्दों के कारण वर्ष 1996 में लोकसभा में संख्या बल के मामले में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उदारवादी छवि के नेता को प्रधानमंत्री बनाने के बावजूद भाजपा को सांप्रदायिक दल का खिताब देते हुए अन्य राजनीतिक दलों ने समर्थन देने से इनकार कर दिया था। इस वजह से 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी को 13 दिनों में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

देश के अधिकांश राजनीतिक दलों को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के भाजपा के इन तीन मुद्दों पर सबसे ज्यादा ऐतराज था। भारत की राजनीति में भाजपा के इन तीनों कोर एजेंडे को लेकर विरोध इतना ज्यादा था कि 1998 में एनडीए गठबंधन के बैनर तले सरकार बनाने के लिए भाजपा को इन तीनों मुद्दों को भूलना पड़ा और 6 वर्षों तक सरकार चलाने के बावजूद भाजपा ने इन तीनों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब भाजपा ने देश के राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से बदल दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अयोध्या विवाद का समाधान हो चुका है और वहां राम मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। विरोधी दलों के भारी विरोध के बावजूद लोकसभा और राज्यसभा के समर्थन से सरकार जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा चुकी है और अब तीसरे कोर एजेंडे समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है।

भाजपा अपने शासन वाले राज्यों के जरिए जनमानस को जानने और इसके लिए जमीन तैयार करने में जुट गई है। उत्तराखण्ड में राज्य सरकार ने इस दिशा में एक समिति का गठन भी कर दिया है और उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश से भी इसके समर्थन में आवाजें उठने लगी हैं। इसे देखते हुए संसद का मानसून सत्र अहम हो सकता है।

गौरतलब है कि भाजपा अपने राजनीतिक एजेंडे के तीन कोर मुद्दों राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता में से दो राम मंदिर व अनुच्छेद 370 के लक्ष्य को पूरा कर चुकी है। बीते दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे ने राजनीतिक गर्मी पैदा की थी। इसके बाद भाजपा की राज्य सरकारों ने इस दिशा में कदम बढ़ाने भी शुरू कर दिए हैं।

 

उत्तराखण्ड ने की पहल

 

सबसे पहले उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने पहल की और समान नागरिक संहिता के लिए एक समिति बना दी है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य लगातार इसकी वकालत कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि देश में सबके लिए एक कानून होना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी भाजपा की सरकारों का समर्थन करते हुए कहा है कि हिमाचल में भी इस दिशा में आगे बढ़ा जाएगा।

 

बिहार में बयानबाजी तेज

 

बिहार में इस मुद्दे पर भाजपा व जद (यू) में काफी बयानबाजी हुई है। सामान नागरिक संहिता के पक्ष में मुखर हुए भाजपा नेता अब गठबंधन सरकार को लेकर कुछ नरम हुए हैं। दरअसल जद (यू) इसके पक्ष में नहीं हैं, ऐसे में सरकार के स्तर पर फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं हो सकता है। सूत्रों के अनुसार सरकार में इस मुद्दे पर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। हाल में गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस बारे में संकेत दिए थे, हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा था। लोकसभा में बड़ा बहुमत होने के साथ राज्यसभा में भी भाजपा व राजग इस समय सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं।

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD