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विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चौतरफा घेरने की रणनीति में हैं। वे अपनी रणनीति को कारगर बनाने की दिशा में भी अग्रसर हैं, लेकिन चुनौतियां उनकी राह में भी हैं

अब जैसे-जैसे अगामी लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है, वैसे- वैसे विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चौतरफा घेरने के मूड में दिखाई दे रही हैं। लगता है कि उनकी रणनीति ऐसा चक्रव्यूह रचने की है जिसे भेदने में मोदी कामयाब न हो सकें। उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर जगह से विपक्षी पार्टियों के दिग्गज मोदी को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। उन पर भ्रष्टाचार से लेकर वादाखिलाफी के आरोप लगा रहे हैं। ये आरोप आगामी लोकसभा चुनाव के अहम मुद्दे होने जा रहे हैं। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी को जो चौतरफा चुनौतियां मिल रही हैं, उनमें सबसे सशक्त महिला नेताओं की ओर से हैं।

विपक्षी पार्टियों की व्यूह रचना का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हाल में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए दिल्ली में अनशन पर बैठे तो तमाम विपक्षी दलों के नेता उनके समर्थन में पहुंचे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस नेता दिग्वजय सिंह, डीएमके नेता टी शिवा और तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ ब्रायन आदि तत्काल उनके समर्थन में आए। यहां तक कि शिव सेना सांसद संजय राउत भी नायडू से मिलने पहुंचे। नायडू की दलील है कि तेलंगाना राज्य गठित होने के वक्त आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने का वादा किया गया था, लेकिन अब केंद्र सरकार पलट गई है। यही नहीं अब राज्य की नई राजधानी अमरावती के लिए भी केंद्र सरकार धन नहीं दे रही है। नायडू पिछले कुछ महीनों से विपक्षी दलों को गोलबंद करने में लगे हुए हैं। इसके लिए वे कई बैठकें भी कर चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहल कितनी कामयाब होगी, यह अन्य विपक्षी दलों की रणनीति पर भी निर्भर करेगा। लेकिन अपनी दलीलों से वे आंध्र में भाजपा को बेहतर प्रदर्शन करने से तो रोक ही सकते हैं। नायडू के धरने के बाद विपक्षी दलों के नेताओं की एनसीपी अध्यष शरद पवार के घर पर एक बैठक हुई। इसमें चुनाव पूर्व गठबंधन और न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने पर सहमति बनी। बैठक में राहुल गांधी, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, फारुख अब्दुला, अरविंद केजरीवाल एवं सतीश मिश्रा जैसे नेता मौजूद थे।

सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सपा- बसपा गठबंधन पहले ही भाजपा के लिए चुनौती माना जा रहा था कि अब कांग्रेस ने यहां प्रियंका गांधी के रूप में जो अस्त्र फेंका है उसकी काट भी प्रधानमंत्री मोदी को निकालनी होगी। लखनऊ में प्रियंका के रोड शो के दौरान उमड़े जन सैलाब को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह अलग बात है कि प्रियंका अपने पीछे खड़ी भीड़ को वोटों में किस हद तक तब्दील कर पाती हैं, लेकिन फिलहाल तो ‘प्रियंका नहीं आंधी है, कल की इंदिरा गांधी हैं,’ का नारा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर ही रहा है। मायावती के बाद प्रियंका यूपी में मोदी को चुनौती देने वाली दूसरी महिला नेता हैं। अब तक के राजनीति परिदृश्य से ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियों की महिला नेताओं की तरफ से ही प्रधानमंत्री मोदी को असली चुनौती मिल रही है। यूपी में मायावती और प्रियंका हैं, तो बंगाल के मोर्चे पर ममता बनर्जी लोहा ले रही हैं। वे जरा भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। सीधे टकराव के रास्ते पर हैं।

विपक्ष से तीन महिला नेता प्रधानमंत्री मोदी के लिए सिरदर्द तो बनी हुई हैं, लेकिन इन तीनों के समक्ष भी चुनौतियां हैं। मायावती के लिए सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी बड़ा झटका मानी जा रही है जिसमें उसने कहा है कि ‘बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपनी और हाथियों की मूर्तियां बनाने में जितना जनता का पैसा खर्च किया है, उसे वापस करना चाहिए।’ प्रियंका को राजनीतिक मोर्चे पर जूझते वक्त राफेल सौदे पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने के साथ ही जनता को यह विश्वास भी दिलाना होगा कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ जो मामले उठ रहे हैं, वे एकदम बेबुनियाद हैं। इसी तरह कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार यदि शारदा चिट फंड घोटाले के सबूत नष्ट करने के आरोप से पाक-साफ नहीं होते तो पश्चिम बंगाल में मामला बनर्जी की दिक्कतें बढ़नी स्वाभाविक हैं। उन्हें जवाब देना होगा कि क्यों वे पुलिस कमिश्नर के पक्ष में उतरी थीं। तमाम राजनीतिक हालत को देखने पर लगता है कि विपक्षी पार्टियां सशक्त व्यूह रचना की ओर तो बढ़ रही हैं और मातृशक्ति मोर्चे पर आगे भी है। लेकिन युद्ध भूमि में चुनौतियां अकेले मोदी के लिए ही नहीं हैं।

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