पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले उत्तर प्रदेश के हाथरस मामले में आज उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिका पर सुनवाई की। सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को भयानक बताया। और उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि वह बताए कि हाथरस मामले के गवाहों और दिवंगत लड़की के परिजनों की कैसे सुरक्षा की जा रही है।
फिलहाल मामले की एसआईटी जांच चल रही है। सुनवाई से पहले राज्य सरकार ने अदालत में हलफनामा दाखिल किया। इसमें बताया गया कि संभावित दंगों के कारण प्रशासन ने पीड़िता के परिवार को रात में शव का अंतिम संस्कार करने के लिए मना लिया था। खुफिया इनपुट से जानकारी मिली थी कि इस मामले को जाति -सांप्रदायिक रंग दिया जा सकता है। इसके अलावा सरकार ने दावा किया कि हाथरस मामले के बहाने राज्य में दंगा कराने की साजिश रची गई थी।
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे ने कहा कि हम पीड़ित पक्ष और गवाहों की सुरक्षा के यूपी सरकार के बयान को दर्ज कर रहे हैं। आप हलफनामा दाखिल करें। इस पर सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम कल सात अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल कर देंगे। सीजेआई ने कहा कि ठीक है, आप गवाहों की सुरक्षा को लेकर किए गए इंतजामों पर और पीड़ितों की सुरक्षा के बारे में हलफनामे में पूरी जानकारी दें।
शीर्ष अदालत ने सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि वह यह बताएं कि हाथरस मामले के गवाहों की सुरक्षा कैसे की जा रही है। वहीं अदालत ने मामले को अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि यह बेहद ही भयानक घटना है। हम अदालत में दोहराए जाने वाले तर्क नहीं चाहते हैं। न्यायालय ने हाथरस मामले में कहा कि हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के दायरे के बारे में सभी से सुझाव चाहते हैं और हम इसका दायरा बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं।
हाथरस पीड़िता के परिवार की मांग पर उन्हें पुलिस सुरक्षा मिल गई है। योगी सरकार का कहना है कि हाथरस के बहाने राज्य में दंगा कराने की साजिश रची जा रही थी। इस मामले में दिल्ली से हाथरस आ रहे चार संदिग्धों को मथुरा से गिरफ्तार किया गया है। इनका कनेक्शन पीएफआई से है। इसमें विदेशी फंडिंग होने का दावा किया जा रहा है।
हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से सवर्ण जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। पीड़िता की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गई थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।