कोरोना संकट में जहां सारी व्यवस्थाएं ठप हो गयी थीं वहीं स्कूली शिक्षा भीबाधित हो गयी थी। सब बंद हो चुके थे। लेकिन, बदलते परिवेश में ऑनलाइन शिक्षा इस समस्याओं का एक समाधान है। इससे हम घरों में रहकर भी बच्चों की पढ़ाई पूरी करा सकते हैं।
हजारों बच्चे ऐसे हैं जिनके स्कूल में ऑनलाइन क्लास(online class) तो चल रही है, लेकिन वे या तो पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं या कर भी रहे हैं तो उसका समुचित फायदा नहीं मिल पा रहा है। कहीं इंटरनेट की समस्या तो किसी के पास मोबाइल(Mobile) व लैपटॉप(Laptop) नहीं। लेकिन अभी ऑनलाइन क्लास का कोई और दूसरा विकल्प भी नहीं है। लेकिन तब क्या करें जब एक तरफ स्कूल खुलने की स्थिति में नहीं तो दूसरी तरफ छात्रों के पास जरूरी उपकरण नहीं।
डिजिटल डिवाइस(Digital Device) के मामले में स्थिति कितनी खराब है कि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, महाराष्ट्र व यूपी के आंकड़े सरकार तक पहुंच ही नहीं सके। जबकि कुछ राज्यों में डिवाइस से महरूम छात्रों का केवल प्रतिशत ही बताया गया है। दिल्ली (4%), जम्मू-कश्मीर(70%) , छत्तीसगढ़ (28.27%), पंजाब 42%), एमपी (70%) छात्रों के पास डिवाइस नहीं होने की बात लोकसभा को दिए जवाब में कही गई है.
ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम : जिन बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं उनमें 1.43 करोड़ बिहार के
कोरोना(Covid-19) ने एजुकेशन सिस्टम को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। एक साल से अधिक हो गए, बच्चों ने स्कूल नहीं देखा है। डिजिटल डिवाइस(Digital Device) ही पढ़ाई का एकमात्र जरिया है, लेकिन ऐसे में चौकाने वाला सच ये है कि देश के 26 राज्यों के 2.69 करोड़ स्कूली छात्रों के पास लैपटॉप या मोबाइल हैं ही नहीं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में अपने लिखित जवाब में बताया कि सबसे खराब स्थिति बिहार (Bihar) की है। यहां 1.43 करोड़ छात्रों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है। झारखंड (Jharkhand) के मामले में ये आंकड़ा 35.32 लाख है।
जबकि कर्नाटक(Karnataka) में 31.31 लाख, असम में 31.06 लाख, उत्तराखंड में 21 लाख छात्रों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं हैं। खास बात है कि इसमें पांच राज्यों के आंकड़े शामिल ही नहीं हैं। यहां अहम यह है कि पहले बच्चों को मोबाइल(Mobile) से दूर रखने की नसीहत दी जाती थी, वहीं अब मोबाइल या लैपटॉप रखना अनिवार्य हो गया है। लेकिन जब स्कूल खुल नहीं पा रहे तब कोई ऑनलाइन (Online) सुविधायुक्त है तो कोई इससे वंचित है। स्कूलों को समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसी स्थिति में वे छात्रों को कैसे पढ़ाएं।