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सब कुछ निजी हाथों में सौंपने की कवायद 

देश  की नरेंद्र मोदी सरकार ने23 जनवरी, 2018 को पहली बार 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डाॅलर तक पहुंचाने की अपने महत्वाकांक्षी सपने को सार्वजनिक किया था। जिसमें उम्मीद जताई गई थी कि 2020-21 से लेकर 2024-25 तक भारत की अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ेगी। यह माना गया था कि जीडीपी में औसत वृद्धि दर 12 प्रतिशत के आस-पास होगी, जबकि महंगाई की दर चार प्रतिशत रहेगी। देश के आर्थिक हालात लेकिन ठीक उलट हो चले हैं। नोटबंदी और जीएसटी के चलते उपजे संकट को कोविड महामारी ने खासा गंभीर बना डाला है। ऐसे में राजस्व की कमी से जूझ रही मोदी सरकार अब तेजी से राष्ट्रीय संपदा का निजीकरण करने की तैयारियों में जुट गई है।

सरकार को तेजी से खाली हो रहे खजाने को भरने के लिए हाल-फिलहाल इसके सिवा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि केंद्र की मोदी सरकार अगले चार साल में करीब 100 संपत्तियों को बेचने की योजना पर काम कर रही है। इसके के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है। अब नीति आयोग ने केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों को उन संपत्तियों की पहचान करने को कहा है जिसे अगले कुछ सालों में मोनेटाइज किया जा सकता है। इसके लिए नीति आयोग ने एक पाइप लाइन तैयार करने के लिए कहा है। नीति आयोग उन संपत्तियों और कंपनियों की एक लिस्ट तैयार कर रहा है जिसे आने वाले दिनों में बिक्री के लिए शेड्यूल किया जा सकता है। इनकी वैल्यू करीब 5 लाख करोड़ रुपए होगी त्रासदी यह कि 1950 में प्रथम प्रधानमंत्री द्वारा गठित योजना आयोग को ऐसी सरकारी संपत्तियों के चिन्हीकरण का काम सौंपा गया है।

2014 में इस आयोग का नाम बदल नीति आयोग कर दिया गया था। अब यही आयोग ऐसी राष्ट्रीय संपत्तियों की सूची बना रहा है। जिन्हें जल्द से जल्द निजी हाथों के हवाले करा जा सके। इनमें रेल मंत्रालय के पचास स्टेशन, 150 पैसेंजर टेªन, दूरसंचार मंत्रालय के अधीन टेलीकाॅम कंपनियां बीएसएनएल, एमटीएनएल और भारत नेट, सड़क परिवहन मंत्रालय के सात हजार कि.मी. की सड़कें, खेल मंत्रालय के स्पोट्र्स स्टेडियम, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के 13 एयरपोर्ट, तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की पीएलयू गेल, आईओसीएल तथा एचपीसीएल की पाइप लाइन्स और जल परिवहन मंत्रालय की संपदा शामिल हैं।

सूत्रों की माने तों नीति आयोग आठ बड़े मंत्रालयों संग मिलकर यह लिस्ट तैयार कर रहा है। हालांकि रेल मंत्री पियूष गोयल ने बजट सत्र के दौरान सदन में रलवे के निजीकरण की खबरों को गलत करार दिया है, खबर है कि सरकार रेलवे की संपत्ति बेच नब्बे हजार करोड़ रुपया पाने का लक्ष्य भी निर्धारित कर दिया है। अब तक कम से कम 100 ऐसी संपत्तियों की पहचान की जा चुकी है जिनका निजीकरण किया जाना है और इनकी वैल्यू पांच लाख करोड़ होगी। सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सरकार इन संपत्तियों को बेचने के लिए फास्ट्रेक मोड में काम करेगी। करीब 31 व्यापक एसेट्स क्लासेज, 10 मंत्रालयों या केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए मैप किए गए हैं। यह सूची मंत्रालयों के साथ साझा की गई है और संभावित निवेश स्ट्रक्चर पर विचार शुरू हो गया है। इन संपत्तियों में टोल रोड बंडल, पोर्ट, क्रूज टर्मिनल, टेलीकाॅम इन्फ्रास्ट्रक्चर, तेल और गैस पाइपलाइन, ट्रांसमिशन टावर, रेलवे स्टेशन, स्पोर्ट्स स्टेडियम, पर्वतीय रेलवे, परिचालन मेट्रो सेक्शन, वेयरहाउस और वाणिज्यिक परिसर शामिल हैं। यदि संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है, तो इसे प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए निपटान के लिए एक लैंड मैनेजमेंट एजेंसी को हस्तांतरित किया जाएगा। एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा है कि फ्री होल्ड लैंड को इस प्रस्तावित फर्म को हस्तांतरित कर दिया जाएगा, जो डायरेक्ट बिक्री या रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट या आरईआईटी माॅडल के माध्यम से कमाई करेगा।

बता दें कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वेबिनार में सरकार के विनिवेश प्लान को लेकर चर्चा की। पीएम मोदी ने कहा कि सरकार निजी करण एवं आधुनिकीकरण पर ध्यान दे रही है। निजी क्षेत्र से दक्षता आती है, रोजगार मिलता है। निजीकरण, संपत्ति को बेचने से जो पैसा आएगा उसे जनता पर खर्च किया जाएगा। आंकड़ों के अनुसार, करीब 70 से अधिक सरकारी कंपनियां घाटे में चल रही हैं, इनमें राज्य द्वारा संचालित यूनिट्स भी हैं जिन्होंने वित्त वर्ष 2019 में 31 हजार 635 करोड़ रुपए के संयुक्त नुकसान की सूचना दी थी। सरकार अब इन सभी घाटे में चल रही यूनिट्स को बंद करना चाहती है।

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