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क्या कश्मीरी लोगों की आवाज दबा रहा सोशल मीडिया ? 

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का काम दबे-कुचलों की आवाज़ बनना है, लेकिन जब सोशल मीडिया खुद ही स्वतंत्र आवाजों को रोक रहा हो तो लोकतंत्र के लिए इससे ‘काला दिन’ और क्या हो सकता है? सोशल मीडिया के आते ही लोगों को खुद को व्यक्त करने का मौका मिला। लेकिन यही सोशल मीडिया अगर आपकी आवाज को दबाने लगे तो आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। किसी के लिए ये हथियार साबित होता है तो किसी के लिए अभिशाप। लेकिन कश्मीर के लोगों के लिए सोशल मीडिया शायद सपना बनकर रह गया था कि कब वह स्वतंत्र रूप से सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात कह पाएंगे और बता पाएंगे की वो क्या चाहते हैं ?

सोशल मीडिया के द्वारा लोगों की आवाज को दबाने का काम जम्मू और कश्मीर में लगातार हो रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया कश्मीरियों के दुख-दर्द को समझने के बजाय उस दुख-दर्द को बढ़ाने वाली हर आवाज़ को दफ्न कर देने पर आमादा है।

कतर की प्रतिष्ठित अलजजीरा न्यूज वेबसाइट ने कश्मीरी प्रवासी समूह की एक रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम लगातार कश्मीर के लिए आवाज उठाने वाली हैंडल्स ( कलाकारों, पत्रकारों और विशेषज्ञों) के खातों को लगातार निलंबित कर रहा है। इन तमाम प्रतिष्ठित कंपनियों के द्वारा कश्मीर के आवाज को बुलंद करने वाली हर आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

स्टैंड विद कश्मीर (एसडब्ल्यूके) की 30-पृष्ठ की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है, “हाऊ सोशल मीडिया कारपोरेशनस इनेबल साइलेंस ऑन कश्मीर” का दावा है कि 2017 के बाद से फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने कश्मीर से संबंधित सामग्री को लगातार रोकने का प्रयास किया है।

हालांकि 2019 में जब भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा वापस ले लिया तो व्यापक स्तर पर इंटरनेट को भी बंद कर दिया गया था। उस समय दुनिया भर में इंटरनेट एक्सेस पर नजर रखने वाली कंपनी एक्सेस नाउ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन जम्मू कश्मीर में था। पिछले साल आई एक एडवोकेसी समूह की रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि भारत 129 देशों के सूची में इंटरनेट शटडाउन करने के मामले में सबसे ऊपर है।

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पिछले कुछ सालों में अपनी बातों को दुनिया के सामने रखने के लिए इंटरनेट एक बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। लेकिन कश्मीर के प्रवासी समूहों की रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्र आवाजों को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। भारत मे देखा जाता रहा है कि प्रादेशिक सरकारों के निर्देश पर इंटरनेट प्रदाताओं ने हमेशा से ही इंटरनेट शटडाउन करने का काम किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे खातों को बंद कर दिया जा रहा है या उनके खातों पर सेंसर किया जा रहा है जो सरकार के खिलाफ या आम आवाम की बातों को दुनिया के सामने रख रहे हैं।

जवाब देने से कतरा रहे हैं फेसबुक और इंस्टाग्राम

प्रतिष्ठित न्यूज़ एजेंसी अल जजीरा ने फेसबुक और इंस्टाग्राम से इस मामले में जब सवाल पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। सरकार ने अक्सर इस आधार पर इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया कि इसका इस्तेमाल लोगों को भड़काने के लिए किया जा रहा है। हाल के वर्षों में कई उपयोगकर्ताओं को उनकी सोशल मीडिया पोस्ट पर पूछताछ का सामना करना पड़ा है।

पिछले साल दो कश्मीरी पत्रकारों, मसरत ज़हरा और गौहर गिलानी पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने दावा किया कि उनकी पोस्ट राष्ट्रीय अखंडता, संप्रभुता और भारत की सुरक्षा के लिए खतरा थीं।

समूह की मांग है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपने मानवाधिकार दायित्वों को पूरा करना चाहिए और सामग्री को हटाने या उसे प्रतिबंधित करने में पारदर्शिता प्रदान करनी चाहिए।

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अक्टूबर, 2019 में कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के दो महीने बाद कश्मीर एक गंभीर डिजिटल और सैन्य लॉकडाउन का सामना कर रहा था। एक वैश्विक मीडिया प्रहरी, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि अगस्त, 2017 के बाद से भारत में कश्मीर पर केंद्रित सैकड़ों-हजारों ट्वीट अवरुद्ध हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अवरुद्ध किए गए खातों में से अधिकांश उस समूह से थे। जिन्होंने अपनी पोस्ट में कश्मीर का संदर्भ दिया गया।

भारत लगभग 700 मिलियन उपयोगकर्ताओं के साथ एक बड़ा इंटरनेट बाजार है। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर सामग्री को विनियमित करने के लिए सख्त नियमों की घोषणा की गई है। नए नियमों के तहत सोशल मीडिया कंपनियां सरकार के अनुरोध पर पोस्ट को हटाने और सामग्री की उत्पत्ति के बारे में जानकारी साझा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं।

फिलहाल कश्मीर की आवाजों को अगर इसी तरह सोशल मीडिया दबाता रहा और ऐसे ही हालत रहे तो कश्मीरी आवाम के पास अपनी बातों को सबके सामने रखने का एक भी मंच बाकी नहीं रह जाएगा।  न वो सरकार की बातें सुन पाएंगे और न ही उनकी बातें सरकार तक पहुंच पाएंगी। सोशल मीडिया द्वारा की जा रही सख्ती से एक बड़ा कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता जा रहा है।

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