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चौधरी का मतलब, जो हल की चऊँ को धरा पर चलाता है  

एक राजनेता जिसने अपने पूरे कार्यकाल में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया। प्रतिभाशाली,व्यवहारवादी,अपनी वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जिन्हें देश के हर वर्ग से समान स्नेह और सम्मान मिला।   देश में कुछ ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए लोकप्रियता हासिल की।उन्हीं कुछ राजनेताओं में एक नाम हैं चौधरी चरण सिंह का, जिन्हें देश के कोने-कोने से जनता का भरपूर समर्थन मिला खासकर किसानों के बीच वे काफी लोकप्रिय नेता थे।

‘जो ज़मीन को जोते-बोये वो ज़मीन का मालिक है।’ :चौधरी चरण सिंह

किसान वर्ग में उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उस दौर में यानी जब इंटरनेट और सोशल मीडिया में जब प्रचार-प्रसार का दौर नहीं था तब भी  उनके समर्थन में लाखों किसान सड़कों पर निकल पड़ते थे। चौधरी चरण सिंह जिन्होंने किसान हित के मोर्चे में खुद पहुँच कर यह कहा था कि ,’जो ज़मीन को जोते-बोये वो ज़मीन का मालिक है।’

जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन विभिन्न पदों पर रहते हुए देश की सेवा की और देश के उन विरले राजनेताओं में अपनी जगह बनायीं जिन्हें लोगों ने अपना सिरमौर बनाया। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चौधरी चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला था।

 

अपने सम्पूर्ण काल में चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं। जद(यू) के प्रधान महासचिव के सी त्यागी ने पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में एवं उनका किसानों के प्रति कितना लगाव था उस पर  एक किस्सा साझा किया है आप भी पढ़ें।

वह भारतीय समाज की मानसिकता एवं कृषि भूमि के प्रति किसान के व्यक्तिगत लगाव पर धाराप्रवाह बोलते रहे

 

1957 में कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ, जिसमें पार्टी की ओर से पंडित नेहरू ने प्रस्ताव किया कि भारत में भी सहकारी खेती को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के प्रमुख मंत्री होते हुए चौधरी चरण सिंह ने प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के राजस्व मंत्री के रूप में जमींदारी उन्मूलन लागू कर वह काफी वाहवाही लूट चुके थे।

चौधरी चरण सिंह ने बिंदुवार अधिकारिक प्रस्ताव का विरोध प्रारंभ कर दिया। वह भारतीय समाज की मानसिकता एवं कृषि भूमि के प्रति किसान के व्यक्तिगत लगाव पर धाराप्रवाह बोलते रहे और अधिवेशन में उपस्थित कार्यकर्ता करतल ध्वनि से उनका स्वागत करते रहे। उनके भाषण की समाप्ति के बाद यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। जबकि उस समय पंडित नेहरू कांग्रेस के पर्याय और पार्टी के वैचारिक सिद्धांतकार भी माने जाते थे।

गैर कांग्रेसवाद की पटकथा

लोहिया एवं दीनदयाल उपाध्याय जिस गैर कांग्रेसवाद की पटकथा तैयार कर रहे थे, उसे उत्तर प्रदेश में परवान चढ़ाने का काम बिना चौधरी चरण सिंह के संभव नहीं था। वह प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, जो साफ-सुथरी छवि एवं कुशल प्रशासक के रूप में अमिट छाप छोड़ गए। मंडी व्यवस्था के स्वरूप को लेकर भी उनकी राय स्पष्ट थी और किस प्रकार बिचौलिए मनमाने तरीके से किसान की फसल का दाम ओने-पौने दर पर तय करते हैं, इस पर उन्होंने कई लेख लिखे। वह इसे ज्यादा पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने के पक्षधर थे।

इसी समृद्ध वैचारिकता के कारण “बोट क्लब” की रैली ऐतिहासिक बन गई। अपने सभी आलोचकों को उन्होंने निरुत्तर कर दिया, जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर कोई असुविधाजनक टिप्पणी किए बिना उन्होंने गांव, कृषि, बढ़ती असमानता और भ्रष्टाचार पर अपने भाषण को केंद्रित किया। इस शक्ति का प्रदर्शन उनके लिए कई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे गया। इसी भिन्न दृष्टिकोण ने उन्हें और अधिक प्रभावी एवं उपयोगी साबित किया। जनता पार्टी ने उन्हें उप-प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी। अपने पहले ही बजट में उन्होंने किसानों के लिए नाबार्ड जैसे संगठन की स्थापना की, जो आज भी कृषि हितों के संरक्षण की जिम्मेदारी में संलग्न है।

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