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भारतीय जेलों में बंद लाखों कैदियों की रिहाई का जल्द खुलेगा रास्ता

उच्चतम न्यायालय ने 29 दिसंबर को देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कैदियों का डेटा एकत्र करने का निर्देश दिया है,जिन्हे न्यायालय से जमानत मिल चुकी है,लेकिन वे इसकी शर्तों का पालन न करने कारण जेल से बाहर नहीं आ सके हैं। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने 29 दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य 15 दिनों के भीतर ऐसे कैदियों का डेटा न्यायालय को सौंपे,जिसके बाद ऐसा माना जा रहा है किअब देश की जेलों में बंद लाखों कैदियों की रिहाई का रास्ता खुल जाएगा ।

 

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ‘प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021 के रिपोर्ट के मुताबिक,2016-2021 के बीच जेलों में कैदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई है,जबकि विचाराधीन कैदियों की संख्या में 45.8% की वृद्धि हुई है। ‘प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया की रिपोर्ट यह भी कहती है कि देश में 4 में से 3 कैदी विचाराधीन हैं।31 दिसंबर 2021 तक लगभग 80 प्रतिशत कैदियों को एक वर्ष तक की अवधि के लिए जेलों में बंद रखा गया है। 2021 में रिहा किए गए 95 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों को न्यायालयों ने जमानत दे दी थी, जबकि न्यायालय द्वारा बरी किए जाने पर केवल 1.6% को रिहा किया गया था।

इसको लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी संविधान दिवस के मौके पर गरीब आदिवासियों के जेलों में बंद रहने का मुद्दा उठाया था। द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी इलाकों में उनकी दुर्दशा पर रोशनी डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं। राष्ट्रपति ने न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। जिसके बाद 29 दिसंबर को न्यायालय में सुनवाई हुई, जिसमें न्यायालय ने देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि अगले 15 दिनों की अवधि के अवधि में जेल अधिकारियों द्वारा, कैदियों के नाम, अपराध का स्वरूप, जमानत की तारीख, जमानत की शर्तें जो पूरी नहीं हुईं और जमानत दिए जाने की अवधि और जमानत आदेश की तिथि आदि विवरण सहित जरूरी जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई जाए। इसके बाद एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकारों को न्यायालय को डेटा भेजना है। इस दौरान न्यायालय ने यह भी कहा कि न्यायालय तब इस मुद्दे पर आवश्यक विचार-विमर्श करेगा और स्पष्ट रूप से आवश्यक सहायता प्रदान करेगा।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,जस्टिस कौल ने माना कि ऐसे कई मामले हैं जहां जमानत दिए जाने के बाद भी कैदी सिर्फ इसलिए जेलों में हैं क्योंकि वे जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं। जस्टिस कौल ने कहा, समस्या उन राज्यों में अधिक है जहां वित्त साधन एक चुनौती है। जस्टिस कौल ने पिछले 25 नवंबर को नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है।

न्यायालय में सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा, हम जानते हैं कि लंबे समय तक जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की एक बड़ी समस्या है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमें तत्काल ध्यान देना चाहिए। वहीं जस्टिस एएस ओका ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस मुद्दे को हल करने का एकमात्र तरीका जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग करना हो सकता है, जो कैदियों द्वारा पूरी नहीं की जा सकती है। यह भी संकेत दिया कि प्रत्येक मामले में इस तरह के संशोधन के लिए एक आवेदन दायर करना होगा। इसलिए, ऐसे मामलों की संख्या का डेटा संग्रह महत्वपूर्ण है। न्यायिक पीठ ने अपने आदेश में ये भी कहा कि राष्‍ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण जमानत आदेशों के निष्पादन को प्रभावी बनाने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की सहायता ले सकता है।

इस समस्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि कई कैदी ऐसे हैं जो वर्षों से जेलों में कानूनी सहायता के इंतजार में पड़े हैं। हमारे जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण इन कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन में भी विचाराधीन कैदियों का मुद्दा उठाया था। तब उन्होंने कहा था,आज देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन हैं और जेल में हैं। इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं। देश प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहां भी संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है मैं सभी मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से मानवीय संवेदनशीलता और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता देने की अपील करता हु।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की थी अपील

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी संविधान  दिवस के मौके आयोजित कार्यक्रम के दौरान न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन गरीब कैदियों जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। राष्ट्रपति जिस समय ये बातें कह रही थीं उस समय न्यायमूर्ति एसके कौल प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के साथ मंच पर बैठे थे जब राष्ट्रपति ने अपने ओडिशा में विधायक के रूप में और बाद में झारखंड की राज्यपाल के रूप में कई विचाराधीन कैदियों से मिलने का अपना अनुभव बताया। राष्ट्रपति ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह करते हुए कहा था कि न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को सस्ती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।अंग्रेजी में अपने लिखित भाषण से हटकर द्रौपदी मुर्मू ने हिंदी में बोलते हुए न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं लेकिन इन गरीब कैदियों, जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। मुर्मू ने मामूली अपराधों के लिए वर्षों से जेलों में बंद गरीब लोगों की मदद करके वहां कैदियों की संख्या कम करने का सुझाव दिया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  ने कहा था, कहा जाता है कि जेलों में कैदियों की भीड़ बढ़ती जा रही है और और जेलों की स्थापना की जरूरत है। क्या हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं? और जेल बनाने की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा था कि जेलों में बंद इन गरीब लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था, ‘आपको इन लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। कौन हैं ये लोग जो जेल में हैं? वे मौलिक अधिकारों, प्रस्तावना या मौलिक कर्तव्यों को नहीं जानते हैं। हमारा काम लोगों (जेल में बंद गरीब विचाराधीन कैदियों) के बारे में सोचना है। हम सभी को सोचना होगा और कोई न कोई रास्ता निकालना होगा… मैं यह सब आप पर छोड़ रही हूं।

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