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चाय निर्यात पर युद्ध की काली छाया

  •     वृंदा यादव, प्रशिक्षु

भारत की चाय के सबसे बड़े खरीददार रूस और सीआईएस के देश हैं। सीआईएस स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रमंडल है। अर्मेनिया, बेलारुस, कजाखिस्तान, मोलदोआ, तजाकिस्तान, रूस, अजरबेजान सीआईएस के सदस्य हैं। परंतु हाल ही में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का असर भारतीय चाय के निर्यात पर पड़ने लगा है। युद्ध की वजह से विदेशों में चाय की मांग में कमी आई है। यह युद्ध जल्दी नहीं रूका तो भारत के चाय निर्यात पर भी असर पड़ेगा

विश्व भर में रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते पैदा हो रही आर्थिक कठिनाइयों और उसके दुष्प्रभाव का असर दिखने लगा है। इस युद्ध का प्रभाव कहीं न कहीं विश्व के सभी देशों पर पड़ रहा है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के चाय निर्यात में भी इस युद्ध के कुप्रभाव पड़ने शुरू हो गए हैं। गौरतलब है कि भारत के असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आदि इलाकों में चाय की खेती की जाती है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा चाय निर्यातक देश है। लेकिन पिछले कुछ समय से लगातार इसके निर्यात में गिरावट आती जा रही है। ‘द टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में चाय का कुल निर्यात (195 .20 मिलियन किलोग्राम) पिछले साल की तुलना में सात प्रतिशत कम और 2019 (252. 15 मिलियन किलोग्राम) की तुलना में 23 प्रतिशत कम है।

भारत में चाय का व्यवसाय कैसा था?
भारत में चाय की खोज वर्ष 1815 में अंग्रेजां द्वारा की गई जब उन्होंने चाय के पत्तों को एक पेय पदार्थ के रुप में प्रवर्तित करके ग्रामीण (कबीलावासी) लोगों को उसे पीते हुए देखा। 1834 में भारतीय गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने चाय के उत्पादन की संभावना को तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया और जब इसके उत्पादन के स्त्रोत मिल गए तो 1835 में असम में चाय के बागान लगाए गए। 1837 में चाय का नमूना पहली बार लंदन गया और धीरे-धीरे भारत के व्यापारियों का लंदन के साथ चाय का व्यापार बढ़ता गया। 1850 के दशक की शुरुआत में, चाय उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ, जिसमें चाय के बागानों के लिए विशाल भूमियों की खरीद की गई। भारत में चाय का आयात-निर्यात सबसे पहले शुरू हुआ पर वर्तमान में श्रीलंका विश्व का सबसे बड़ा चाय निर्यातक देश है। श्रीलंका और भारत के बीच हमेशा चाय को लेकर प्रतिस्पर्धा रहती है और इसी प्रतिस्पर्धा के कारण कई बार विरोधी देश कम दाम पर अपने उत्पाद को बैचते हैं और ये चीज निर्यातक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। जिससे दूसरे के निर्यात पर असर पड़ता है।


चाय में आईं गिरावट के कारण
दरअसल भारत की चाय के सबसे बड़े खरीददार रूस और सीआईएस के देश हैं। सीआईएस स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रमंडल है। अर्मेनिया, बेलारुस, कजाखिस्तान, मोलदोआ, तजाकिस्तान, रूस, अजरबेजान सीआईएस के सदस्य हैं। परंतु हाल ही में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का असर चाय के निर्यात पर पड़ने लगा है। युद्ध की वजह से विदेशों में चाय की मांग में कमी आई है। यदि यह युद्ध जल्दी नहीं रूका तो चाय के निर्यात में आती हुई कमी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ‘बिमल जालान कहते हैं कि ‘दुनिया यूरोप में एक बड़ा युद्ध देख रही है जिसमें पश्चिमी ब्लॉक ने तेजी से कठोर आर्थिक उपायों की शुरुआत की है। परस्पर निर्भरता की इस दुनिया में भारत समेत कोई भी देश इससे अछूता नहीं रह सकता है। रूस सहित सीआईएस देशों को हमारा चाय निर्यात 58-6.5 करोड़ किलोग्राम है। यह युद्ध दुनिया के इन क्षेत्रों में चाय व्यापार को प्रभावित करने का बड़ा कारण बन चुका है।’ चाय के इस घटते निर्यात के संदर्भ में भारत के चाय निर्यातक संघ के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया कहते हैं कि ‘‘कई रूसी बैंकों के लिए स्विफ्ट तक पहुंच को रोकना चिंताजनक है। रूस भारतीय चाय का सबसे बड़ा आयातक है। उसके बाद ईरान का स्थान है, जिस पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भुगतान की समस्या है।’’

वहीं कोलकाता के चाय निर्यातकों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर सीआईएस देशों के कई बैंकों की पहुंच वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्विफ्ट (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) तक रोक दी गई है जिससे चाय के निर्यात में गिरावट आई है। बता दें की स्विफ्ट एक अंतराष्ट्रीय दुनिया की प्रमुख बैंकिंग कम्युनिकेशन सर्विस है, जो लगभग 200 से अधिक देशों के बैंको और वित्तीय संस्थानों को जोड़ती है जिससे वैश्विक स्तर पर वित्तीय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में मदद मिलती है। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया और रूस के वित्तीय संस्थानों समेत बैंको को स्विफ्ट से अलग करने का फैसला लिया जिससे रूस पर आर्थिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि प्रतिबंध स्विफ्ट से रूस अन्य देशों से पैसों का लेन-देन नहीं कर पाएगा और इसके कारण रूस को आयात-निर्यात के साथ-साथ कई प्रकार की आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इसी कारण भारत में आई चाय के निर्यात में भी कमी आई है।

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